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----- ॥ राजा और राजनीति ॥ -----

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" जन संचालन  तंत्र की  नीतियाँ एवं  विधि-विधान जब  लोकहित  के  विरुद्ध
  व्यक्तिपरक होकर व्यक्ति विशेष के हित में कार्य करने लगे तो वह राजतंत्र है
  यदि  व्यवहार  में  भ्रष्ट  आचरण  का  भी  समावेश हो, तो  उस  व्यवस्था का
  अधोपतन स्वयंसिद्ध है..,"

" फिर समय कहता है कि जनता व्यवस्था परिवर्तन की भाव गति को तीव्र कर
  दे..,

" राजनीति में सज्जनों हेतु कोई स्थान नहीं है ----॥ बाल गंगाधर तिलक ॥ -----

" किन्तु लोकनीति में केवल सज्जनों के लिए ही स्थान है..,"

" यदि व्यक्ति स्वयं पर शासन कर ले तो उसे दुसरे के शासन की आवश्यकता कम
  ही होगी.."
                        ----- ॥ जय प्रकाश नारायण ॥ -----

मनुज निज काया प्रबंध कर करे आत्म नियंत । 
धरे निज नियम बंध तो हो पर बंधन के अंत ॥ 

भावार्थ : -- यदि मनुष्य की काया प्रबंधित रहे और वह आत्म अनुशासित रहे तो ऐसे
                 नियम प्रबंध धारण करने के पश्चात उसे पराए के शासन की आवश्यकता
                 नहीं होगी ॥


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