जोड़ जोड़ करि होड़ मह जोड़ा लाख करोड़ |
अंतकाल जब आ भया गया सबहि कछु छोड़ || १ ||
रोग संचारत चहुँ दिसि रोग सायिका नाहि |
करत गुहारि रोगारत जीवन साँसत माहि || २ ||
जिअ हनत ब्यापत महमारी | जन जन केरी करत संहारी ||
देस नगर कि बस्ती कि गांवाँ | गली गली पैसारत पावाँ ||
महमारी मह रूप धर करत सतत सँहार |
हाथ धो रहे प्रान ते जन जन बिनु उपचार || ३ ||
रोग केरे कारन कहुँ पुरबल करौ अवसान |
बहुरी कारज कीजिये तापुनि करौ निदान || ४ ||
रोगी औषध नाउ चढ़ सिंधु भई महमारि |
काल रूपी तरंग उठै जबतब बारम्बारि || ५ ||
असाध ब्याधि ब्यापति नाही कोउ निदान ||
बिनु औषध जन जन केर साँसत मह हैं प्रान || ६ ||
करोना बिषानु भरी के चलि चुनाउ करि नाउ |
काल नदी माझि अहई बहुतहि बेगि बहाउ || ७ ||
काल न दरसे रैन दिन काल न दरसे भोर |
काल न दरसे ठाउ को काल न दरसे ठोर || ८ ||
सम्बलपुरि गोठान मह मरत भूखि गौमात |
निरदय निगम ताहि सुखा तृनहहु हुँत तरसात || ९ ||
पबिताई बसे तहँ जहँ गौकुल करै निबास l
साजन सुचिता बसे जहँ पबिताई के बास ll १० ||
भावार्थ :- जहाँ गौवँश निवास करता है वहाँ पवित्रता का वास होता है l सज्जनो ! जहाँ पवित्रता का वास होता है
स्वच्छता भी वहीं निवास करती है
भोजन न को पाइ सकै सुचित होत संडास l
साजन सुचिता बसे तहँ जहँ पबिता कहुँ बास ll ११ ||
भावार्थ :- संडास के स्वच्छ होने पर भी वहाँ कोई भोजन नहीं करता l सज्जनो ! जहाँ पवित्रता का वास होता है स्वच्छता भी वहीं बसती है
साजन मोरे देस अब गाँव रहे नहि गाँव |
तुलसी बिनु भए आँगना नहि पीपल करि छाँव ||१२क ||
साजन मोरे देस अब,सुनी परी अमराइ |
कुहु कुहु करती कोयरी डारन सो अलगाइ || १२ख
साजन मोरे देस अब नहि हरिदय मह प्रीत |
सरगम बिहुने गीत भए सुर बिनु भा संगीत ||ग ||
पनघट भयउ नीर बिहुन भई नदी बिनु नाउ |
बिसरि कंठ सहुँ भैरवी बिसरा राग बिहाउ ||
रजस कन सों रत्नारा दरसावत दिग अंत |
पुहुप रथ बिराज कै आयो राज बसंत || १३ ||
क्यारि क्यारि कुसुम भए पथ पथ पुहुप पलास |
चहुँ पुर छटा बखेरते आयो फागुन मास || १ ४ ||
कटि तट घट मुख पट करी कहै गोपिका भोरि |
ए री सखि फागुन आयो कब आवेगी होरि || १५ ||
पाहन पाहन गह नखत, पाहन नदी पहार l
पाहन करिता धरति रे,पाहन सब संसार ll १६ ||
भावार्थ :- ये ग्रह नक्षत्र पाषाणमय है, नदी-पर्वत भी पाषाणमय ही हैँ, जीवन को धारण करने वाली धरती को भी पाषाणीय करता रे मनुष्य देख ! ये समस्त संसार पाषाण का ही है .
पाहन पाहन गह नखत, पाहन नदी पहार l
एकु धरति जी धरित्री न त, पाहन सब संसार ll १७ ||
भावार्थ :- ग्रह नक्षत्र में पाषाण ही पाषाण है, नदी-पर्वत में भी पाषाण ही पाषाण हैँ एक धरती जीवन को धारण करने वाली है अन्यथा तो समस्त संसार पाषाणीय है .
जहाँ कुलिनी कुलीन कर जहाँ कूल कुलवान l
जहाँ कुलीन कुल करतब, तहाँ दान कल्यान ll१८||
भावार्थ :- जहाँ नदी निर्मल व पवित्र करने वाली हो, जहाँ तट कुलवानो से युक्त हो जहां का कुल पुन्यकृत व विशुद्ध हो वहाँ दिया दान कल्याण करता है
सृष्टि के विध्वंश पर साधे हुवे है मौन |
प्रकृति से खेलता ये कहो समय है कौन || १९ ||
भ्रष्टाचारी घुटाला आतंकी उपजाए |
परजा तोरे तंत्र मह भया बिकाउ न्याय || २० ||
कटि तट घट मुख परि पट करी,कहै गोपिका भोरि ll
ए री सखि फागुन आयो, कब आवेगी होरि ll