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Channel: NEET-NEET
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----- || सभ्यता के सोपान पंथ || -----

 " आधुनिक सभ्यता वही है जो मनुष्य का चारीत्रिक उन्नय कर उसकी   जाति एवं समाज का समवेत विकास करे..,""  आधुनिक सभ्यता के अनुसरण से  पूर्व इसका भी  समाकलन हो कि   आधुनिक एवं पौराणिक सभ्यता की वैचारिकता...

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----- ।। भ्रष्टाचार के भँवर पाश ।। -----

"एक भ्रष्ट, अराजकता पूर्ण व्यवस्था का मत,विचार अथवा  अन्य किसी भी साधन से समर्थन या  समर्थन  की साग्रह  एवं  सार्वजनिक  प्रार्थना/अपील  का  अर्थ  है भ्रष्टाचार का  समर्थन,और भ्रष्टाचार का समर्थन आपको...

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----- ।। अमृत सूक्ति ।। -----

"माया का यह चारित्रिक लक्षण है की वह किसी को भी एक नहीं होने देती.....""ज्ञान, सीख अथवा विद्या की प्राप्ति उच्च आसंदी पर विराजित हो कर नहीं अपितु निम्न स्थान ग्रहण करने से होती है....."

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----- ।। मानवतावाद ।। -----

"ईश्वर क्या है?? एश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान एवं वैराग्यरूपयह छ: गुणों का संयुग्मन ही ईश्वर है..,""मनुष्य कौन हैं ?? जिनके चित में  संयम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, सदाचार,  जप,  योग (ध्यान), राग,...

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-----॥ शुचि करमन मानस जग माने ॥ -----

" शुद्ध बुद्धि, मृदु भाषा, सदाचरण, निष्कलंक चरित्र ही मनुष्य  के वास्तविक वस्त्र हैं..,"" विद्यमान समय में भी भारत निर्वस्त्र भिक्षुओं का देश है  पूर्व एवं वर्त्तमान  में केवल  यही  अंतर है कि पूर्व...

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----- ॥ भ्रष्टाचार छोड़ो - संसाधन जोड़ो ॥ -----

मूल्य वृद्धि वास्तव में मुद्रा का अवमूल्यन है..,वस्तु का वास्तविक मूल्य उसकी आवश्यकताएवं उपलब्धता पर आधारित होता है..,निजी उपक्रमों द्वारा अर्जित व्यवसायिक लाभ से वह स्वयं लाभान्वित होते हैं,लोक...

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----- ॥ कण-कण में भगवान ॥ -----

जड़ व चेतन के संगठित स्वरूप का ही गुणधर्म धरा करते हुवेसगुण अर्थात दृश्यमान होते  है, विघटन के पश्चात वह निर्गुणअर्थात अदृश्य हो जाता है..... " जीव, निर्जीव का संघटक है..,  निर्जीव, जीव  का विघटक...

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----- ॥ स्वातंत्रता का मर्म । -----

आन्दोलन मर्त्य ( मरण धर्मी)  होते हैं , यदि उद्देश्य अमर हो तो वह मृतोत्थित हो जाते हैं.....भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कुछ लोगों के संघर्ष का उद्देश्य केवल मात्र सत्ता प्राप्ति था और वे अपने...

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-----।। नारी नयन पीर भरी नीर भरी उरसीज ।। -----

आदि काल से लेकर विद्यमान समय तक नारी, पुरुषो के लिए सदैव उपभोग कीवस्तु ही रही , कहीं उसकी सहमति से तो कहीं असहमति से..,विवाह क्या है ??विवाह एक  ऐसी  पारिवारिक  संस्था है जिसके अंतर्गत एक स्त्री एवं एक...

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-----।। दांपत्य सम्बन्ध - एक दृष्टिकोण ।। -----

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में नव निर्मित संविधान लागू हुवा, संविधान में निहितअधिनियम के उपबंधों में 'एकल विवाह पद्धति' का विधान किया गया..,'एकल विवाह पद्धति' का अर्थ है अपने सम्पूर्ण जीवन काल...

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----- || दुर्वासना जनित कुदृष्टिनिपात, अंग भंगिमा, दुरालाप एवं अंग...

दुर्वासना जनित कुदृष्टिनिपात, अंग भंगिमा एवं दुरालाप एक स्त्री  के द्वारा एक पुरुष के प्रति अपवादित अवस्था के अतिरिक्त किसी पुरुष अथवा किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति...

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----- ॥ राजा और राजनीति ॥ -----

" जन संचालन  तंत्र की  नीतियाँ एवं  विधि-विधान जब  लोकहित  के  विरुद्ध  व्यक्तिपरक होकर व्यक्ति विशेष के हित में कार्य करने लगे तो वह राजतंत्र है  यदि  व्यवहार  में  भ्रष्ट  आचरण  का  भी  समावेश हो, तो...

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----- ॥ दोहा-पद ॥ -----

 छाप तिलक --- हजरत अमीर खुसरो रूप संपद लै लीन्ही रे! सारी रैना जगाई के..,भए धनी मानी मोरे साँवरिया.., धनवारी कह कर चीन्ही रे! सारी रैना जगाई के.., हिरनई कंठी संकास कलईयाँ.., नैन तिजूरी धरि तीन्ही रे!...

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------ ॥ उत्तर-काण्ड ॥ -----

चौदह बरस किये बन बासे । तपस चरन पर  प्रभु परवासे ॥ भयउ राजन अजोधा राजे । चहुँ  कोत सुख सांति बिराजे ॥ हर पर लंका बसि बैदेही । तेहि बिषय जन भए संदेही ॥ अह बसी सिय रावन निकाई । बहुसह पुरजन बात बनाईं एही...

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----- ॥ दोहा-पद॥ -----

आओ  तुम  कौ  भरत  खन  के  दरसन   करवाएँ ।जहँ  हिम  सैल  सिर पावन  सुर सरित बही आए ॥मुँदरी   पाछु   धरे   मनिक   पंच    करज   फैलाए ।धनद सम बर धनिक बनिक जहँ मँगते  कहलाएँ ॥बैसे  जहँ  अस  राउ  आसन  कारा...

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----- ॥ दोहा-पद॥ -----

एक  नगर  माली  के  बन  डालि   डालि  भरपूर ।।बानि   बानि   के  फर   फूर   धानी   धानी   झूर ।।ताप   रितु  तर  बरखा   पर  अवनु   सरद  हेमंत ।सीत   सिसिर   के   रथ   उतर   रागे  रंग  बसंत ।।सूझ बूझ परख कर...

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----- ॥ उत्तर-काण्ड ॥ -----

स्वरूप संपद रनिबासन की ।  तपस्वनी तऊ तपो बन की ॥ बन बरस बरस बर तापन की ।  बहुरिहि तपकृस तन काँचन की ॥ महातिमह ग्रंथन रचनाकर । मन हो मन मननत रतनाकर ॥ अरथ उद्धरत बखत बिरताए । देखउत प्रसव काल नियराए ॥ उदक...

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-----॥ सोरण सोरठे ॥ -----

कंठ कटि कनक केर  एक नारंगी सी नार ।उद बहनु उदक हेर सिर बिंदु उदकाति चली ।१।सर सौं हैं सरसाए सरसई  सर सिरु धराए । हरिद बरन अलकाए सुम सुरभि गंधाति चली ।२। कंज कलस कर भाल कूल कालिंदी निकार ।नागिन से कलि...

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----- ॥ उत्तर-काण्ड ॥ -----

पिया बिरह पर को कर केही । बखत बितावति बन बैदेही ॥ दौ सुत सह सिय भइ बनबासी । पल छिनु दिनु दिनु भए मासी ॥प्रियतम के बिछोह का दुःख किन्तु किससे कहती ? अत वैदेही अपना विरही समय वन ही में बिता रही थी ॥ दो...

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----- ॥ उत्तर-काण्ड ॥ -----

द्रुम दल सकल फूल फल पाखे । खग मृग जीउ जंतु बन साखे ॥पलत दोउ आश्रम सुर धामा । रघुकुल दीपक नयनभिरामा ॥ वृक्षों के दल फूल फल एवं उनकी पत्ते और पक्षी, मृग आदि समस्त जीव जंतु साथी बन गए रघु के ये नेत्रप्रिय...

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