लघुवत वट बिय भीत ते उपजत बिटप बिसाल ।
बिनहि बिचार करौ धर्म पातक करौ सँभाल ॥ १ ॥
भावार्थ : -- एक लघुवत वट बीज के भीतर से एक विशाल वृक्ष उत्पन्न होता है । अत: पुनीत कार्य करते समय उसके छोटे बड़े स्वरूप का विचार न करें । पतित कार्य करते समय उसके छोटे बड़े स्वरूप का सौ बार विचार करें । क्षुधावन्त की क्षुधा को शांत करने के लिए अन्न का एक दाना भी पर्याप्त होता है यह एक दाना खेत में पहुँच जाए तो फिर अनेक से अनेकानेक होकर भंडार भरने में समर्थ होता है ॥ अपात्र को दिया गया एक अभिमत, दाता के नारकीय पथ को प्रशस्त करता है ॥
"संकल्प हीन मनोमस्तिष्क ही विकल्प का चयन करता है "
जो कारज कृत कठिनतम बढ़ि बढ़ि कीजिए सोइ ।
ताहि कृतब का होइया करिअ जाहि सब कोइ ॥ २ ॥
भावार्थ : -- जिन पुनीत कार्यों को करना कठिन हो वह पुण्य प्रदाता कार्य होते हैं अत: उन्हें करने के लिए सदा उद्यत रहना चाहिए । जो सरल हों जिसे सभी करते हो ऐसे सत कार्य पुण्यदायक नहीं होते ॥
बिनहि बिचार करौ धर्म पातक करौ सँभाल ॥ १ ॥
भावार्थ : -- एक लघुवत वट बीज के भीतर से एक विशाल वृक्ष उत्पन्न होता है । अत: पुनीत कार्य करते समय उसके छोटे बड़े स्वरूप का विचार न करें । पतित कार्य करते समय उसके छोटे बड़े स्वरूप का सौ बार विचार करें । क्षुधावन्त की क्षुधा को शांत करने के लिए अन्न का एक दाना भी पर्याप्त होता है यह एक दाना खेत में पहुँच जाए तो फिर अनेक से अनेकानेक होकर भंडार भरने में समर्थ होता है ॥ अपात्र को दिया गया एक अभिमत, दाता के नारकीय पथ को प्रशस्त करता है ॥
"संकल्प हीन मनोमस्तिष्क ही विकल्प का चयन करता है "
जो कारज कृत कठिनतम बढ़ि बढ़ि कीजिए सोइ ।
ताहि कृतब का होइया करिअ जाहि सब कोइ ॥ २ ॥
भावार्थ : -- जिन पुनीत कार्यों को करना कठिन हो वह पुण्य प्रदाता कार्य होते हैं अत: उन्हें करने के लिए सदा उद्यत रहना चाहिए । जो सरल हों जिसे सभी करते हो ऐसे सत कार्य पुण्यदायक नहीं होते ॥