ढली शाम वो सुरमई,लगा बदन पे आग |
फिर रौशनी बखेरते लो जल उठे चराग़ || १ ||
चली बादे गुलबहार मुश्के बारो माँद |
सहन सहन मुस्करा के निकल रहा वो चाँद || २||
मर्ज़ की शक़्ल लिये फिर क़ातिल है मुस्तैद |
दरो बाम कफ़स किए फिर जिंदगी हुई क़ैद || ३ ||
कफ़स =पिंजड़ा
ये महले मुअज्ज़म औ ये आलिशा मकान |
नादाँ को मालुम नहीं दो दिन की है जान || ४ ||
सुन ऐ नादान तुझको है गर जान अज़ीज |
चेहरे को हिज़ाब दे रह अपनी दहलीज़ || ५ ||
इधर मर्ज़े नामुराद और उधर तूफ़ान |
ऐ नादा इन्सा तिरी मुश्किल में है जान || ६ ||
साहिलों पे बेख्याल दरिया करता मौज़ |
पीछे हमला बोलती तूफानों की फ़ौज || ७ ||
बादे वारफ्तार वो तूफ़ां बे मक़सूद |
सरो सब्ज़ दरख्तो दर हुवे नेस्तनाबूद || ८ ||
इक दिल इक जान इक सर और सौदे हज़ार |
न दुआ पे यकीन अब न दवा का एतबार || ९ ||
इक तो ये फाँका कशी उसपे ये बीमारि |
चार सूँ आह कू ब कू मुश्किल औ दुश्वारि || १० ||
देखि हमने जम्हुरियत तेरी रय्यत दारि |
शहर शहर हर रह गुज़र दहशत औ बीमारि || ११ ||
कहीँ मरीज़े ग़म कहीं, दरिया औ तूफ़ान |
कहीं गिरते जहाज़ पर, आफ़त में है जान || १२ ||
मरीज़े ग़म दरम्याँ आफ़त जदा जहान |
आह पोशे निग़ाह में और लबों पे जान || १३ ||
सब बाज़ार बंद हैं खुला काला बज़ार |
जमाख़ोर का ख़ूब याँ चलता क़ारोबार || १४ ||
साहिल साहिल किश्तियाँ किश्ति किश्ति बादबाँ |
दरिआ दरिआ नाख़ुदा लहरो लहर तूफाँ || १५ ||
है ये मुश्किल वक़्त पर नहीं हम फिक्र मंद |
दिल है होशो हिम्मती औ हौसले बुलंद || १६ ||