शुक्रवार, १ २ जुलाई, २ ० १ ३
वृत्रासुर दैत मम अति नेहू । तुमहि कहु तिन कस दंड देहूँ ॥
पन तव बिनयन्हु सिरौधारूँ । वंदन अर्चन अंगीकारूँ ॥
सो मैं आपन तेजस तिन्हू । एहि भाँति तिन्ह भाजन किन्हूँ ॥
मम तिख तेजस भयउ त्रिखंडा। बल वर्धन कर परम प्रचंडा ॥
एक तुहरे अंतस पैसेई । दुज अंस त्रिदस आजुध देईं ॥
तिजन अंस वर धरनि धरही । कारन कि जब वृत्रासुर मरही ॥
वृत्रासुर दैत मम अति नेहू । तुमहि कहु तिन कस दंड देहूँ ॥
पन तव बिनयन्हु सिरौधारूँ । वंदन अर्चन अंगीकारूँ ॥
सो मैं आपन तेजस तिन्हू । एहि भाँति तिन्ह भाजन किन्हूँ ॥
मम तिख तेजस भयउ त्रिखंडा। बल वर्धन कर परम प्रचंडा ॥
एक तुहरे अंतस पैसेई । दुज अंस त्रिदस आजुध देईं ॥
तिजन अंस वर धरनि धरही । कारन कि जब वृत्रासुर मरही ॥