----- ॥ दोहा-द्वादश १३ ॥ -----
अजहुँ तो हम्म दरसिआ जग मरता चलि जाए |एक दिन ऐसा आएगा मरते हम दरसाए || १ ||भावार्थ : - अभी हमें संसार मृत्यु को प्राप्त होते दर्शित हो रहा है एक दिन ऐसा भी आएगा जब संसार को हम मृतक दर्शित होंगे |सार...
View Article----- ॥ टिप्पणी १९ ॥ -----,
भारत में बाह्यवर्ग की सम्प्रभुता मुस्लिम भारतीय नहीं हैं क्योंकि आपके पूर्वज लगभग डेढ़ सहस्त्र वर्ष पूर्व इस देश में आए थे |➝धर्म और जाति वह उपकरण है जो आपकी पहचान निर्दिष्ट कर यह संसूचित करते हैं कि...
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अजहुँ तो हम्म दरसिआ जग मरता चलि जाए |एक दिन ऐसा आएगा मरते हम दरसाए || १ ||भावार्थ : - अभी हमें संसार मृत्यु को प्राप्त होते दर्शित हो रहा है एक दिन ऐसा भी आएगा जब संसार को हम मृतक दर्शित होंगे |सार...
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भारत में बाह्यवर्ग की सम्प्रभुता मुस्लिम भारतीय नहीं हैं क्योंकि आपके पूर्वज लगभग डेढ़ सहस्त्र वर्ष पूर्व इस देश में आए थे |➝धर्म और जाति वह उपकरण है जो आपकी पहचान निर्दिष्ट कर यह संसूचित करते हैं कि...
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भारत भूमि सोंहि जन्माइहिं | तासु जनित भारतिअ कहाइहि || भारत बंसज भारत बासी | अबर बंस यहँ हसि अधिबासी || जिसका जन्म भारत भूमि में हुवा है उन पूर्वजों की संतान भारतीय हैं भारतीय का अर्थ है भारतवासी या...
View Article----- ॥पद्म-पद ३१॥ -----,
----- || राग- || -----नीर भरे भए नैन बदरिया..,चरन धरत पितु मातु दुअरिआ..,अलक झरी करि अश्रु भर लाई बरखत भई पलक बदरिया..,बूँदि बूंदि गह भीजत आँचर ज्यौं पधरेउ पाँउ पँवरिआ..,घरि घरि बिरमावत भँवर घरी...
View Article----- ॥ टिप्पणी 21 ॥ -----,
ओवैसी के बयान "हम किरायदार नहीं,बराबर के हिस्सेदार हैं"को किस नज़र से देखा जाये?भारत में सभी मुस्लिमों का उत्तर होगा - हाँ ! सही तो कह रह हैं…..और भारत वंशी के उत्तर : - हम पहले इंसान है, इंसान का भाई...
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----- || राग- || -----नीर भरे भए नैन बदरिया..,चरन धरत पितु मातु दुअरिआ..,अलक झरी करि अश्रु भर लाई बरखत भई पलक बदरिया..,बूँदि बूंदि गह भीजत आँचर ज्यौं पधरेउ पाँउ पँवरिआ..,घरि घरि बिरमावत भँवर घरी...
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अजहुँ तो हम्म दरसिआ जग मरता चलि जाए |एक दिन ऐसा आएगा मरते हम दरसाए || १ ||भावार्थ : - अभी हमें संसार मृत्यु को प्राप्त होते दर्शित हो रहा है एक दिन ऐसा भी आएगा जब संसार को हम मृतक दर्शित होंगे |सार...
View Article----- ॥ हर्फ़े-शोशा 14 ॥ -----
कहीं इशाअते-अख़बार हैं कहीं हाकिमों के तख़्ते हैं..,शाह हम भी हैं अपने घर के क़लम हम भी रख्ते हैं.....-------------------------------बिक रहा ख़बर में हर अखबार आदमी.., ख़रीदे है सरकार, हो खबरदार...
View Article----- ॥पद्म-पद 35 ॥ -----,
------ || राग-मेघमल्हार | -----गरजि गरजि बरखा ऋतू आईघोरि घटा एक एक परछाईगरजि गरजि नभ घन आए ,बादत मधुर मधुर अल्हादत नदि परबत परी पधराए | १ |घुमरि घटा छननन झनकारे देखु बरखत छत छत छाए |झुनुरु झुनुरु करि...
View Article----- || राग-मेघ मल्हार || -----
----- || राग-मेघ मल्हार || -----बहुर बहुर रे बावरि बरखा, री बहुरयो पावस मास रे,बिहुरन अबरु बेर न कीज्यो,कहे तव बाबुला अगास रे ||पिय कर नगरिहि पंथ जुहारै,नैनन्हि लाए थकि गै हारे,लखत लखत पलकन्हि भइँ...
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दुन्या इक बाज़ारे-शौक़ है..,ख़्वाहिशें-दराज़ हैं ख़रीदार उसकी..... ---------------कहतें हैं जो सब रह दीन-धर्म सब मेरे.., उस क़ाफ़िले-क़दम का तमाशा भी देखिए.....रह= राह,पंथ -----------------उन दोनों की फ़ितरत...
View Article----- || दोहा -विंशी 3 || ----,
करम केरि पतवार नहि सीस पाप का भार | तोरि नाउ कस होएगी भव सागर ते पार | १ |भावार्थ : - सद्कर्मों की पतवार नहीं है उसपर पापों का भार | रे मनुष्य ! तेरे जीवन की नैया इस संसार सागर से कैसे पार होगी | कहता...
View Article----- || दोहा -विंशी 4 || ----,
जिउ हते न हिंसा करें देय ना केहि सूल | धर्म बरती रहत गहैं साक पात फल फूल || १ || भावार्थ : - किसी जीव की हत्या न किसी की हिंसा करें ही किसी को कष्टापन्न करें | हमें धर्मानुकल आचरण करते हुवे अपने...
View Article----- || दोहा -विंशी 5 || ----
पसरा ब्यभिचार जबहि हिंसक भया अहार |मानस निपजे रोग अस जाका नहि उपचार॥भावार्थ:-- जब व्यभिचार अर्थात अनुचित यौन-संबंध ने पैर पसारे और आहार हिंसा जनित हो गया मानव ने ऐसे ऐसे रोगों को जन्म दिया जिसका...
View Article-----|| GYAAN-GANGAA || -----,
===> ''क्षुधा प्राणवान का प्रथम रोग है भोजन उसकी औषधि है.....'' ===>''उदर की अग्नि भोजन से शांत होती है धन से नहीं.....''
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जोड़ जोड़ करि होड़ मह जोड़ा लाख करोड़ | अंतकाल जब आ भया गया सबहि कछु छोड़ || १ || रोग संचारत चहुँ दिसि रोग सायिका नाहि |करत गुहारि रोगारत जीवन साँसत माहि || २ || जिअ हनत ब्यापत महमारी | जन जन केरी करत संहारी...
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ढली शाम वो सुरमई,लगा बदन पे आग | फिर रौशनी बखेरते लो जल उठे चराग़ || १ || चली बादे गुलबहार मुश्के बारो माँद | सहन सहन मुस्करा के निकल रहा वो चाँद || २|| मर्ज़ की शक़्ल लिये फिर क़ातिल है मुस्तैद | दरो बाम...
View Article----- || दोहा -विंशी८ ||----,
हरिअर हरिअर भूमि कहुँ करिकै सत्यानास | काँकरी के बिकसे बन वाका नाउ विकास || १|| नारी तोरी तीनि गति चतुरथी कोउ नाए l पति पुत अरु बंधु बाँधव सतजन दियो बताए ll२ || भावार्थ :- संत जनो ने नारी की तीन ही गति...
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