रविवार, १७ जनवरी, २०१६
सुरापीत जम दूत कराला । पिआवहि तपित लौहु रसाला ॥
कर्म गति कह मुनिरु बिद्वाने । सतत रूप एहि बचन बखाने ॥
जो बर बिद्या बरआचार । सों परिपूरित भरे हँकारा ॥
गुरु जनन्हि के करिहि अनादर । जाएँ गिरि छारा सो मरनि पर ॥
बहिर भूत निज धर्म समाजा । करहिहि तासु बिपरीत काजा ॥
दुखारत जहाँ पीर अपारा । जाएँ पतत सो नरक दुआरा ॥
जो उद्बेजक बचनन ताईं । पीठ फिरे लगि कारन बुराई ॥
दंद सूक मुख बल गिरि जाईं । दंद सूक तें जाएँ डसाईं ॥
पापिहि हुँत अनेक नरक, एहि बिधि भूप सुजान ।
भुगतिहि बहुतक जातना पतत तहाँ गिरि आन ॥
राम सरस घन कथा सुबारी । आस पिआस मनोमल हारी ॥
कामकोह मद मोह नसावनि । हरिदै ते संताप मिटावनि ॥
जिन्ह एहि बारि न मानस धोए । तेहि कर पर उपकार न होए ॥
निपटत सकल नरक बधि पाँती । भुगतिहि तहँ दुःख सो सब भाँती ॥
जिन्हनि अतिकर सुख इहि लोका । दुःख न बियोग न रोग न सोका ॥
सुराग ताहि हुँत यह संसारा । न तरु परिहि सब नरक अगारा ॥
दान धरम सात कर्महि लागे । रघुबर पदुम चरन अनुरागे ॥
तपोधन तें तीर्थाटन तें । जाइहि सब दुःख परिताप नसें ॥
पाप पंक लपटाइआ ता हुँत एकै उपाए ।
हरि कीरत कल कूलिनी अवगाहत पखराए ॥
मंगलवार, १९ जनवरी, २०१६
तासु अबरु एही बिषयन माही । कोउ बिचार करिअ चहि नाही ॥
के भगवन के मान बिभंगा । ताहि बिमल करि सकै न गंगा ॥
पबित ते पबित तीरथ कोई । करिअ अमल सो बल नहि जोईं ॥
रामहि नाम ग्राम गन सीला । राम कीरत राम कर लीला ॥
बदन नयन बिनु दरस समाना । इंद्रिअग्राम गहइ न ग्याना ॥
हाँसत तासु चरित परहेले । कलप लग नरक निबुक न मेले ॥
संकट परि तव हय हे नाहू । परिहरन हंट अजहुँ तुअ जाहू ॥
कहत सुनत रघुपत गुन गाना । सेबक सहित करिहौ बखाना ॥
धार रूप बहिहि सुर धुनि जब श्रुति रंधन माहि ।
चलन फिरन के गयउ बल ता संगत बहुराहि ॥
शौनक मुनि अस बचन बखानी । सुनी सत्रुहन परम सुख मानी ॥
करिहि प्रदछिन चरन सिरु नाईं । खत सेष पुनि आयसु पाईं ॥
सेबक सहित चले तहँ संगा । संगहि ताहि चली चतुरंगा ॥
अचिरम अचर तुरग पहि आईं । पवन तनय हरि चरित सुनाईं ॥
रामकथा ग्यान गुन रासी । बड़ ते बड़ दुर्दसा बिनासी ॥
कहहिं संत मुनि श्रुति अस गावा । मिटिहि तमस प्रभु तेज प्रभावा ॥
कीर्तन करत करत बिहाना । कहत देव हे कहि हनुमाना ॥
आम गन कीर्तन पुन संगा । होहु बियद गत जान बिभंगा ॥
बिहरत निज बिहार देस बाँधे बंध न कोए ।
एहि अधमतस जोनि संग तुहरे निबहन होए ॥
बृहस्पतिवार, २१ जनवरी, २०१६
कहा सो देव श्रुत एहि निगदन । हरि चरित श्रुत भया मैं पावन ॥
बिधि निषेध कथा यह नीकी । सीता पति की रघुबर जी की ॥
बिधि निषेध = क्या करें की न करें
अजहुँ मोहि निज लोक पयावन । सानंद आयसु देउ महमन ॥
ब्रम्ह देव अस बचन बखाना । चले सुरग पुनि पौढ़ बिमाना ॥
दरस दिरिस यह कौतुककारी । सत्रुहन मन भए अचरजु भारी ॥
सेवकहू बहु बिसमय करिहीं । देव केर श्राप जस हरिहीं ॥
भए जड़ता ते मुकुत तुरंगा । प्रमुदित उपबन भरे बिहंगा ॥
होत बिहागन संग बिहागा । आतुर चहुँ पुर बिहरन लागा ॥
कहैं सेष भगवान पुनि मन यह भारत देस ।
चहुँ पास जहँ एक ते एक अहँ भरपूर नरेस ॥
एहि बिधि भमरत चहुँ दिसि ताहीं । बिहरत सत दिनमल बिरताहीँ ॥
आगत हिमगिरि संकासे । भमरिहि बहुलक देस सुपासे ॥
अंग देस हो कि चाहे बंगा । नृप परिपूरित देस कलिंगा ॥
तहाँ केरे सबहि भूपत गन । भली प्रकार किए तुरग स्तवन ॥
बहुरि तहँ सो चरन अगुसारे । अगत्य सुरथ नगर पैसारे ॥
अदितिहि कुण्डलु निपतित होंही । भए जग बिदित नगरि ता सोही ॥
बन उपबन गिरिगन भरपूरी । सकल पुरीं जहँ तहँ फर फूरी ॥
भवन भवन बहु बरन बनाईं । बसे बसति सब भाँति सुहाईं ॥
पुरजन पबित पुनीत पुरंजन । करिहि न कबहुक धरमु उलंघन ॥
निसदिन तहाँ बहु पेम सहिता । सुमरित गाँवहि नित हरि चरिता ॥
पूजत असवत्थ तुलसी जन जन निजहि निवास ।
पाप दूरावत सबहि रहि भगवन के दास ॥
शनिवार, २३ जनवरी, २०१६
कंचन मनी लस कलस कँगूरा । भीत बहिर रचि पचि अति रूरा ॥
मंदिर मंदिर तहँ श्री साथा । सोहित रहि राजित जगनाथा ॥
जनमानस चेतस बहु सुचिता । बंच बिहीन छलु कपटु रहिता ॥
पूजिहिं जब प्रतिदिन तहँ जाईं । कूजिहिं खंकन संख पुराईं ॥
रसन रसन करि कंठन घाला । राम नाम के आखर माला ॥
करिहि परस्पर बैर न कोई । सबहि बिपुल सुख सम्पद जोईं ॥
तसु हृदय हरि नाम ध्याने। कबहुँ करम फल सुरति न आने ॥
पावन पबित सबहि बपुधारिहि । राम कथा कथ मनहि बिहारिहि ॥
जीवन जोग जुग जीउती दुरब्यसनी न होइ ।
सबहि सदाचरनी रही द्यूति कार न कोइ ॥
धर्मात्मन् सदा सत भाषी । तहँ महबली नृप सुरथ बासिहि ॥
छबि भगवन मन दर्पन जिनके । कहँ लग बरनउँ महिमन तिनके ॥
पेम मगन सुनि प्रभु गुन गाथा । रहहि सदा अनंद के साथा ॥
तासु सकल गुन भुइँ बिस्तारिहि ।जन जान के पातक निस्तारिहि ॥
एक समउ पुनि कछु राज अनुचर ।रहहि बिहरत भँवरत सो नगर ॥
चन्दन चर्चित अस्व बिसेखे । नगर भीत पुनि आगत देखे ॥
नियरावत जनि यहु मन मोही । रघुबर तईं त्याजित होंही ॥
गयउ फ़िरट लए एही जनाईं । हर्षित राज सभा चलि आईं ॥
सभोचित सभासद बीच राजत रहीं नरेस ।
उतकंठित मन भाव सों अनुचर देइँ सँदेस ॥
सोमवार, २५ जनवरी, २०१६
साईं अवध नगर गोसाईं । दसरथ नंदन श्री रघुराईं ॥
तासु मेधीअ तुरग त्याजिहि । भमरत चहुँ पुर इहाँ बिराजिहि ।
सुबरन पतिया सीस बँधावा । अनुचर सहित नगरु नियरावा ॥
धौल बरन बहु भूषन साजा । मनोहारि मनि रतन समाजा ॥
पीठ पर्यान बसन सुरंगा । गंध सार चर्चित सब अंगा ॥
बरनातीत मनोहर ताईं । गहौं महानुभाव तिन जाईं ॥
सुरथ बहुरि एहि बचन उचारे । धन्य भाग भए आजु हमारे ॥
जग कर जुग जिन सादर बंदा । दरसिहि सो प्रभो मुख चंदा ॥
कोटिन समर सूर तैं घेरे । आए इहाँ भमरत चहुँ फेरे ॥
बँधहि रसना गहि अवसिहि बीर अजहुँ मम सोहि ।
छाड़िहउँ ताहिं तबहि जब रघुबर दरसन होंहि ॥
मंगलवार, २६ जनवरी, २०१६
चिंतन रत जेहि चिरकाल सों । करिहि कृपा मो पर कृपालु सो ॥
मोर नयन जिनके पथ जोंइहिं । तिनके अब सुभ आगम होइहिं ॥
कहत सेष अस बोलि बिहाने । भूपत अनुचर आयसु दाने ॥
कहैं अबिलम बेगि करजाहू । तुरग बरियात धरि गहि लाहू ॥
होइ सौमुख संभरत केहू । केहि बिधि तेहिं छाँड़ न देहू ॥
मम मानस भरोसा ए होही । लहि लाह बड़ कहउँ मैं तोहीं ॥
जेहि सुलभ डीसी सकें न कोई । बिधि सुरपहु सो दुर्लभ होईं ॥
तेहि रघुनाथ के पद पंकज । होइहिं दरसित सुलभ बहु सहज ॥
धन्य सो स्वजन सुत बन्धुजन धन्य सो बाहन बाहना ।
जासु सरल सुलभ संभावन भए रघुबीर के लाहना ॥
मनोगति नुहार बेगि हिरनै पतिया सीस सँवार चले ।
बाँध्यौ बाँधनी पौरि तेहि मंजुल जो मनियार चले ॥
महराउ कहत बचन पुनि दूत द्रुत तहँ जाइँ ।
सभागत सादर अरपिहि बाँध गहि कर ल्याइँ ॥
कहैं सतत पुनि मुनिबर ताईं । सुनिहौं अजहुँ बहुंत लय लाईं ॥
सुरथ राज अस मनुष न कोई । पर दार अपबाद रत होईं ॥
पर धन सम्पद दीठ धरावा । अस लम्पट तहँ कोउ न पावा ॥
जीह जीह रघुबर जस गाईं । अरु को अनुचित बात न आईं ॥
एकु नारि ब्रति नर सब कोई । मन बच क्रम पति हितकर होईं ॥
करी अनहित धरि झूठ कलंका । बयरु अकारन बिरथा संका ॥
चलिहि बेद बिरुद्ध पथ माही । अस मानस को एकहू नाही ॥
कृत काज कर राज के सैनी । निसदिन रघुनन्दन मुख बैनी ॥
तहाँ न कोउ पापाधम सबहि धर्मानुसार ।
सुरथ देस केहि मन मति नहि को पाप बिचार ॥
सुरापीत जम दूत कराला । पिआवहि तपित लौहु रसाला ॥
कर्म गति कह मुनिरु बिद्वाने । सतत रूप एहि बचन बखाने ॥
जो बर बिद्या बरआचार । सों परिपूरित भरे हँकारा ॥
गुरु जनन्हि के करिहि अनादर । जाएँ गिरि छारा सो मरनि पर ॥
बहिर भूत निज धर्म समाजा । करहिहि तासु बिपरीत काजा ॥
दुखारत जहाँ पीर अपारा । जाएँ पतत सो नरक दुआरा ॥
जो उद्बेजक बचनन ताईं । पीठ फिरे लगि कारन बुराई ॥
दंद सूक मुख बल गिरि जाईं । दंद सूक तें जाएँ डसाईं ॥
पापिहि हुँत अनेक नरक, एहि बिधि भूप सुजान ।
भुगतिहि बहुतक जातना पतत तहाँ गिरि आन ॥
राम सरस घन कथा सुबारी । आस पिआस मनोमल हारी ॥
कामकोह मद मोह नसावनि । हरिदै ते संताप मिटावनि ॥
जिन्ह एहि बारि न मानस धोए । तेहि कर पर उपकार न होए ॥
निपटत सकल नरक बधि पाँती । भुगतिहि तहँ दुःख सो सब भाँती ॥
जिन्हनि अतिकर सुख इहि लोका । दुःख न बियोग न रोग न सोका ॥
सुराग ताहि हुँत यह संसारा । न तरु परिहि सब नरक अगारा ॥
दान धरम सात कर्महि लागे । रघुबर पदुम चरन अनुरागे ॥
तपोधन तें तीर्थाटन तें । जाइहि सब दुःख परिताप नसें ॥
पाप पंक लपटाइआ ता हुँत एकै उपाए ।
हरि कीरत कल कूलिनी अवगाहत पखराए ॥
मंगलवार, १९ जनवरी, २०१६
तासु अबरु एही बिषयन माही । कोउ बिचार करिअ चहि नाही ॥
के भगवन के मान बिभंगा । ताहि बिमल करि सकै न गंगा ॥
पबित ते पबित तीरथ कोई । करिअ अमल सो बल नहि जोईं ॥
रामहि नाम ग्राम गन सीला । राम कीरत राम कर लीला ॥
बदन नयन बिनु दरस समाना । इंद्रिअग्राम गहइ न ग्याना ॥
हाँसत तासु चरित परहेले । कलप लग नरक निबुक न मेले ॥
संकट परि तव हय हे नाहू । परिहरन हंट अजहुँ तुअ जाहू ॥
कहत सुनत रघुपत गुन गाना । सेबक सहित करिहौ बखाना ॥
धार रूप बहिहि सुर धुनि जब श्रुति रंधन माहि ।
चलन फिरन के गयउ बल ता संगत बहुराहि ॥
शौनक मुनि अस बचन बखानी । सुनी सत्रुहन परम सुख मानी ॥
करिहि प्रदछिन चरन सिरु नाईं । खत सेष पुनि आयसु पाईं ॥
सेबक सहित चले तहँ संगा । संगहि ताहि चली चतुरंगा ॥
अचिरम अचर तुरग पहि आईं । पवन तनय हरि चरित सुनाईं ॥
रामकथा ग्यान गुन रासी । बड़ ते बड़ दुर्दसा बिनासी ॥
कहहिं संत मुनि श्रुति अस गावा । मिटिहि तमस प्रभु तेज प्रभावा ॥
कीर्तन करत करत बिहाना । कहत देव हे कहि हनुमाना ॥
आम गन कीर्तन पुन संगा । होहु बियद गत जान बिभंगा ॥
बिहरत निज बिहार देस बाँधे बंध न कोए ।
एहि अधमतस जोनि संग तुहरे निबहन होए ॥
बृहस्पतिवार, २१ जनवरी, २०१६
कहा सो देव श्रुत एहि निगदन । हरि चरित श्रुत भया मैं पावन ॥
बिधि निषेध कथा यह नीकी । सीता पति की रघुबर जी की ॥
बिधि निषेध = क्या करें की न करें
अजहुँ मोहि निज लोक पयावन । सानंद आयसु देउ महमन ॥
ब्रम्ह देव अस बचन बखाना । चले सुरग पुनि पौढ़ बिमाना ॥
दरस दिरिस यह कौतुककारी । सत्रुहन मन भए अचरजु भारी ॥
सेवकहू बहु बिसमय करिहीं । देव केर श्राप जस हरिहीं ॥
भए जड़ता ते मुकुत तुरंगा । प्रमुदित उपबन भरे बिहंगा ॥
होत बिहागन संग बिहागा । आतुर चहुँ पुर बिहरन लागा ॥
कहैं सेष भगवान पुनि मन यह भारत देस ।
चहुँ पास जहँ एक ते एक अहँ भरपूर नरेस ॥
एहि बिधि भमरत चहुँ दिसि ताहीं । बिहरत सत दिनमल बिरताहीँ ॥
आगत हिमगिरि संकासे । भमरिहि बहुलक देस सुपासे ॥
अंग देस हो कि चाहे बंगा । नृप परिपूरित देस कलिंगा ॥
तहाँ केरे सबहि भूपत गन । भली प्रकार किए तुरग स्तवन ॥
बहुरि तहँ सो चरन अगुसारे । अगत्य सुरथ नगर पैसारे ॥
अदितिहि कुण्डलु निपतित होंही । भए जग बिदित नगरि ता सोही ॥
बन उपबन गिरिगन भरपूरी । सकल पुरीं जहँ तहँ फर फूरी ॥
भवन भवन बहु बरन बनाईं । बसे बसति सब भाँति सुहाईं ॥
पुरजन पबित पुनीत पुरंजन । करिहि न कबहुक धरमु उलंघन ॥
निसदिन तहाँ बहु पेम सहिता । सुमरित गाँवहि नित हरि चरिता ॥
पूजत असवत्थ तुलसी जन जन निजहि निवास ।
पाप दूरावत सबहि रहि भगवन के दास ॥
शनिवार, २३ जनवरी, २०१६
कंचन मनी लस कलस कँगूरा । भीत बहिर रचि पचि अति रूरा ॥
मंदिर मंदिर तहँ श्री साथा । सोहित रहि राजित जगनाथा ॥
जनमानस चेतस बहु सुचिता । बंच बिहीन छलु कपटु रहिता ॥
पूजिहिं जब प्रतिदिन तहँ जाईं । कूजिहिं खंकन संख पुराईं ॥
रसन रसन करि कंठन घाला । राम नाम के आखर माला ॥
करिहि परस्पर बैर न कोई । सबहि बिपुल सुख सम्पद जोईं ॥
तसु हृदय हरि नाम ध्याने। कबहुँ करम फल सुरति न आने ॥
पावन पबित सबहि बपुधारिहि । राम कथा कथ मनहि बिहारिहि ॥
जीवन जोग जुग जीउती दुरब्यसनी न होइ ।
सबहि सदाचरनी रही द्यूति कार न कोइ ॥
धर्मात्मन् सदा सत भाषी । तहँ महबली नृप सुरथ बासिहि ॥
छबि भगवन मन दर्पन जिनके । कहँ लग बरनउँ महिमन तिनके ॥
पेम मगन सुनि प्रभु गुन गाथा । रहहि सदा अनंद के साथा ॥
तासु सकल गुन भुइँ बिस्तारिहि ।जन जान के पातक निस्तारिहि ॥
एक समउ पुनि कछु राज अनुचर ।रहहि बिहरत भँवरत सो नगर ॥
चन्दन चर्चित अस्व बिसेखे । नगर भीत पुनि आगत देखे ॥
नियरावत जनि यहु मन मोही । रघुबर तईं त्याजित होंही ॥
गयउ फ़िरट लए एही जनाईं । हर्षित राज सभा चलि आईं ॥
सभोचित सभासद बीच राजत रहीं नरेस ।
उतकंठित मन भाव सों अनुचर देइँ सँदेस ॥
सोमवार, २५ जनवरी, २०१६
साईं अवध नगर गोसाईं । दसरथ नंदन श्री रघुराईं ॥
तासु मेधीअ तुरग त्याजिहि । भमरत चहुँ पुर इहाँ बिराजिहि ।
सुबरन पतिया सीस बँधावा । अनुचर सहित नगरु नियरावा ॥
धौल बरन बहु भूषन साजा । मनोहारि मनि रतन समाजा ॥
पीठ पर्यान बसन सुरंगा । गंध सार चर्चित सब अंगा ॥
बरनातीत मनोहर ताईं । गहौं महानुभाव तिन जाईं ॥
सुरथ बहुरि एहि बचन उचारे । धन्य भाग भए आजु हमारे ॥
जग कर जुग जिन सादर बंदा । दरसिहि सो प्रभो मुख चंदा ॥
कोटिन समर सूर तैं घेरे । आए इहाँ भमरत चहुँ फेरे ॥
बँधहि रसना गहि अवसिहि बीर अजहुँ मम सोहि ।
छाड़िहउँ ताहिं तबहि जब रघुबर दरसन होंहि ॥
मंगलवार, २६ जनवरी, २०१६
चिंतन रत जेहि चिरकाल सों । करिहि कृपा मो पर कृपालु सो ॥
मोर नयन जिनके पथ जोंइहिं । तिनके अब सुभ आगम होइहिं ॥
कहत सेष अस बोलि बिहाने । भूपत अनुचर आयसु दाने ॥
कहैं अबिलम बेगि करजाहू । तुरग बरियात धरि गहि लाहू ॥
होइ सौमुख संभरत केहू । केहि बिधि तेहिं छाँड़ न देहू ॥
मम मानस भरोसा ए होही । लहि लाह बड़ कहउँ मैं तोहीं ॥
जेहि सुलभ डीसी सकें न कोई । बिधि सुरपहु सो दुर्लभ होईं ॥
तेहि रघुनाथ के पद पंकज । होइहिं दरसित सुलभ बहु सहज ॥
धन्य सो स्वजन सुत बन्धुजन धन्य सो बाहन बाहना ।
जासु सरल सुलभ संभावन भए रघुबीर के लाहना ॥
मनोगति नुहार बेगि हिरनै पतिया सीस सँवार चले ।
बाँध्यौ बाँधनी पौरि तेहि मंजुल जो मनियार चले ॥
महराउ कहत बचन पुनि दूत द्रुत तहँ जाइँ ।
सभागत सादर अरपिहि बाँध गहि कर ल्याइँ ॥
कहैं सतत पुनि मुनिबर ताईं । सुनिहौं अजहुँ बहुंत लय लाईं ॥
सुरथ राज अस मनुष न कोई । पर दार अपबाद रत होईं ॥
पर धन सम्पद दीठ धरावा । अस लम्पट तहँ कोउ न पावा ॥
जीह जीह रघुबर जस गाईं । अरु को अनुचित बात न आईं ॥
एकु नारि ब्रति नर सब कोई । मन बच क्रम पति हितकर होईं ॥
करी अनहित धरि झूठ कलंका । बयरु अकारन बिरथा संका ॥
चलिहि बेद बिरुद्ध पथ माही । अस मानस को एकहू नाही ॥
कृत काज कर राज के सैनी । निसदिन रघुनन्दन मुख बैनी ॥
तहाँ न कोउ पापाधम सबहि धर्मानुसार ।
सुरथ देस केहि मन मति नहि को पाप बिचार ॥