गुरूवार, ०३ अक्तूबर, २ ० १ ३
पुनि दूइ दल रन करमन भीरे । भीरत जस दूइ घन गम्भीरे ॥
चरत गगन अस सायक सोई । जस धारा धर बाहक होही ॥
सौतत सैनिक होवत सोहें । हरीस कुस के सौंमुख होहें ॥
बढ़इ बाहु बल दिए लंगूरे । परइ धरा पद उराइ धूरे ॥
एक पल कुस दिसि धुंध धराई । निकसत धनु सर इत उत धाईं ॥
कल कोमल करताल मलियाए । निर्झर जर सन परम पद पाए ॥
हटबत सुभट कहरत भू गिरे । को इत तिरे कोउ उत तिरे ॥
उठइ धरा पुनि धाए सुभट्टे । दोउ भाइ मुख मारि झपट्टे ॥
पुनि कर्नी कारन लौ लग, कुस कास कोदंड ।
चरत तरत सरत सल्लग, करत प्रघोष प्रचंड ॥
मंगलवार,२२, अक्तूबर, २ ० १ ३
पुनि तेहि कंठ करकन कैसे । कुलिस कुलीनस घटघन जैसे ॥
खैंच करन लग सरित सरासन । ऐंच नयन सर चरित सनासन ।
फिर (संरक्षक हो रन भूमि में उतरते ही) उसका गला कैसे गर्जा जैसे जल युक्त घने बादलों का साथ प्राप्त कर बिजली गरजती है ॥ फिर सुग्रीव ने धनुष की प्रत्यंचा को कान तक खिंच कर तिरछे लोचन कर सनासन की ध्वनी करते तीर छोड़े ॥
उपार उपल सैल अनेके । धाए कुस सों भुज दंड लेके ॥
किए खंडन तिन कुस एक साँसे । खेलत उदयत हाँस बिहाँसे ॥
अनेकों शिलाओं और पत्थरों को उखाड़ कर अपनी भुजाओं में लिए कुस की ओर दौड़े ॥ जिन्हें कुश ने हँसी-खेल में एक ही स्वांस में खंडित कर दिया ॥
पुनि सुग्रीव बहुसहि बिकराला । धरे कर एक परबत बिसाला ॥
कुस लखित कर लाखे लिलारे । औरु सबल ता पर दे मारे ॥
फिर सुग्रीव ने अत्यधिक भयानक एक विशाल पर्वत लिया, और कुश को लक्ष्य कर उसके मस्तक को लक्ष्य चिन्ह कर पुरे बल के साथ उस पर दे मारा ॥
दरसत परबत निज सों आने । कुस कोदंड बान संधाने ॥
करत प्रहार कारि पिसूता । भसम सरुप किए बस्मी भूता ॥
जब कुश ने उस पर्वत को अपनी ओर आते देखा तो तत्काल ही धनुष में बाण का संधान कर उस पर्वत पर आघात कर उसे चूर्ण कर
उसे (महारूद्र के शरीर में लगाने योग्य) भस्म के सदृश्य करते हुवे, नष्ट कर दिया ॥
देख कुस कौसल सुग्रीव, भयउ भारी अमर्ष ।
बानर राउ मन ही मन, किये बिचार बिमर्ष ॥
कुश का ऐसा रन कौशल देख कर वानर राज सुग्रीव को अत्यंतक्रोधित हो गए । बाल बुद्धि का ऐसा असीम बल । वानर राज सुग्रीव मन ही मन युद्ध की अगला प्रहार कैसा हो इस पर विवेचन करने लगे ॥
बुधवार, २ ३ अक्तूबर,२ ० १ ३
जोइ जान रिपु लघुत अकारी । सोइ मानत भूर भइ भारी ॥
किरी कलेबर जिमि लघुकारी । पैठत नासिक गरु गज मारी ॥
लघु गुन लछन इत लिखिनि लेखे । नयन पट उत गगन का देखे ॥
सुग्रीव के कर क्रोध पताका । प्रहरत बहि सन गहन सलाका ॥
एक तरुबर दरसत कर तासू । धावत मारन कुस चर आसू ॥
नाम बान लइ बरुनइ धारा । पथ प्रसारित कुस बिपुल अकारा ॥
चहूँ पुर दिग सिरु घेर हरीसा । कसा कास के बाँधि कपीसा ॥
बलबाल के कमल कर कासे । बँधइ सुग्रीव कोमली पासे ॥
होत असहाय नृतू निपाते । दिअस्त तिन भट भागि छितराते
बहुरि बटुक सह लव कुस भाई । हर्ष परस्पर कंठ लगाईं ॥
लखहन बरखन पर, अंगन रनकर, संस्फाल फेट फुटे ।
बल दुई बर्तिका, जस दीपालिका, तस भाई दुई जुटे ॥
संग्राम बिजय कर, सिया के कुँवर, कमलिन कर कलस धरे ।
बाजि दुंदुभ कल, नादत मर्दल, धन्बन ध्वजा प्रहरे ॥
पुनि दूइ दल रन करमन भीरे । भीरत जस दूइ घन गम्भीरे ॥
चरत गगन अस सायक सोई । जस धारा धर बाहक होही ॥
सौतत सैनिक होवत सोहें । हरीस कुस के सौंमुख होहें ॥
बढ़इ बाहु बल दिए लंगूरे । परइ धरा पद उराइ धूरे ॥
एक पल कुस दिसि धुंध धराई । निकसत धनु सर इत उत धाईं ॥
कल कोमल करताल मलियाए । निर्झर जर सन परम पद पाए ॥
हटबत सुभट कहरत भू गिरे । को इत तिरे कोउ उत तिरे ॥
उठइ धरा पुनि धाए सुभट्टे । दोउ भाइ मुख मारि झपट्टे ॥
पुनि कर्नी कारन लौ लग, कुस कास कोदंड ।
चरत तरत सरत सल्लग, करत प्रघोष प्रचंड ॥
मंगलवार,२२, अक्तूबर, २ ० १ ३
पुनि तेहि कंठ करकन कैसे । कुलिस कुलीनस घटघन जैसे ॥
खैंच करन लग सरित सरासन । ऐंच नयन सर चरित सनासन ।
फिर (संरक्षक हो रन भूमि में उतरते ही) उसका गला कैसे गर्जा जैसे जल युक्त घने बादलों का साथ प्राप्त कर बिजली गरजती है ॥ फिर सुग्रीव ने धनुष की प्रत्यंचा को कान तक खिंच कर तिरछे लोचन कर सनासन की ध्वनी करते तीर छोड़े ॥
उपार उपल सैल अनेके । धाए कुस सों भुज दंड लेके ॥
किए खंडन तिन कुस एक साँसे । खेलत उदयत हाँस बिहाँसे ॥
अनेकों शिलाओं और पत्थरों को उखाड़ कर अपनी भुजाओं में लिए कुस की ओर दौड़े ॥ जिन्हें कुश ने हँसी-खेल में एक ही स्वांस में खंडित कर दिया ॥
पुनि सुग्रीव बहुसहि बिकराला । धरे कर एक परबत बिसाला ॥
कुस लखित कर लाखे लिलारे । औरु सबल ता पर दे मारे ॥
फिर सुग्रीव ने अत्यधिक भयानक एक विशाल पर्वत लिया, और कुश को लक्ष्य कर उसके मस्तक को लक्ष्य चिन्ह कर पुरे बल के साथ उस पर दे मारा ॥
दरसत परबत निज सों आने । कुस कोदंड बान संधाने ॥
करत प्रहार कारि पिसूता । भसम सरुप किए बस्मी भूता ॥
जब कुश ने उस पर्वत को अपनी ओर आते देखा तो तत्काल ही धनुष में बाण का संधान कर उस पर्वत पर आघात कर उसे चूर्ण कर
उसे (महारूद्र के शरीर में लगाने योग्य) भस्म के सदृश्य करते हुवे, नष्ट कर दिया ॥
देख कुस कौसल सुग्रीव, भयउ भारी अमर्ष ।
बानर राउ मन ही मन, किये बिचार बिमर्ष ॥
कुश का ऐसा रन कौशल देख कर वानर राज सुग्रीव को अत्यंतक्रोधित हो गए । बाल बुद्धि का ऐसा असीम बल । वानर राज सुग्रीव मन ही मन युद्ध की अगला प्रहार कैसा हो इस पर विवेचन करने लगे ॥
बुधवार, २ ३ अक्तूबर,२ ० १ ३
जोइ जान रिपु लघुत अकारी । सोइ मानत भूर भइ भारी ॥
किरी कलेबर जिमि लघुकारी । पैठत नासिक गरु गज मारी ॥
लघु गुन लछन इत लिखिनि लेखे । नयन पट उत गगन का देखे ॥
सुग्रीव के कर क्रोध पताका । प्रहरत बहि सन गहन सलाका ॥
एक तरुबर दरसत कर तासू । धावत मारन कुस चर आसू ॥
नाम बान लइ बरुनइ धारा । पथ प्रसारित कुस बिपुल अकारा ॥
चहूँ पुर दिग सिरु घेर हरीसा । कसा कास के बाँधि कपीसा ॥
बलबाल के कमल कर कासे । बँधइ सुग्रीव कोमली पासे ॥
होत असहाय नृतू निपाते । दिअस्त तिन भट भागि छितराते
बहुरि बटुक सह लव कुस भाई । हर्ष परस्पर कंठ लगाईं ॥
लखहन बरखन पर, अंगन रनकर, संस्फाल फेट फुटे ।
बल दुई बर्तिका, जस दीपालिका, तस भाई दुई जुटे ॥
संग्राम बिजय कर, सिया के कुँवर, कमलिन कर कलस धरे ।
बाजि दुंदुभ कल, नादत मर्दल, धन्बन ध्वजा प्रहरे ॥