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----- ।। गुजरे-लम्हे ॥ -----

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  प्रकाशन तिथि : --  7-11-2011  

एक लहर उतर गए साहिल भिगो गए..,
एक नजर उतर गए लबों का तिल भिगो गए..,
ओ नील समंदर गहरे हो इस कदर..,
तुम रूह से उतर गए तो दिल भिगो गए..,

आंस्ती में आफताब है आंस्ती में है जहर..,
आबरू से उतर गए तो कातिल भी हो गए..,

तेरा फलसफा देख लिया, मशगला देख लिया..,
जहां से उढ उढकर हमने, जलजला देख लिया..,

देंखे तेरी सफ्फाकी और देखें तेरा सफ़र..,
हम जुनूं से उतर गए तो मराहिल भी हो गए..,

देंखे आईने शफक और देंखें तेरा शहर.,
चारसूं से उतर गए तो मंजिल भी हो गए..,

बादबाने कश्ती हम हो के तरबतर..,
जुस्तजू से उतर गए तो काबिल भी हो गए..,

देखे तुन्हें अगर कोई देखे हमें अगर..,
हुबहू से उतर गए तो मुश्किल भी हो गए..,

उढ़ता तेरा जोबन..,
बांहों में आबोदाना..,
वो बलखाती लहरें..,
एक एक कर आना जाना..,

लहजा है आशिकाना..,
लुक छूप के दिल चुराना..,
वस्ता उनवां वल्लाह..,
पुरकश मुस्कराना..,

छम छम करता पानी..,
है शोर खानदानी..,
एक हद सराबोर हो..,
आये जो दरम्यानी..,

पढ़के तेरा सफीना..,
हो जाए चाके सीना..,
मुश्तहर मुक़द्दस..,
जैसे के हो मदीना..,

दामन तेरा सिलाबी..,
रुखसार महताबी..,
जब रंग हो गुलाबी..,
तासीर तेरी सैलाबी..,

महबुबो दरियाई..,
दिलकश तेरी रियाई..,
मुस्तफा मुजस्सम..,
घुलती रही स्याही..,

मौजों पे साफगोई..,
जैसे हो ताज कोई..,
शिकस्ती फिर अदाएं..,
मुमताजी सी वफायें..,

रेतों का आशियाना..,
चुपके से तोड़ जाना..,
बेशकीमती खजाना..,
हंस हंस के छोड़ जाना..,

अमरत अब्र में है और है अरब-ओ-गौहर..,
बिस्मिल भी हो गए कभी साइल भी हो गए.....

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