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----- ॥ उत्तर-काण्ड ॥ -----

इहाँ एक दिवस जग प्रनेताए । भरत लख्ननन ले निकट बुलाए ।।अरु कहि रे मम प्रियकर भाई । मोरे मन एक चाह समाई ।। यहाँ एक दिवस संसार के रचयिता श्री राम चन्द्र ने भारत लक्षमण को निकट बुला कर कहा मेरा हीत करने...

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----- ।। गुजरे-लम्हे ॥ -----

 प्रकाशन तिथि : -- 20-4-2012                  गुलसिताँ ने गुल, आस्तां ने संग देखे हैं..,समंदर ने कतरे कतरे में धनक के रंग देखे है.....धनक = इन्द्रधनुष महताब उतर गया इक पायदां जमाल पर..,समंदर कहे छोड़...

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----- ।। गुजरे-लम्हे ॥ -----

  प्रकाशन तिथि : --  7-11-2011  एक लहर उतर गए साहिल भिगो गए..,एक नजर उतर गए लबों का तिल भिगो गए..,ओ नील समंदर गहरे हो इस कदर..,तुम रूह से उतर गए तो दिल भिगो गए..,आंस्ती में आफताब है आंस्ती में है...

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----- ॥ उत्तर-काण्ड ॥ -----

कथा अहई पुरातन काला । रहहि भूमि पर एक भू पाला ॥ असुर बंसी वृतासुर नामा । राजत रहि कर धरमन कामा ॥ यह कथा प्राचीन समय की है, भूमि पर एक एक राजा रहते थे ॥ असुर वंश के उस राजा का नाम वृत्रासुर था ।  और वह...

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------ ॥ उत्तर-काण्ड ।। ------

शुक्रवार, १ २ जुलाई, २ ० १ ३                                                                                        वृत्रासुर दैत मम अति नेहू । तुमहि कहु तिन कस दंड देहूँ ॥ पन तव बिनयन्हु सिरौधारूँ ।...

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----- ॥ श्रृंगार-सोरठा॥ -----

चँवर   चुनरिया   लाल,  घर   घेर      घघरिया     घाल । धनब  दुअरिया  ढाल, बरखा  छम   छम   नृत्य  करि ।१ /लौवन     यौवन   योग , तरसत  दृग   दरसत   लोग । रस   सिंगार   बियोग , थाई   रति   रस   भाउ   भरि...

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----- ॥ उत्तर- काण्ड ॥ -----

पा अनुग्रह प्रभु भए अति नंदे । तइ  एहि वादन निज मुख वंदे ।। सोम सील हे परम ग्यानी । कहुँ एक अरु तेइ जुतक कहानी ॥ लक्ष्मण का अश्व मेध हेतु आग्रह प्राप्त कर प्रभु श्री राम चन्द्र अत्यधिक प्रसन्न हुवे ।...

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----- || उत्तर-काण्ड || -----

पुनि इल फलतस ते बरदाने / इल सह इला नाम संधाने //प्रथम मास मह धर रूप नारी / त्रिभुवन कोमलि कमन कुँवारी //तत परतस निकसत ते बासे / असने एक सरुबर तर पासे //तहँवाँ सोम तनु भव रहेऊ / तपस चरन तपोबन रहेऊ...

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----- ॥ उर्दू के माने ॥ -----

'उर्दू' एक तुर्की शब्द है जिसका अर्थ है = छावनी, लश्करहिंदी या हिन्दुस्तानी भाषा का वह रूप जिसमें अरबी-फ़ारसी शब्द अधिक  व्यवहृत होते हों, उर्दू भाषा कहलाती है, प्रारम्भ में उर्दू को 'रखता' कहा जाता था...

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-----॥सुठि-सोरठे ॥ -----

कंकनि करधन धारि, मूर्धन धर मोर पाख /बृंदा बन रास बिहारि, मोहित कर चितबन हरे ।। सुधाधर बदन धार, लावन लोचन लाह लाख /सत सुर साध सँवार, कान्हा कर वेनु वरे //घन घर घाघर घार, फल्गुनि हरिद हरी द्राख । उरमन...

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----- ॥ शम्मे-रुखसार ॥ -----

 ----- ॥ शम्मे-रुखसार ॥ -----सुलग  उठी शम्मे-शाम,दमक  दार   रुखसार । लर्जिशे सितम जरीफ़ी  ,शबनम  गुले -किनार ॥ ऐ शम्म  महबूब  तिरा, इश्क  बहोत   मासूम । वस्ले-यार    से    महरुम,   मदफ़ूनो-मखदूम ॥ दूर...

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----- ।। गुजरे-लम्हे ॥ -----

काफ़ तलक दुन्या है खुदा बंद का कारख़ाना है.., जिस्मों की ज़र निगारी है रूहों का तानाबाना है..,निंदों का आसमाँ है और ख़्वाबों के परिंदे हैं..,पलकों की बंदिशे में कैदे-उल्फत का जमाना है..,खलाओं की रिंद...

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----- ।। गुजरे-लम्हे ॥ -----

दिल के दोज़े-दराजा में इक दर्दे-ग़म का दरिया है.., पलकों की फलक परवाजों पे कतरा होना पड़ता है..,अर्शे-जमीं हो जाने को फ़र्शे-ख़ाक बेचैन होती है.., नज़रों के दर-पेश-दरवाजों पे ज़र्रा होना पड़ता है..,...

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----- ।। उत्तर-काण्ड १० ।। -----

रामचंद्र तब नगर अजोधा । लै सद सम्मति परम सुबोधा ॥ अश्व मेध कर कारज धारे । महा जज्ञ के अयोजन कारे ॥तब फिर श्री राम चन्द्र ने अयोध्या नगर में समस्त श्रेष्ठ ज्ञानवानों के यथोचित विचार ग्रहण कर अश्वमेध का...

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-----।। उत्तर- काण्ड ११ ॥ -----

रविवार, १३ नवम्बर, २ ० १ ३                                                                                     अब सोइ आप लिए दल गाजे । सुबरन मई रथ पर बिराजे ॥ लरन भिरन ते पौर पयाने । जहँ बिचित्र बीर लव...

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----- ॥ उत्तर-काण्ड 12 ॥ -----

गुरूवार, ०३ अक्तूबर, २ ० १ ३                                                                                               पुनि रन कंठन करकत कैसे । कुलिस कुलीनस रवरत जैसे ॥ खैंच  करन लग सरित सरासन ।...

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----- ॥ उत्तर-काण्ड १३ ॥ -----

छन खलदल गंजन दुःख दाई । सत्रुहन राजन सों बढ़ आईं ॥ सोंहत रहि जे लवहु समाने । तिन कुस सन रन कारन आने ॥ इसी समय दुष्टों के दल वीरों को ताप देने वाले राजा शत्रुध्न आगे बढ़े और अपने भ्राता लव के सदृश्य ही...

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----- ॥ उत्तर-काण्ड १४ ॥ -----

गुरूवार, ०३ अक्तूबर, २ ० १ ३                                                                                               पुनि दूइ दल रन करमन भीरे । भीरत जस दूइ घन गम्भीरे ॥ चरत गगन अस सायक सोई । जस...

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----- ॥ दोहा-पद॥ -----

आयो दुआरि नौ बरस, पुरान लेइ बिदाए । करत सुवागत बाट-बन, पाँवर पलक बिछाए । १ । तरुनई अरुन किरन सों, चारुहु चरन रचाइ  । कूल कूलिनी निरत रत, रमझौरे खनकाइ  ।२ । ढोल मजीर सन झाँझरि, नद्पत संख बजाए । सुर...

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----- || उत्तर-काण्ड 9|| -----

पुनि इल फलतस ते बरदाने / इल सह इला नाम संधाने //प्रथम मास मह धर रूप नारी / त्रिभुवन कोमलि कमन कुँवारी //फिर  इस वरदान के फलस्वरूप इल, इल के साथ इला नाम भी हो गया  और प्रथम मास में उसने त्र्बुवन सुन्दरी...

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