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----- ॥ दोहा-द्वादश २० ॥ -----

भेस भाषा देस जनित धर्माचार बिचार | देस भूमि सहुँ अहंता गहे अर्थ बिस्तार || १ || भावार्थ : - राष्ट्र विशेष में प्रचलित भूषा, भाषा, आचार-विचार,आहार-विहार, परम्पराएं लोक रीतियां सभ्यता संस्कृति,...

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----- || दोहा -विंशी १ || ----

जोग बिनु कहा राखिये जाग बिनु का दिसाए |कर बिनहि कहा पाइये दए बिनु का लए जाए || १ ||भावार्थ : - रक्षा बिना कुछ सुरक्षित नहीं रहता, जागृति बिना कुछ दिखाई नहीं देता | जिसने किया नहीं उसे कुछ प्राप्त नहीं...

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----- ॥ दोहा-द्वादश २१ ॥ -----

जनमानस के तंत्र में भयो अँधेरो  राज | तहँ जान निजोगते जहँ चले सुई ते काज || १ || भावार्थ : - भारत ! प्रजातंत्र की शासन व्यवस्था में नीति नियमों योजनाओं का सर्वत्र अभाव है  इस तंत्र में जहाँ सूचि से...

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----- ॥ हर्फ़े-शोशा 11॥ -----

दिल को सियाहे-बख़्त किए उठते हो सुबहे रोज..,मासूम- ओ - मज़लूम को फिर करते हो जबहे रोज..,पीरानेपीर- ओ- मुर्शिद  अरे कहते हो खुद को..,जफासियारी के दस्तूर को देते हो जगहे रोज़.....

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----- ॥पद्म-पद ३३ ॥ -----

                             बुधवार, १४ मई, २०१९                          -----|| राग-मल्हार || ----बरखे घटा घनकारे नयन से.., घिर घिर आवैं सो पहिले सावन से..,  पलकन कै सीपियन में मोतियन की...

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----- ॥ हर्फ़े-शोशा 12 ॥ -----,

ऐ शबे-नीम ज़रा ख़्वाबों के कारिंदों से कहो..,इन निग़ाहों को भी जऱ निग़ारी की जरुरत है.....शबे-नीम = अर्धरात्रिकारिंदों = सुनारजऱ निग़ारी /= सोने का सुनहरा कामबर्क़-ए-ताब-ओ-ऱगे-अब्र के क्या मानी है..,ऐ...

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----- ॥पद्म-पद 34 ॥ -

 रे पलकन्हि पाँखि पखेरे, घनिघनि अलकनि पिंजर देई कन खाँवहि छिन छिन केरे..,भोर भईं नभ उड़ि उड़ि जावैं सो उठिते मूँह अँधेरे ..,पहरनन्हि के परधन पहरैं प्यारे पियहि को हेरें.., बैसत पुनि छत छत छाजन पै सुरति...

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----- || दोहा-एकादश || -----

बेद बिधि बिधानतस एक सनातन संविधान |नेम नीति निरधार जौ दए जथारथ ग्यान ||भावार्थ : - वेद वस्तुत: वैधानिक सिद्धांतों का प्रबंधन स्वरूप एक सनातन संविधान है जो नियम व् नीतियों का निर्धारण कर यथार्थ ज्ञान का...

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----- || दोहा -विंशी 2 || ----

बन में सिँह बहु रहि सकैं, तूनी में बहु बान |दोइ खाँड़ा न रह सकै, कबहुँक एकै पिधान ||१ || भावार्थ : - वन में बहुतक सिंह रह सकते हैं तूणीर में बहुतक बाण रह सकते हैं, किन्तु एक पिधान में दो कृपाण एक साथ...

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----- ॥ टिप्पणी १९ ॥ -----,

भारत में बाह्यवर्ग की सम्प्रभुता  मुस्लिम भारतीय नहीं हैं क्योंकि आपके पूर्वज लगभग डेढ़ सहस्त्र वर्ष पूर्व इस देश में आए थे |➝धर्म और जाति वह उपकरण है जो आपकी पहचान निर्दिष्ट कर यह संसूचित करते हैं कि...

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----- ॥ टिप्पणी 21 ॥ -----,

ओवैसी के बयान "हम किरायदार नहीं,बराबर के हिस्सेदार हैं"को किस नज़र से देखा जाये?भारत में सभी मुस्लिमों का उत्तर होगा - हाँ ! सही तो कह रह हैं…..और भारत वंशी के उत्तर : - हम पहले इंसान है, इंसान का भाई...

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----- ॥ हर्फ़े-शोशा 14 ॥ -----

 कहीं इशाअते-अख़बार हैं कहीं हाकिमों के तख़्ते हैं..,शाह हम भी हैं अपने घर के क़लम हम भी रख्ते हैं.....-------------------------------बिक रहा ख़बर में हर अखबार आदमी..,  ख़रीदे है सरकार, हो खबरदार...

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----- ॥पद्म-पद 35 ॥ -----,

------ || राग-मेघमल्हार | -----गरजि गरजि बरखा ऋतू आईघोरि घटा एक एक परछाईगरजि गरजि नभ घन आए ,बादत मधुर मधुर अल्हादत नदि परबत परी पधराए | १ |घुमरि घटा छननन झनकारे देखु बरखत छत छत छाए |झुनुरु झुनुरु करि...

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----- || राग-मेघ मल्हार || -----

  ----- || राग-मेघ मल्हार || -----बहुर बहुर रे बावरि बरखा, री बहुरयो पावस मास रे,बिहुरन अबरु बेर न कीज्यो,कहे तव बाबुला अगास रे ||पिय कर नगरिहि पंथ जुहारै,नैनन्हि लाए थकि गै हारे,लखत लखत पलकन्हि भइँ...

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----- ॥ हर्फ़े-शोशा 13 ॥ -----

दुन्या इक बाज़ारे-शौक़ है..,ख़्वाहिशें-दराज़ हैं ख़रीदार उसकी..... ---------------कहतें हैं जो सब रह दीन-धर्म सब मेरे.., उस क़ाफ़िले-क़दम का तमाशा भी देखिए.....रह= राह,पंथ  -----------------उन दोनों की फ़ितरत...

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----- || दोहा -विंशी 3 || ----,

करम केरि पतवार नहि सीस पाप का भार | तोरि नाउ कस होएगी भव सागर ते पार | १ |भावार्थ : - सद्कर्मों की पतवार नहीं है उसपर पापों का भार | रे मनुष्य ! तेरे जीवन की नैया इस संसार सागर से कैसे पार होगी | कहता...

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----- || दोहा -विंशी 4 || ----,

जिउ हते न हिंसा करें देय ना केहि सूल | धर्म बरती रहत गहैं  साक पात फल फूल || १ || भावार्थ : - किसी जीव की हत्या न  किसी की हिंसा करें  ही किसी को कष्टापन्न करें  | हमें धर्मानुकल आचरण करते हुवे अपने...

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----- || दोहा -विंशी 5 || ----

पसरा ब्यभिचार जबहि हिंसक भया अहार |मानस निपजे रोग अस जाका नहि उपचार॥भावार्थ:-- जब व्यभिचार अर्थात अनुचित यौन-संबंध ने पैर पसारे और आहार हिंसा जनित हो गया मानव ने ऐसे ऐसे रोगों को  जन्म दिया जिसका...

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-----|| GYAAN-GANGAA || -----,

===> ''क्षुधा प्राणवान का प्रथम रोग है भोजन उसकी औषधि है.....'' ===>''उदर की अग्नि भोजन से शांत होती है धन से   नहीं.....''

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-----|| दोहा-विंशी ६ || -----

जोड़ जोड़ करि होड़ मह जोड़ा लाख करोड़ | अंतकाल जब आ भया गया सबहि कछु छोड़ || १ || रोग संचारत चहुँ दिसि रोग सायिका नाहि |करत गुहारि रोगारत जीवन साँसत माहि || २ || जिअ हनत ब्यापत महमारी | जन जन केरी करत संहारी...

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-----|| दोहा-विंशी 7 || -----

 ढली शाम वो सुरमई,लगा बदन पे आग | फिर रौशनी बखेरते लो जल उठे चराग़ || १ || चली बादे गुलबहार मुश्के बारो माँद | सहन सहन मुस्करा के निकल रहा वो चाँद || २|| मर्ज़ की शक़्ल लिये फिर क़ातिल है मुस्तैद | दरो बाम...

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----- || दोहा -विंशी८ ||----,

हरिअर हरिअर भूमि कहुँ करिकै सत्यानास | काँकरी के बिकसे बन वाका नाउ विकास || १|| नारी तोरी तीनि गति चतुरथी कोउ नाए l पति पुत अरु बंधु बाँधव सतजन दियो बताए ll२ || भावार्थ :- संत जनो ने नारी की तीन ही गति...

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----- || दोहा -विंशी९ || ----,

मानस तोरी करनि ते नाघत निज मरजाद | चला बिनासत तव जगत सिंधु करत घननाद || १ || भावार्थ :-- हे मानव ! तेरे  कृत्यों के कारण अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर समुद्र आज घोर गर्जना करता तेरे संसार को नष्ट-विनष्ट...

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----- || दोहा -विंशी १० || ----,

 खाटे मीठ स्वादु कौ तरसै सब  परिबार | बिरते तापस रितु बिनहि ढारे आम अचार || १ || एक बार परगट पुनि तुम हो जाओ भगवान | नित भाँवरती धरति के साँसत में हैं प्रान || २|| बड़ी बड़ी मंडि ते भले छोटे छोटे हाट |...

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----- ॥ हर्फ़े-शोशा 15॥ -----,

आजादियाँ सातवेँ आसमान चढ़ी..,जबहे कारी फलके परवान चढ़ी.., जाता रहा दुन्या वाले का भी खौफ़..,बदनियति एकऔर पॉयदान चढ़ी..... 

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