सोम / मंगल , १६ /१७ फरवरी २०१५
जर जर जब ज्वाल उत्तोले । पुष्कल रकत कमल मुख बोले ॥
मोरे बान ए तुहरी देही । खैंच तहँ सोन प्रान न लेहीं ॥
सील बिरध सति पति पतियारी । करे कलंकित को अस नारी ॥
परत जम पासल सो अतिचारी ।होइअहि जस गति के अधिकारी ॥
होही काल बस मम गत सोई । जो मोरे प्राण संच न होई ॥
पुष्कल करकत लाखे । रिपु दाल मुखिआ हँस अस भाखे ॥
प्रान गहि जग आनि जो कोई ।त्सु मारनी पुनि अवसिहि होई ॥
जो जुधिक जुद्ध जुझावत मरे । सो काल पास के भय न करे ॥
जो में काटि न नीबेरौं, तुहरे छाँड़े बान ।
हे रन प्रनत अजहुँ मोर , प्रनदित प्रन लो जान ॥
तीरथ सेवन कोउ उछाहे । जो अस उछाह नासन चाहे ॥
तासु किए पातक निज सिरु लिहौउँ । लिए सों मैं भंजत देखिहौउँ ॥
अस कह चित्रांग मुख उरगाए । त करस कुसा कर चाप चढ़ाए ॥
जो मोरि भगति प्रभु पद चीन्हि । कपट हीन जो बंदन कीन्हि ॥
जो मम हिय मम तिय अपराई । करे बिचार न कोउ पराई ॥
मोरे कहे बचन सत जोहीं । किए जो प्रन सो साँचहि होंही ॥
अस कह काँति मती के कन्ता । करम कार्मुक गहै तुरंता ॥
मर्म भेद एक बान संजोई । जोइ अगन जस तेजस होई ॥
भर भारौ उर भान जब छाँड़े सूल प्रचंड ।
चित्रांग चाप चपल तब , काटि करे दुइ खंड ॥
बुधवार,१८ फरवरी, २०१५
भयउ रन भुइ कोलाहल भारी । बरखि धूरि कीन्हेसि अँधियारी ॥
पुच्छल भाग मुख सोंह निबरे। घर्घर करत घुरमत जब गिरे ॥
पूरबारध भग फल जोहीं । रिपु दाल पति पर बेगि अगौहीं ॥
भयउ अरध सर धारा सारी । चतरंग कंठ काट निबारी ॥
कटे सीस भुइ निपतै कैंसे । कटत निपति नलिनी रूह जैसे ॥
निपटे कतहुँ किरीट कमंडल । निपत सोहि जस सस भू मंडल ॥
चित्रांग धरनि पारी जब देखे । पुष्कल कलिक ब्यूह प्रबेखे ॥
बीर कलाप कटक भट घेरे । किए जय जय नज गंजन केरे ॥
दरसी सुतन्हि सुबाहु जब, भयऊ प्रान बिहीन ।
सोकारत अस तरपे जस तरपत जल बिनु मीन ॥
बृहस्पतिवार, १९ फरवरी, २०१५
तेहि काल निज रथ कर कासे ।आगत दुनहु कुअँर पितु पासे ॥
प्रनत सीस अवनत चरन गहै ।सुरीत समयोचित बचन कहे ।।
हमरे जिअत गहै दुःख भारी ।बीर करम गति होत प्यारी ॥
चित्रांग रन रँग लौहु बजाए । संग्रामाँगन बीर गति पाए ॥
मात भ्रात भट पितु अनुरागी । धुरंधर सो धन्य के भागी ॥
महमते अजहुँ सोक निबारौ । बीर तनुज हुँत दुःख नहि धारौ ॥
महमन हमहि रन आजसु दाएँ । आपहु चित रन रंग रंगाएँ ।।
बाँध जिआ धनु बान सुधारे । तनुज बचन सुनि सैन सँभारे ॥
सोकाकुल उर घन जानि दमकत पानि कृपानि ।
तूर चरन राजन संग, तमकत रन भुइ आनि ॥
शुक्रवार, २० फरवरी, २०१५
कर सरासन सर भरे भाथा । आए कुँअर दुहु पितु के साथा ॥
कोटि कोटि भट भरे पूराए । जीवट उत्कट कटक भितराए ॥
निज निभ बाहु बली अभिलाखे । रन रंग रंजन भनिति भाखे ॥
नील अतं भए बिचित्र प्रसंगे रिपुताप सन दमन रन रंगे ॥
सुबाहु हिरन स्यंदन जोइहि । रनत रन सत्रुहन सोंहु होइहि ॥
पानि भुगत कृपान चहुँ फेरे । घेरे जिन्हनि बीर घनेरे।।
सुबाहु घेर बिभेदन लागे । हनुमन सत्रुहन रच्छन भागे ॥
भुज दल सिखर सागर बल धरे। घन सोह मुख घन गर्जन करे ॥
तेहि अवसर सुबाहु दस कठिन बान संधान ।
छूटत बेगि सरसर चर देइ चोट हनुमान ॥
शनिवार २१ फरवरी, २०१५
अतीव तूर उपल उर छोड़े । बीर भयंकर तृण करि तोड़े ।
जिन्ह कहत बली बिनहि तुलाए । झपट रउ रथ पूँछ लेवाए ॥
लपट बेगि लिए चले अगासा । नाहु नयन छत छाए हतासा ॥
बिचरत गगन हिरन रथ संगा । पाँख बिहूनइ भयउ बिहंगा ॥
रथ जहँ तहँ रहेउ रहि अबलम्बे। भावइ सर गहि बाहु प्रलम्बे ॥
मर्म अघातक पीरा दायक । छाँड़ेसि तुर तेज मुखि सायक ॥
भए बिहनत जब बारहि बारा ।किए हनुमंत अक्रोस अपारा ॥
धरि लात एक नाहु उर मारा । परेउ घात जनु बज्र प्रहारा ॥
गह अस तेज अघात,छतबान मुरुछा गहन किए ।
आँगन होत निपात, तपत रुधिर मुख बमन किए ॥
रविवार, २२ फरवरी, २०१५
हरिअर हहर साँस भर काँपे । अचेत नयन सपंन बिअ बाँपे ।।
श्री राम छबि इब अंकुर राजे । पख मख मण्डप भीत बिराजे ॥
भयउ रजनि कन जगन्न केरे । कांटी कर रहि चहुँ दिसि घेरे ॥
कोटिक ब्रम्हांड के प्रानी । ठाढ़ि रहे तहँ जोरे पानी ॥
ब्रम्हादिदेउ सहित मुनीसा । किएँ बर अस्तुति अवनत सीसा ॥
रमा रमन के कमल नयन के । श्री बिग्रह घन स्याम बरन के ॥
बोलत कल भूषन भए भृंगा । मुकुलित हस्त धरे मृग सींगा ॥
सुजस गान कर बाजिहि बीना । भयऊ भिनि भिनि भीनी भीना ।।
बेद मूर्ति मान होत प्रगसे सगुन सरूप ।
राजन के सपन दरपन, दरसिहि छटा अनूप ॥
सोम /मंगल २३/२४ फरवरी, २०१५
करत भनित प्रभु चरन अराधएँ । तपो निधान रूप जस लागएँ ॥
जे जग जो किछु सुघर सँजोइल । देनहार श्री रामहि होइल ॥
कुजिहि कूनिका सहु छहु रागे । तबहि अचेत नाहु चित जागे ॥
छाए मोदु मन गयउ प्रमादा । पुनि सत्रुहन पहि चले पयादा ॥
चरत चरत रन अजिरु महुँ आए । बिचित्र दमन रन रंग रंगाए ।
हाँक दिए तिन्ह निकट बुलायो । रन रोधन कारन समझायो ॥
बहोरि सुकेतु कोत बिलोके । करत सँकेतु अजुद्धिक रोके ॥
सपन दर्पन छबि लोचन छाए । कहि भै हमसों बहुत अन्याए ॥
चराचर जागती के जो स्वामी । जो परब्रम्हन अंतरजामी ॥
कारज कारन दुहु सोहि परे । तिन्ह के मेधिआ बाजि धरे ॥
सोई राम रूप भगवाना ।ए गूढ़ बचन अजहुँ मैं जाना ॥
मनुज गात गह लिए अवतारे।एहि अवनिहि हित हेतु हमारे ॥
पुनि सुबाहु सुत भ्रात सहुँ, बरनै सोई प्रसंग ।
असितांग मुनि को हाँस,भयउ जोइ तिन संग ॥
बुधवार,२५ फरवरी, २०१५
निगदि नाहु कर कोमल बानी । सुनु सुत भ्रात ए बात पुरानी ॥
पैहन मैं सत सार ग्याना । पर हित हेतु तीरथ जिहाना ॥
देइ दरस मग मुनिबर नेका । धरम परायन परम प्रबेका ॥
भगवन मम कर औसर देबा । किए असितांग मुनि के सेबा ॥
मो ऊपर किए कृपा बिसेषा । जति धर्म दिए मोहि उपदेसा ॥
जासु महत माहि अगुन अबाधा । बारे सिंधु जस बारि अगाधा ॥
जो सुभ सरूप रूप सँजोई । तासु नाउ परब्रम्हा होई ॥
जनक किसोरि राम की जानि । साखि चिन्मई बल गई मानि ॥
दुस्तर अपार संसार सिंधु पार गमन जो कोउ चहैं ।
सो जति धरमी सङ्कृत करमी हरिहि पदुम पद पूजतहैं ॥
चतुर्भुज रूपा महि भूपा जासु गरुड़ ध्वज धारी कहैं ।
दसरथ के अजिरु बिहारी सोई बिष्नु अवतारी अहैं ॥
तिन्ह भगवन भावनुरत पूजिहि जो नर नारि ।
भव सिंधु तर सो होइहि परम गति के धिकारि ॥
बृहस्पतिवार,२६ फरवरी, २०१५
सुनि मुनि निगदन मैं उपहासा । भय भूप सो मोर सकासा ॥
राम मनुज सधारनहि होई । बिष्नु रूप हर सकै न कोई ॥
हर्ष सोक सागर जो गाहिहि । सो तिय श्री कैसेउ कहाही ॥
अजनमनी कैसेउ जन्माए । जगत अकर्ता जगत कस आए ॥
जासु आदि न मध्य अवसाना । अमित प्रभाउ बेद न जाना ॥
भब भब बिभब पराभब कारी । नयन भवन एक प्रश्न निहारी ॥
जूट केस उपदेसु मो कहहु । सो राम बिष्नु रूप कस अहहु ॥
निगदित बचनन दिए जब काना । किए अभिसपत मोहि बिद्बाना ॥
पलक पयधि गह लगन हिलोले । धनुमुख बानि बान भर बोले ।।
अधमी रघुबर रूप न जाने । बर मुनि कहेउ बचन न माने ॥
निदेउ मान सधारन भगवन मानस रूप ।
मोर संग प्रतिबाद किए समुझइ निज बर भूप ॥
शुक्रवार, २७ फरवरी, २०१५
कहे ऐसेउ उपहास बचन । होइहु जहँ त उदर परायन ॥
तुम्हारे सकल सार ग्याना । मोर श्राप सों होहि बिहाना ॥
सुन अस मम उर भए भय भीता । सकल सार ग्यान सों रीता ॥
धरा सीस धर मैं पग धारा । मुनिरु उपल मन बन द्रव धारा ॥
भरे भीत करुना के सागर । बोले अस मो भर भुज अंतर ॥
रघुबर स्व मेध जब करिहीं । तुहरे सोहि रन बिघन धरिही॥
करिहीं घात बेगि हनुमंता । सुनु हे चकरनका के कंता ॥
तब तोहि होहि ए ग्यान राम रूप भगवान ।
न तरु निज कुमति संग तुअ, सकिहु न अजिवन जान ॥
शनिवार, २८ फरवरी, २०१५
मुनि मनीषि मुख जो कहि भाखा । तासु भान होइहि मो साखा ॥
जाहु महबली रघुबर जी के । आनौ लेइ है किरन गहि के ॥
सब धन सब साधन तीन संगा । मम राजित एही राज प्रसंगा ॥
करिहउँ में अर्पित भगवाना । कारन एहि मख धर्म प्रधाना ॥
दरस प्रभु मैं कृतकृत होइहउँ । तिनके तुरग दए कर जोइहउँ ॥
सुबाहु सुत बर रीति रनइता । श्रुतु पितु बचन भए अति हर्षिता ॥
पितु जस रघुबर दरस उछाहीं । मीचु मेहन मोद मुख छाहीं ।\
नयन गगन जल बिंदु हिलोले । भ्रात तनुज दुहु भीनत बोले ॥
हमहि कुछु अरु जानए नहि, एक तव चरन बिहोर ।
तुहरे दिनकर बचन किए हमरे तमि मन भोर ॥
रविवार, 01 मार्च ,२०१५
जो प्रभु दरस के सुभ संकल्पा । तुहरे हरिदै जो किछु कल्पा ॥
अजहुँ सोइ सब होवन चाहिब । चहँहि हयहु रघुबर पहि जाइब ॥
तुम स्वामि तुम अग्याकारी ।हम तव सेबक हम अनुहारी ॥
तव अग्या जो जोइ सँजोही । अनुपजोगि सों जोगित होही ॥
स्याम नील हरि मनि सम रतन ।हय हस्ति सोहि हिरन सयंदन ॥
गहि धन साधन लाखहि लाखा । सब द्रव प्रभु पद देइहु राखा ॥
हम सोन किंकर सकल तुहारे ।हमहि तिन्ह सन अर्पित कारें ॥
भयउ अभ्युदय सो सब लिज्यो ।रघुबर चरन समर्पन किज्यो ॥
श्रुत सुत बचन सुबाहु मन भयउ हर्ष बहु भारि ।
बीर बलि बलिहार के , ऐसे गदन उचारि ॥
सोमवार,०२ मार्च,२०१५
चँवर ध्वज बर बाजि सुसाजे । बीर जुहा रन साज समाजे ॥
गहे कर अजुध बिबध प्रकारे । तुम्ह सबहि रथ घेरा घारे ॥
साजि राज गज सब ले लइहौ ।भोरि सत्रुहन पहि सन जइहौ ॥
कहत बहुरि अहिपत भगवाना ।सुबहु के निगदन दे काना ॥
बिचित्र दमन सुकेतु सरि धीरा । अन्यानै समर सूर बीरा ॥
प्रजा पालक अग्यानुहारे । गयउ सहरषित नगर पँवारे ॥
पयस मयूखी बदन मनोहर । रजत चंवर बर जोगित तापर ॥
सुबर्नमय पत्रक लक लँकृते । अक्छत कृत तिलक लषन सहिते॥
चपल चरन स्याम करन,मनिसर माल सँजोह ।
हय कर किरन पुंज धरे आनि प्रजा पति सोंह ॥
मंगलवार, ०३ मार्च,२०१५
राजस्यंद जब सोहि देखा । सुबाहु बदन हर्ष अबलेखा ॥
दुहु सपूत भट भ्रात प्रसंगे । सकल साज सँजोउ लए संगे ॥
चले पयादिक पंथ अधीसा । नयन अवनत बिनइबत सीसा ॥
सत्रुहनहि पदक पुर अस धूरे । भोर भूरे जस साँझ बहुरे ॥
जीवन साधन छन छबि जाने । तासों अनुरति दुःख गति माने ।।
जोइ नसावनि पथ ले गवने । सो धन सम्पद् सहुँ लए अवने ॥
सत्रुहन नियर अगत का देखे । बरे बपुरधर बरन बिसेखे ॥
पीत बसन बल बल्गन बासे । उपपंखि निबासे
भरे भेष भुज सिखर बिसाला । हरिद पलासिक लावनि लाला ॥
कूल कलित कल खंकन बाजे । मनियारि मंजरी बिराजे ॥
अवनि चरन अरु गगन पताका । निश्तेज भुवन तमक तकि ताका ॥
सोहि उज्जबर छतर छाँउकर । तेज द्युतकर सोहि सुहाकर ॥
सोहि सो सुमति अस्थीर सब भट तीरहि तीर ।
श्री राम कथा बारता, पूछ रहे महबीर ॥
बुधवार, ०४ मार्च, २०१५
सत्रुहन कुल दीपक सम लस्यो ।सुहा द्युतिस के सम बस्यो ॥
बिलोकत बीर बलि बाँकुर पुर । भय मुख आपहि भयउ भयातुर ॥
दरसत तिन्ह सुत भ्रात सहिता ।सुबाहु रोष भए रनन रहिता ॥
प्रसारित कर मुख रघुबर नामा ।गहे चरन पुनि करे प्रनामा ॥
रोम हरष तन चित हरि चिंतन । नयन छटा छबि भाव बिहल मन ॥
सत्रुहन मित सम समदन बाढ़े । रामानुज उठ आसन छाँड़े॥
समदन सब सहुँ बाहु पसारे । प्रमुदित समुदय लेइ सकारे ॥
राउ भयउ बहु भाव बिभोरे । धन्य धन्य मैं कहि कर जोरे ॥
पलक पयस पखारी के पूजत पद भल भाँति ।
समद समर्पन कर के, छाए बदन कल काँति ॥
बृहस्पतिवार,०५ मार्च,२०१५
गदगद गिरा पेम रस साने । कहत कोमली करुन निधाने ॥
जो पद जग अभिनन्दन होंही । मिले भाग सो परसन मोही ॥
तरसहि पावस पुरी पँवारे । अहो भग तव चरन पधारे ॥
मोर सुत दमन बयस न सोधा ।प्रभि अजहु सो भयउ अबोधा ॥
मम सुत बालक आपु सयाने । बाँधे बाजि तिन्ह छम दाने ॥
जो सब देवन्हि देवल हारे ।जग सर्जनित पाल संहारे ॥
जान बिनु जग सिरोमनि नामा । कौतुकी करात किए एहि कामा ।
राज सैनि रन सज सँजोई । सकल अंग बहु अंकक जोई ॥
भरे पुरे एहि राज के, अहैं भूति जो कोइ ।
मो सहित मोर सुत भ्रात,सब आपहि के होइ ॥
शुक्रवार,०६ मार्च, २०१५
कहै सुबाहु पुनि चरन गहि के । श्री राम स्वामि हम सबहि के ।
बिभो अग्या मैं सिरौ धरिहउँ । तुहरे मुख के कहि सब करिहउँ ॥
समदत मम सब समद सकारा । भयउ मोहि पर बहु उपकारा ॥
सिय पिय पुरइन चरन रमन्ता । अहइँ कहाँ मधुकर हनुमंता ॥
प्रभु दरसन धन साधन सोंही । तासु कृपा सों मेलिहि मोही ॥
तिन्ह अवनि का का नहि मेले । साधु सुबुध मेलिहि जो हेले ॥
संत प्रसादु मैं लेइ पारा । होइहि श्रापु संग उद्धारा ॥
जिन्ह भगवन के जसो गाना । कहिहि सुनिहि नित संत सुजाना ॥
मोरे दरपन लोचना तिनके दरसन जोहि ।
तौ छबि मंगल मूरती, अंतर दोहर होहि ।।
रविवार , ०८ मार्च,२०१५
बितिहि बयस प्रभु दरस बिछोही । सेष माहि कास दरसन होहीं ।
परसत जिनके चरन धूलिका । मुनि पतिनिहि रूप भयउ सिलिका ॥
जो जोधिक प्रभु बदन लखाइहि । जुझनरत सो परम गति पाइहि ॥
जो रसना पर्भु नाउ पुकारी । होइहि सोइ गति के अधिकारी ॥
जिन्हनि चिंतहि नित जति जोगी । पद अनुरत जत मनस निजोगी ॥
धन्य धन्य सो अबध निबासी । धन्य धन्य सो सकल सकासी ॥
जो बिभु बदन पदुम कर चिन्हे ।लोचन पुट दरसन रस लिन्हे ॥
पुनि सत्रुहन अस बचन कहेऊ । नृप तुम बिरधा बयस गहेऊ ॥
एहि हुँत तुअ श्रीराम सहुँ, पूजनीअ मम सोहि ।
करे समर्पन आपही तुहरे बढ़पन होहि ॥
सोमवार , ०९ मार्च, २०१५
होहि जग सों ए राज । तुहरे भू के तुअहि अनूपा ॥
छतरी के एही कारज होही । किए उपनत रन अवसरु सोही ॥
यहू धन समदन लेइ बहोरै । अस कह सत्रुहन दुइ कर जोरै ॥
अरु कहि सब रन साज समाजू । सं महि जावन मोर हे राजू ॥
होइहि सैनि समागम तोरे । तिनके बल बाढ़िहि बल मोरे ॥
साद निगान सुधि सत्रुहन जी के । सुंबाहु मन लागिहि बहु नीके ॥
तनुभव मस्तक तिलक धराई । जन पालक कर भार गहाई ॥
बहुरि महारथि संग घेराए । दाह करन सुत समर भू आए ॥
जब बिधिबत सब क्रिया किए ते दुःख दिरिस बिलोक ।
नयन भयउ गगन बरखन छाए रहे घन सोक ॥
मंगलवार, १० मार्च, २०१५
लोचन पटल जल बिंदु झारै । रघुबर सुमिरन सोष निबारै ।
सतत सुरति सब सोक दूराए । बहोरि सकल रन साज सजाए ॥
ले चतुरंगी सैन बिसाला । रामानुज पहि आए भुआला ॥
गहि बल दल गंजन जब देखे । बाजि रच्छन गमन हुँत लेखे ॥
समर्पित सुबाहु किरन छाँड़े ।आन रघुबर सेन कर बाड़े ॥
दल गंजन कर गहिगहि आहू । बढे सत्रुहन सहित सब नाहू ॥
प्राची दिसि के देस घनेरे । सब कहुँ फिर चरनिन्हि फेरे ॥
तहँ रहि भूरिहि संत बिबेका । रजै राज जग एक ते ऐका ॥
बर बर समर सूर संग पूजित रहि सब नाहु ।
किरन गहन जुग बाहु बल गहे रहे नहि काहु ॥
बुधवार, ११ मार्च,२०१५
को निज राज भूति दानए । को निज राजित राज प्रदानए ॥
को निज राज सिहासन देई । बिबिध बिधि अस चरन सब सेईं ॥
रुचत रवन रत सुनत मुनीसा । कहत बार्ता सतत अहीसा ।।
हे मुनिबर पुनि पवन अरोहित । सुबरन पतिका संग सुसोहित ॥
पूरब दिसि जब भँवर बहुराए । तेजसी तुरग तेजपुर आए ॥
धरमक ध्वजा हीरू प्रसन्ता । रहे दयामय तहँ के कंता ॥
सदा संच के सरन जुहारै । किए न्याय तो धर्म अधारै ॥
जोइ अनी अरि नगरि नसानी । निकस सो नगरि नियरइ आनी ॥
चित्र बहु बिचित्र परकोट रचाए । भीत नागर जन बसत सुहाए ॥
भगवन के चरनन्हि रति राखै ।पेम प्रमुदित सबहि मन लाखे ॥
सत्रुहन दृग दरसत रहे देवल चारिहि पास, ।
खनखन खंकन गुँज रहे ,बास रहे सुख बास ॥
बृहस्पतिवार, १२ मार्च, २०१५
सिउ संभु के सीस निवासिनी । सुरगार्मल श्री सुर कामिनी ॥
पौर पौर पथ पथ पबिताई । तरंगनी तहँ बहत सुहाई ॥
रिषि महर्षि मनीषि समुदाई । तिनके कूल सुरगति पाईं ॥
हबिरु भवन तहँ घर घर होईं ।ह्वन योजन करें सब कोई ॥
हवन धूम घन पदबी पावै । दूषक दूषित अनल बुझावै ॥
ऐसो पबित पुरी जब पेखे । सत्रुहन सुमति सन पूछ देखे ॥
सौं नागर जो देइ दिखाईं । तिनके दरसन बहु सुख दाई ॥
भयउ मुख मंजुल जासु महि के । सो नीक नगरि अहहि केहि के ॥
कहत सुमति महानुभाव, बुद्धि बल के निधान ।
इहँ के राउ रहें सदा,गहे चरन भगवान ।।
शुक्रवार, १३ मार्च, २०१५
कोमल हिय हरि सुरति सँजोई । अबिरल भगति तासु पद होई ॥
जेहि कथा सुनीहि जो कोई । ब्रम्ह हंत सों मोचित होईं ॥
राउ नाउ जहँ लग मैं जाना । होइब श्री मान सत्यबाना ।।
प्रभु बरग माहि परम ग्यानिहि । जागइक के सब अंग जानिहि ॥
महोदय इहाँ पूरब काला । रहे ऋतम्भर नाउ भुआला ।।
अस तौ तिनकी बहु तिय होइहि। जने न कोऊ जनिमन कोई ॥
को सुभागिनि गर्भ न गाही । पलाऊ रहेउ को सुत नाही ॥
एक बार सुभाग सों दुआरे । देबबस मुनि जबालि पधारे ॥
अर्थ धरम कामादि प्रदेसे । समउ अनुहर सेवैं नरेसे ॥
होतअगुसर चरन सिरु नायउ । निज सुख दुःख के मुनिरु सुनायउ ॥
पुत्र काम पर जोग कहत पूछे तासु उपाए ।
महिपत मन गलानि जान,मुनि बहु बिधि समुझाए ॥
शनिवार, १४ मार्च, २०१५
प्रजापति पुनि पुनि पूछ देखे । कोउ त जुगति मुनि मोहि लेखे ॥
जात जनित जो होए सहाई । कहौ कृपानिधि को उपाई ॥
दिष्ट बिधा जिन करिए प्रजोगे । मम कुल तरु नव साख सँजोगे ।।
सुनि अस मुनि एहि बचन उचारे । होही सिद्ध सुत काम तुहारे ॥
जोइ जनित जनिमन जन चहहीं । त्रिबिध उपाउ तासु हुँत अहहीं ॥
गिरि पति श्रीधर एक गौ होइहि । तीनि कृपाकर जिन सिरु जोइहि ॥
ऐसेउ कृपा जुगति प्रजोगिहि । सो अवसि जनित पद सुख भोगिहि ॥
भयउ उपजुगत तव हुँत राजन । देऊ सरूपा गउ के पूजन ॥
गौ मात के सकल अंग सुर के होत निकाए ।
एही कारन तासु पूजन, संतति के बर दाए ॥
रविवार १५ मार्च, २०१५
चतुस्तनिहि पूजन परितोखा । देऊ पिटर सब बिधि संतोखा॥
ब्रत पात जो गौ गुन गावै । नेम सहित नित भोजन दावे ॥
होयब सकल मनोरथ पूरन । ऐसेउ सत्कर्म के कारन ।।
त्रिसलु गउ जिन भवन बँधइहै । ऋतुमती कनिआँ बिनहि बिहइहै ॥
देंवन्हिबिग्रह चढ़े चढ़ावा ।दिवान्तर सुबह गति नहि पावा ॥
एहै करनी अस दूषन आनी । किए सत्कर्म सब धर्म नसानी ॥
चरत चरान जोइ अबरोधे । जानपनी हो हो कि अबोधे ॥
तासु पितर जन जोइ पद पाए । एहि करनी ओहि संग गिराए ॥
को कुबुद्धि कर धरे लकौटी । जान गँवारुहु मारए सौंटी ॥
ऐसेउ पापक बिनहि हाथा । परि जम पुर निज पातक साथा ॥
को कंठी पासा कंटक डाँसा पीठ करन चरन भरे ।
तिन्हनि कर सो हर करुनी ऊपर करुना कर पीर हरे ॥
गहि रुधिरु सोषिता करत रहिता गौ मात जी साँत करे ।
भए रोग अधारे करिहउँ उपचारे गहन घाव तन धरे ॥
ऐसेउ कृत करम संग पितरु उंच पद पाएँ ।
हॉट कृतारथ आपने बंसज असीरु दाएँ ॥
जर जर जब ज्वाल उत्तोले । पुष्कल रकत कमल मुख बोले ॥
मोरे बान ए तुहरी देही । खैंच तहँ सोन प्रान न लेहीं ॥
सील बिरध सति पति पतियारी । करे कलंकित को अस नारी ॥
परत जम पासल सो अतिचारी ।होइअहि जस गति के अधिकारी ॥
होही काल बस मम गत सोई । जो मोरे प्राण संच न होई ॥
पुष्कल करकत लाखे । रिपु दाल मुखिआ हँस अस भाखे ॥
प्रान गहि जग आनि जो कोई ।त्सु मारनी पुनि अवसिहि होई ॥
जो जुधिक जुद्ध जुझावत मरे । सो काल पास के भय न करे ॥
जो में काटि न नीबेरौं, तुहरे छाँड़े बान ।
हे रन प्रनत अजहुँ मोर , प्रनदित प्रन लो जान ॥
तीरथ सेवन कोउ उछाहे । जो अस उछाह नासन चाहे ॥
तासु किए पातक निज सिरु लिहौउँ । लिए सों मैं भंजत देखिहौउँ ॥
अस कह चित्रांग मुख उरगाए । त करस कुसा कर चाप चढ़ाए ॥
जो मोरि भगति प्रभु पद चीन्हि । कपट हीन जो बंदन कीन्हि ॥
जो मम हिय मम तिय अपराई । करे बिचार न कोउ पराई ॥
मोरे कहे बचन सत जोहीं । किए जो प्रन सो साँचहि होंही ॥
अस कह काँति मती के कन्ता । करम कार्मुक गहै तुरंता ॥
मर्म भेद एक बान संजोई । जोइ अगन जस तेजस होई ॥
भर भारौ उर भान जब छाँड़े सूल प्रचंड ।
चित्रांग चाप चपल तब , काटि करे दुइ खंड ॥
बुधवार,१८ फरवरी, २०१५
भयउ रन भुइ कोलाहल भारी । बरखि धूरि कीन्हेसि अँधियारी ॥
पुच्छल भाग मुख सोंह निबरे। घर्घर करत घुरमत जब गिरे ॥
पूरबारध भग फल जोहीं । रिपु दाल पति पर बेगि अगौहीं ॥
भयउ अरध सर धारा सारी । चतरंग कंठ काट निबारी ॥
कटे सीस भुइ निपतै कैंसे । कटत निपति नलिनी रूह जैसे ॥
निपटे कतहुँ किरीट कमंडल । निपत सोहि जस सस भू मंडल ॥
चित्रांग धरनि पारी जब देखे । पुष्कल कलिक ब्यूह प्रबेखे ॥
बीर कलाप कटक भट घेरे । किए जय जय नज गंजन केरे ॥
दरसी सुतन्हि सुबाहु जब, भयऊ प्रान बिहीन ।
सोकारत अस तरपे जस तरपत जल बिनु मीन ॥
बृहस्पतिवार, १९ फरवरी, २०१५
तेहि काल निज रथ कर कासे ।आगत दुनहु कुअँर पितु पासे ॥
प्रनत सीस अवनत चरन गहै ।सुरीत समयोचित बचन कहे ।।
हमरे जिअत गहै दुःख भारी ।बीर करम गति होत प्यारी ॥
चित्रांग रन रँग लौहु बजाए । संग्रामाँगन बीर गति पाए ॥
मात भ्रात भट पितु अनुरागी । धुरंधर सो धन्य के भागी ॥
महमते अजहुँ सोक निबारौ । बीर तनुज हुँत दुःख नहि धारौ ॥
महमन हमहि रन आजसु दाएँ । आपहु चित रन रंग रंगाएँ ।।
बाँध जिआ धनु बान सुधारे । तनुज बचन सुनि सैन सँभारे ॥
सोकाकुल उर घन जानि दमकत पानि कृपानि ।
तूर चरन राजन संग, तमकत रन भुइ आनि ॥
शुक्रवार, २० फरवरी, २०१५
कर सरासन सर भरे भाथा । आए कुँअर दुहु पितु के साथा ॥
कोटि कोटि भट भरे पूराए । जीवट उत्कट कटक भितराए ॥
निज निभ बाहु बली अभिलाखे । रन रंग रंजन भनिति भाखे ॥
नील अतं भए बिचित्र प्रसंगे रिपुताप सन दमन रन रंगे ॥
सुबाहु हिरन स्यंदन जोइहि । रनत रन सत्रुहन सोंहु होइहि ॥
पानि भुगत कृपान चहुँ फेरे । घेरे जिन्हनि बीर घनेरे।।
सुबाहु घेर बिभेदन लागे । हनुमन सत्रुहन रच्छन भागे ॥
भुज दल सिखर सागर बल धरे। घन सोह मुख घन गर्जन करे ॥
तेहि अवसर सुबाहु दस कठिन बान संधान ।
छूटत बेगि सरसर चर देइ चोट हनुमान ॥
शनिवार २१ फरवरी, २०१५
अतीव तूर उपल उर छोड़े । बीर भयंकर तृण करि तोड़े ।
जिन्ह कहत बली बिनहि तुलाए । झपट रउ रथ पूँछ लेवाए ॥
लपट बेगि लिए चले अगासा । नाहु नयन छत छाए हतासा ॥
बिचरत गगन हिरन रथ संगा । पाँख बिहूनइ भयउ बिहंगा ॥
रथ जहँ तहँ रहेउ रहि अबलम्बे। भावइ सर गहि बाहु प्रलम्बे ॥
मर्म अघातक पीरा दायक । छाँड़ेसि तुर तेज मुखि सायक ॥
भए बिहनत जब बारहि बारा ।किए हनुमंत अक्रोस अपारा ॥
धरि लात एक नाहु उर मारा । परेउ घात जनु बज्र प्रहारा ॥
गह अस तेज अघात,छतबान मुरुछा गहन किए ।
आँगन होत निपात, तपत रुधिर मुख बमन किए ॥
रविवार, २२ फरवरी, २०१५
हरिअर हहर साँस भर काँपे । अचेत नयन सपंन बिअ बाँपे ।।
श्री राम छबि इब अंकुर राजे । पख मख मण्डप भीत बिराजे ॥
भयउ रजनि कन जगन्न केरे । कांटी कर रहि चहुँ दिसि घेरे ॥
कोटिक ब्रम्हांड के प्रानी । ठाढ़ि रहे तहँ जोरे पानी ॥
ब्रम्हादिदेउ सहित मुनीसा । किएँ बर अस्तुति अवनत सीसा ॥
रमा रमन के कमल नयन के । श्री बिग्रह घन स्याम बरन के ॥
बोलत कल भूषन भए भृंगा । मुकुलित हस्त धरे मृग सींगा ॥
सुजस गान कर बाजिहि बीना । भयऊ भिनि भिनि भीनी भीना ।।
बेद मूर्ति मान होत प्रगसे सगुन सरूप ।
राजन के सपन दरपन, दरसिहि छटा अनूप ॥
सोम /मंगल २३/२४ फरवरी, २०१५
करत भनित प्रभु चरन अराधएँ । तपो निधान रूप जस लागएँ ॥
जे जग जो किछु सुघर सँजोइल । देनहार श्री रामहि होइल ॥
कुजिहि कूनिका सहु छहु रागे । तबहि अचेत नाहु चित जागे ॥
छाए मोदु मन गयउ प्रमादा । पुनि सत्रुहन पहि चले पयादा ॥
चरत चरत रन अजिरु महुँ आए । बिचित्र दमन रन रंग रंगाए ।
हाँक दिए तिन्ह निकट बुलायो । रन रोधन कारन समझायो ॥
बहोरि सुकेतु कोत बिलोके । करत सँकेतु अजुद्धिक रोके ॥
सपन दर्पन छबि लोचन छाए । कहि भै हमसों बहुत अन्याए ॥
चराचर जागती के जो स्वामी । जो परब्रम्हन अंतरजामी ॥
कारज कारन दुहु सोहि परे । तिन्ह के मेधिआ बाजि धरे ॥
सोई राम रूप भगवाना ।ए गूढ़ बचन अजहुँ मैं जाना ॥
मनुज गात गह लिए अवतारे।एहि अवनिहि हित हेतु हमारे ॥
पुनि सुबाहु सुत भ्रात सहुँ, बरनै सोई प्रसंग ।
असितांग मुनि को हाँस,भयउ जोइ तिन संग ॥
बुधवार,२५ फरवरी, २०१५
निगदि नाहु कर कोमल बानी । सुनु सुत भ्रात ए बात पुरानी ॥
पैहन मैं सत सार ग्याना । पर हित हेतु तीरथ जिहाना ॥
देइ दरस मग मुनिबर नेका । धरम परायन परम प्रबेका ॥
भगवन मम कर औसर देबा । किए असितांग मुनि के सेबा ॥
मो ऊपर किए कृपा बिसेषा । जति धर्म दिए मोहि उपदेसा ॥
जासु महत माहि अगुन अबाधा । बारे सिंधु जस बारि अगाधा ॥
जो सुभ सरूप रूप सँजोई । तासु नाउ परब्रम्हा होई ॥
जनक किसोरि राम की जानि । साखि चिन्मई बल गई मानि ॥
दुस्तर अपार संसार सिंधु पार गमन जो कोउ चहैं ।
सो जति धरमी सङ्कृत करमी हरिहि पदुम पद पूजतहैं ॥
चतुर्भुज रूपा महि भूपा जासु गरुड़ ध्वज धारी कहैं ।
दसरथ के अजिरु बिहारी सोई बिष्नु अवतारी अहैं ॥
तिन्ह भगवन भावनुरत पूजिहि जो नर नारि ।
भव सिंधु तर सो होइहि परम गति के धिकारि ॥
बृहस्पतिवार,२६ फरवरी, २०१५
सुनि मुनि निगदन मैं उपहासा । भय भूप सो मोर सकासा ॥
राम मनुज सधारनहि होई । बिष्नु रूप हर सकै न कोई ॥
हर्ष सोक सागर जो गाहिहि । सो तिय श्री कैसेउ कहाही ॥
अजनमनी कैसेउ जन्माए । जगत अकर्ता जगत कस आए ॥
जासु आदि न मध्य अवसाना । अमित प्रभाउ बेद न जाना ॥
भब भब बिभब पराभब कारी । नयन भवन एक प्रश्न निहारी ॥
जूट केस उपदेसु मो कहहु । सो राम बिष्नु रूप कस अहहु ॥
निगदित बचनन दिए जब काना । किए अभिसपत मोहि बिद्बाना ॥
पलक पयधि गह लगन हिलोले । धनुमुख बानि बान भर बोले ।।
अधमी रघुबर रूप न जाने । बर मुनि कहेउ बचन न माने ॥
निदेउ मान सधारन भगवन मानस रूप ।
मोर संग प्रतिबाद किए समुझइ निज बर भूप ॥
शुक्रवार, २७ फरवरी, २०१५
कहे ऐसेउ उपहास बचन । होइहु जहँ त उदर परायन ॥
तुम्हारे सकल सार ग्याना । मोर श्राप सों होहि बिहाना ॥
सुन अस मम उर भए भय भीता । सकल सार ग्यान सों रीता ॥
धरा सीस धर मैं पग धारा । मुनिरु उपल मन बन द्रव धारा ॥
भरे भीत करुना के सागर । बोले अस मो भर भुज अंतर ॥
रघुबर स्व मेध जब करिहीं । तुहरे सोहि रन बिघन धरिही॥
करिहीं घात बेगि हनुमंता । सुनु हे चकरनका के कंता ॥
तब तोहि होहि ए ग्यान राम रूप भगवान ।
न तरु निज कुमति संग तुअ, सकिहु न अजिवन जान ॥
शनिवार, २८ फरवरी, २०१५
मुनि मनीषि मुख जो कहि भाखा । तासु भान होइहि मो साखा ॥
जाहु महबली रघुबर जी के । आनौ लेइ है किरन गहि के ॥
सब धन सब साधन तीन संगा । मम राजित एही राज प्रसंगा ॥
करिहउँ में अर्पित भगवाना । कारन एहि मख धर्म प्रधाना ॥
दरस प्रभु मैं कृतकृत होइहउँ । तिनके तुरग दए कर जोइहउँ ॥
सुबाहु सुत बर रीति रनइता । श्रुतु पितु बचन भए अति हर्षिता ॥
पितु जस रघुबर दरस उछाहीं । मीचु मेहन मोद मुख छाहीं ।\
नयन गगन जल बिंदु हिलोले । भ्रात तनुज दुहु भीनत बोले ॥
हमहि कुछु अरु जानए नहि, एक तव चरन बिहोर ।
तुहरे दिनकर बचन किए हमरे तमि मन भोर ॥
रविवार, 01 मार्च ,२०१५
जो प्रभु दरस के सुभ संकल्पा । तुहरे हरिदै जो किछु कल्पा ॥
अजहुँ सोइ सब होवन चाहिब । चहँहि हयहु रघुबर पहि जाइब ॥
तुम स्वामि तुम अग्याकारी ।हम तव सेबक हम अनुहारी ॥
तव अग्या जो जोइ सँजोही । अनुपजोगि सों जोगित होही ॥
स्याम नील हरि मनि सम रतन ।हय हस्ति सोहि हिरन सयंदन ॥
गहि धन साधन लाखहि लाखा । सब द्रव प्रभु पद देइहु राखा ॥
हम सोन किंकर सकल तुहारे ।हमहि तिन्ह सन अर्पित कारें ॥
भयउ अभ्युदय सो सब लिज्यो ।रघुबर चरन समर्पन किज्यो ॥
श्रुत सुत बचन सुबाहु मन भयउ हर्ष बहु भारि ।
बीर बलि बलिहार के , ऐसे गदन उचारि ॥
सोमवार,०२ मार्च,२०१५
चँवर ध्वज बर बाजि सुसाजे । बीर जुहा रन साज समाजे ॥
गहे कर अजुध बिबध प्रकारे । तुम्ह सबहि रथ घेरा घारे ॥
साजि राज गज सब ले लइहौ ।भोरि सत्रुहन पहि सन जइहौ ॥
कहत बहुरि अहिपत भगवाना ।सुबहु के निगदन दे काना ॥
बिचित्र दमन सुकेतु सरि धीरा । अन्यानै समर सूर बीरा ॥
प्रजा पालक अग्यानुहारे । गयउ सहरषित नगर पँवारे ॥
पयस मयूखी बदन मनोहर । रजत चंवर बर जोगित तापर ॥
सुबर्नमय पत्रक लक लँकृते । अक्छत कृत तिलक लषन सहिते॥
चपल चरन स्याम करन,मनिसर माल सँजोह ।
हय कर किरन पुंज धरे आनि प्रजा पति सोंह ॥
मंगलवार, ०३ मार्च,२०१५
राजस्यंद जब सोहि देखा । सुबाहु बदन हर्ष अबलेखा ॥
दुहु सपूत भट भ्रात प्रसंगे । सकल साज सँजोउ लए संगे ॥
चले पयादिक पंथ अधीसा । नयन अवनत बिनइबत सीसा ॥
सत्रुहनहि पदक पुर अस धूरे । भोर भूरे जस साँझ बहुरे ॥
जीवन साधन छन छबि जाने । तासों अनुरति दुःख गति माने ।।
जोइ नसावनि पथ ले गवने । सो धन सम्पद् सहुँ लए अवने ॥
सत्रुहन नियर अगत का देखे । बरे बपुरधर बरन बिसेखे ॥
पीत बसन बल बल्गन बासे । उपपंखि निबासे
भरे भेष भुज सिखर बिसाला । हरिद पलासिक लावनि लाला ॥
कूल कलित कल खंकन बाजे । मनियारि मंजरी बिराजे ॥
अवनि चरन अरु गगन पताका । निश्तेज भुवन तमक तकि ताका ॥
सोहि उज्जबर छतर छाँउकर । तेज द्युतकर सोहि सुहाकर ॥
सोहि सो सुमति अस्थीर सब भट तीरहि तीर ।
श्री राम कथा बारता, पूछ रहे महबीर ॥
बुधवार, ०४ मार्च, २०१५
सत्रुहन कुल दीपक सम लस्यो ।सुहा द्युतिस के सम बस्यो ॥
बिलोकत बीर बलि बाँकुर पुर । भय मुख आपहि भयउ भयातुर ॥
दरसत तिन्ह सुत भ्रात सहिता ।सुबाहु रोष भए रनन रहिता ॥
प्रसारित कर मुख रघुबर नामा ।गहे चरन पुनि करे प्रनामा ॥
रोम हरष तन चित हरि चिंतन । नयन छटा छबि भाव बिहल मन ॥
सत्रुहन मित सम समदन बाढ़े । रामानुज उठ आसन छाँड़े॥
समदन सब सहुँ बाहु पसारे । प्रमुदित समुदय लेइ सकारे ॥
राउ भयउ बहु भाव बिभोरे । धन्य धन्य मैं कहि कर जोरे ॥
पलक पयस पखारी के पूजत पद भल भाँति ।
समद समर्पन कर के, छाए बदन कल काँति ॥
बृहस्पतिवार,०५ मार्च,२०१५
गदगद गिरा पेम रस साने । कहत कोमली करुन निधाने ॥
जो पद जग अभिनन्दन होंही । मिले भाग सो परसन मोही ॥
तरसहि पावस पुरी पँवारे । अहो भग तव चरन पधारे ॥
मोर सुत दमन बयस न सोधा ।प्रभि अजहु सो भयउ अबोधा ॥
मम सुत बालक आपु सयाने । बाँधे बाजि तिन्ह छम दाने ॥
जो सब देवन्हि देवल हारे ।जग सर्जनित पाल संहारे ॥
जान बिनु जग सिरोमनि नामा । कौतुकी करात किए एहि कामा ।
राज सैनि रन सज सँजोई । सकल अंग बहु अंकक जोई ॥
भरे पुरे एहि राज के, अहैं भूति जो कोइ ।
मो सहित मोर सुत भ्रात,सब आपहि के होइ ॥
शुक्रवार,०६ मार्च, २०१५
कहै सुबाहु पुनि चरन गहि के । श्री राम स्वामि हम सबहि के ।
बिभो अग्या मैं सिरौ धरिहउँ । तुहरे मुख के कहि सब करिहउँ ॥
समदत मम सब समद सकारा । भयउ मोहि पर बहु उपकारा ॥
सिय पिय पुरइन चरन रमन्ता । अहइँ कहाँ मधुकर हनुमंता ॥
प्रभु दरसन धन साधन सोंही । तासु कृपा सों मेलिहि मोही ॥
तिन्ह अवनि का का नहि मेले । साधु सुबुध मेलिहि जो हेले ॥
संत प्रसादु मैं लेइ पारा । होइहि श्रापु संग उद्धारा ॥
जिन्ह भगवन के जसो गाना । कहिहि सुनिहि नित संत सुजाना ॥
मोरे दरपन लोचना तिनके दरसन जोहि ।
तौ छबि मंगल मूरती, अंतर दोहर होहि ।।
रविवार , ०८ मार्च,२०१५
बितिहि बयस प्रभु दरस बिछोही । सेष माहि कास दरसन होहीं ।
परसत जिनके चरन धूलिका । मुनि पतिनिहि रूप भयउ सिलिका ॥
जो जोधिक प्रभु बदन लखाइहि । जुझनरत सो परम गति पाइहि ॥
जो रसना पर्भु नाउ पुकारी । होइहि सोइ गति के अधिकारी ॥
जिन्हनि चिंतहि नित जति जोगी । पद अनुरत जत मनस निजोगी ॥
धन्य धन्य सो अबध निबासी । धन्य धन्य सो सकल सकासी ॥
जो बिभु बदन पदुम कर चिन्हे ।लोचन पुट दरसन रस लिन्हे ॥
पुनि सत्रुहन अस बचन कहेऊ । नृप तुम बिरधा बयस गहेऊ ॥
एहि हुँत तुअ श्रीराम सहुँ, पूजनीअ मम सोहि ।
करे समर्पन आपही तुहरे बढ़पन होहि ॥
सोमवार , ०९ मार्च, २०१५
होहि जग सों ए राज । तुहरे भू के तुअहि अनूपा ॥
छतरी के एही कारज होही । किए उपनत रन अवसरु सोही ॥
यहू धन समदन लेइ बहोरै । अस कह सत्रुहन दुइ कर जोरै ॥
अरु कहि सब रन साज समाजू । सं महि जावन मोर हे राजू ॥
होइहि सैनि समागम तोरे । तिनके बल बाढ़िहि बल मोरे ॥
साद निगान सुधि सत्रुहन जी के । सुंबाहु मन लागिहि बहु नीके ॥
तनुभव मस्तक तिलक धराई । जन पालक कर भार गहाई ॥
बहुरि महारथि संग घेराए । दाह करन सुत समर भू आए ॥
जब बिधिबत सब क्रिया किए ते दुःख दिरिस बिलोक ।
नयन भयउ गगन बरखन छाए रहे घन सोक ॥
मंगलवार, १० मार्च, २०१५
लोचन पटल जल बिंदु झारै । रघुबर सुमिरन सोष निबारै ।
सतत सुरति सब सोक दूराए । बहोरि सकल रन साज सजाए ॥
ले चतुरंगी सैन बिसाला । रामानुज पहि आए भुआला ॥
गहि बल दल गंजन जब देखे । बाजि रच्छन गमन हुँत लेखे ॥
समर्पित सुबाहु किरन छाँड़े ।आन रघुबर सेन कर बाड़े ॥
दल गंजन कर गहिगहि आहू । बढे सत्रुहन सहित सब नाहू ॥
प्राची दिसि के देस घनेरे । सब कहुँ फिर चरनिन्हि फेरे ॥
तहँ रहि भूरिहि संत बिबेका । रजै राज जग एक ते ऐका ॥
बर बर समर सूर संग पूजित रहि सब नाहु ।
किरन गहन जुग बाहु बल गहे रहे नहि काहु ॥
बुधवार, ११ मार्च,२०१५
को निज राज भूति दानए । को निज राजित राज प्रदानए ॥
को निज राज सिहासन देई । बिबिध बिधि अस चरन सब सेईं ॥
रुचत रवन रत सुनत मुनीसा । कहत बार्ता सतत अहीसा ।।
हे मुनिबर पुनि पवन अरोहित । सुबरन पतिका संग सुसोहित ॥
पूरब दिसि जब भँवर बहुराए । तेजसी तुरग तेजपुर आए ॥
धरमक ध्वजा हीरू प्रसन्ता । रहे दयामय तहँ के कंता ॥
सदा संच के सरन जुहारै । किए न्याय तो धर्म अधारै ॥
जोइ अनी अरि नगरि नसानी । निकस सो नगरि नियरइ आनी ॥
चित्र बहु बिचित्र परकोट रचाए । भीत नागर जन बसत सुहाए ॥
भगवन के चरनन्हि रति राखै ।पेम प्रमुदित सबहि मन लाखे ॥
सत्रुहन दृग दरसत रहे देवल चारिहि पास, ।
खनखन खंकन गुँज रहे ,बास रहे सुख बास ॥
बृहस्पतिवार, १२ मार्च, २०१५
सिउ संभु के सीस निवासिनी । सुरगार्मल श्री सुर कामिनी ॥
पौर पौर पथ पथ पबिताई । तरंगनी तहँ बहत सुहाई ॥
रिषि महर्षि मनीषि समुदाई । तिनके कूल सुरगति पाईं ॥
हबिरु भवन तहँ घर घर होईं ।ह्वन योजन करें सब कोई ॥
हवन धूम घन पदबी पावै । दूषक दूषित अनल बुझावै ॥
ऐसो पबित पुरी जब पेखे । सत्रुहन सुमति सन पूछ देखे ॥
सौं नागर जो देइ दिखाईं । तिनके दरसन बहु सुख दाई ॥
भयउ मुख मंजुल जासु महि के । सो नीक नगरि अहहि केहि के ॥
कहत सुमति महानुभाव, बुद्धि बल के निधान ।
इहँ के राउ रहें सदा,गहे चरन भगवान ।।
शुक्रवार, १३ मार्च, २०१५
कोमल हिय हरि सुरति सँजोई । अबिरल भगति तासु पद होई ॥
जेहि कथा सुनीहि जो कोई । ब्रम्ह हंत सों मोचित होईं ॥
राउ नाउ जहँ लग मैं जाना । होइब श्री मान सत्यबाना ।।
प्रभु बरग माहि परम ग्यानिहि । जागइक के सब अंग जानिहि ॥
महोदय इहाँ पूरब काला । रहे ऋतम्भर नाउ भुआला ।।
अस तौ तिनकी बहु तिय होइहि। जने न कोऊ जनिमन कोई ॥
को सुभागिनि गर्भ न गाही । पलाऊ रहेउ को सुत नाही ॥
एक बार सुभाग सों दुआरे । देबबस मुनि जबालि पधारे ॥
अर्थ धरम कामादि प्रदेसे । समउ अनुहर सेवैं नरेसे ॥
होतअगुसर चरन सिरु नायउ । निज सुख दुःख के मुनिरु सुनायउ ॥
पुत्र काम पर जोग कहत पूछे तासु उपाए ।
महिपत मन गलानि जान,मुनि बहु बिधि समुझाए ॥
शनिवार, १४ मार्च, २०१५
प्रजापति पुनि पुनि पूछ देखे । कोउ त जुगति मुनि मोहि लेखे ॥
जात जनित जो होए सहाई । कहौ कृपानिधि को उपाई ॥
दिष्ट बिधा जिन करिए प्रजोगे । मम कुल तरु नव साख सँजोगे ।।
सुनि अस मुनि एहि बचन उचारे । होही सिद्ध सुत काम तुहारे ॥
जोइ जनित जनिमन जन चहहीं । त्रिबिध उपाउ तासु हुँत अहहीं ॥
गिरि पति श्रीधर एक गौ होइहि । तीनि कृपाकर जिन सिरु जोइहि ॥
ऐसेउ कृपा जुगति प्रजोगिहि । सो अवसि जनित पद सुख भोगिहि ॥
भयउ उपजुगत तव हुँत राजन । देऊ सरूपा गउ के पूजन ॥
गौ मात के सकल अंग सुर के होत निकाए ।
एही कारन तासु पूजन, संतति के बर दाए ॥
रविवार १५ मार्च, २०१५
चतुस्तनिहि पूजन परितोखा । देऊ पिटर सब बिधि संतोखा॥
ब्रत पात जो गौ गुन गावै । नेम सहित नित भोजन दावे ॥
होयब सकल मनोरथ पूरन । ऐसेउ सत्कर्म के कारन ।।
त्रिसलु गउ जिन भवन बँधइहै । ऋतुमती कनिआँ बिनहि बिहइहै ॥
देंवन्हिबिग्रह चढ़े चढ़ावा ।दिवान्तर सुबह गति नहि पावा ॥
एहै करनी अस दूषन आनी । किए सत्कर्म सब धर्म नसानी ॥
चरत चरान जोइ अबरोधे । जानपनी हो हो कि अबोधे ॥
तासु पितर जन जोइ पद पाए । एहि करनी ओहि संग गिराए ॥
को कुबुद्धि कर धरे लकौटी । जान गँवारुहु मारए सौंटी ॥
ऐसेउ पापक बिनहि हाथा । परि जम पुर निज पातक साथा ॥
को कंठी पासा कंटक डाँसा पीठ करन चरन भरे ।
तिन्हनि कर सो हर करुनी ऊपर करुना कर पीर हरे ॥
गहि रुधिरु सोषिता करत रहिता गौ मात जी साँत करे ।
भए रोग अधारे करिहउँ उपचारे गहन घाव तन धरे ॥
ऐसेउ कृत करम संग पितरु उंच पद पाएँ ।
हॉट कृतारथ आपने बंसज असीरु दाएँ ॥