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----- ॥ दोहा-द्वादश १३ ॥ -----

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अजहुँ तो हम्म दरसिआ जग मरता चलि जाए |
एक दिन ऐसा आएगा मरते हम दरसाए  || १  ||
भावार्थ : - अभी हमें संसार मृत्यु को प्राप्त होते दर्शित हो रहा है एक दिन ऐसा भी आएगा जब संसार को हम मृतक दर्शित होंगे |

सार यह है कि : - जीवन का अहंकार कदापि नहीं करना चाहिए.....

भाड़ मचाए भीड़ संग चले भेड़ की चाल |
जो बैरी भए आपनो वाको को रखवाल || २ ||
भावार्थ : - उपद्रव मचाती या धक्कमधक्का करती भीड़ के साथ भेड़ के जैसे अंधानुकरण कर जो स्वतोविरोधी होते हुवे जो स्वयं से वैर करता हो उसकी रक्षा भला कौन कर सकता है |

आँच दिये कुंदन भयो होतब कंचन साँच |
जोइ बिसमाइ गयो सो होत असाँचा काँच || ३ ||
भावार्थ : -  उत्कृष्ट मनुष्य जीवन के आतप्त को सह कर अत्युत्कृष्टता को प्राप्य होता है | जो ऐसे आतप्त को सहन नहीं करता वह अतिनिकृष्टता की श्रेणी को प्राप्त हो जाता है |

सत्ता साधन हेतु जे करिअ न कहा कुकर्म | 
कापर पटतर आपुना बदलें नाम रु धर्म || ४ || 
भावार्थ : - सत्ता साधने के लिए ये नेता क्या कुकर्म नहीं करते नाम व् धर्म को तो ये कपड़ों के जैसे बदलते हैं | 

कतहु गड़बड़ झोला रे कतहुँ त गड्डम गोलि |
लोक तंत्र में बोलिये जनमानस की बोलि || ५ ||
भावार्थ : - कहीं गड़बड़ है कहीं घपला है कहीं घोटाला है कहीं गोली चल रही है | भैया ये लोकतंत्र है यहाँ जन मानस की बोली बोलनी पड़ेगी |

नहि चलेगा गडम गोल नहीं चलेगी गोली |
लोकतंत्र में बोलिये जनमानस की बोलि || ६ ||
गडम गोल = घपला घोटाला

जोइ बसेरा आपना पराए करें निबास  | 
कहा करिएगा बासना कहा करिएगा बास  || ८ || 
भावार्थ : - हे देशवासियों ! जब अपने निवास में पराए समुदाय का वास हो जाए तो परिश्रम कर करके, रोजगार कर करके बाट-वाटिका बनाने, घर को सजाने और बर्तन भांडे जोड़ कर भोजन-वस्त्र की व्यवस्था करने से क्या लाभ उसको तो पराया भोगेगा ||

तनिक जीवति संग सकल साधन साज सँजोए | 
पहरे में रह आपहीं कुसल गेहसी सोए || ९ || 
भावार्थ : - बिंदु में जो सिंधु लिखे यत्किंचित में जो गृह के जीवन यापन के सह समस्त सुख साधनों का संकलन कर ले, और अपने गृह का रक्षा स्वयं करे वह कुशल गृहस्थी है |

मुखिया मुख सों चाहिये खान पान कहुँ ऐक |
पाले पौसे सकल अंग तुलसी कहे बिबेक ||
----- || गोस्वामी तुलसी दास || -----


भावार्थ : - तुलसी दास जी कहते हैं : - गृहप्रधान को मुख के समान होना चाहिए भोजन ग्रहण करने हेतु एक ही है किन्तु वह न्यूनाधिक के विवेक से गृह के भोजनन्न, ईंधन, वन-वाटिका, पालतू पशु, स्वास्थ, शिक्षा, सुखसाधन, रक्षा, पहुँच मार्ग, साज सज्जा, आदि सभी अंगो का यथोचित पालन पोषण करे |

अरहर केरी टाटरी अरु गुजराती राख | 
पहिरन खावण को नहीं अरु पहराइत लाख || १० || 
भावार्थ : - 'अरहर की टाटरी और गुजराती ताला'जब देशवासी झोपड़ियों में निवास करे और उसकी रक्षा के लिए बड़ा व्यय | असन हैं न वासना और उसकी रक्षा में लाखों का व्यय होता हो तो वह अपव्यय है |

टिप्पणी : - गृह की कब, कैसे व् कितनी रक्षा हो - अपनी कुशलता सिद्ध करने के लिए गृह प्रधान यह विवेक से निश्चित करे |

बासर ढासनी के ढका रजनी चहुँ दिसि चोर | (तुलसी दास )
कस गह पहरा राखिए लूट मची सब ओर || ११ ||

भावार्थ : - चोर तो पहले से थे, लुटेरे और ठग भी आ गए अब दिन को ठगों के धक्के खाने पड़ेंगे रात को चोरों से भय रहेगा चारों ओर लूट ही लूट मची है हे भगवान ! अब देश/घर की रक्षा कैसे होगी |

भीत भीत भिद भेद दै द्वारि चौपट खोल |
पहरी गगन में फिरते बैसे उड़न खटोल || १२ ||
भावार्थ : - भित्ति भित्ति को सेंध कर फिर अंतर भेद भी प्रेषित किया और द्वारों को भी चौपट खोल के  हमारे देश के प्रहरी को गगन की रक्षा हेतु उड़न खटोले दिए गए |  न्यायाधीश अथवा प्रतिपक्ष ने नहीं पूछा क्यों दिए गए.....? आकाश में अब तक कितने आक्रमण हुवे जल में कितने आक्रमण हुवे और थल पर कितने आक्रमण हुवे, कितनी घुसपैठ हुई झोल कहाँ है वायु में जल में कि थल में.....?









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