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----- ॥ उत्तर-काण्ड २७-२८ ॥ -----

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सोम / मंगल , १६ /१७ फरवरी २०१५                                                                                

जर जर जब ज्वाल उत्तोले  । पुष्कल रकत कमल मुख बोले ॥ 

मोरे बान ए  तुहरी देही । खैंच तहँ सोन प्रान  न लेहीं ॥ 

सील बिरध सति पति पतियारी । करे कलंकित  को अस नारी ॥ 

परत जम पासल सो अतिचारी ।होइअहि जस गति के अधिकारी ॥ 

होही काल बस मम गत सोई । जो मोरे प्राण संच न होई ॥ 

पुष्कल करकत लाखे । रिपु दाल मुखिआ हँस अस भाखे ॥ 

प्रान गहि जग आनि जो कोई ।त्सु मारनी पुनि अवसिहि होई ॥ 

जो जुधिक जुद्ध  जुझावत मरे । सो काल पास के भय न करे ॥ 

 जो में काटि न नीबेरौं,  तुहरे छाँड़े बान । 
हे रन प्रनत अजहुँ मोर , प्रनदित प्रन लो जान ॥  

तीरथ सेवन कोउ  उछाहे । जो अस उछाह नासन चाहे ॥ 
तासु किए पातक निज सिरु लिहौउँ  । लिए सों मैं भंजत देखिहौउँ ॥ 

अस कह चित्रांग मुख उरगाए । त करस कुसा कर चाप चढ़ाए ॥ 

जो मोरि भगति प्रभु पद चीन्हि । कपट हीन जो बंदन कीन्हि ॥ 

जो मम हिय मम तिय अपराई । करे बिचार न कोउ पराई ॥ 
मोरे कहे बचन सत जोहीं  । किए जो प्रन सो साँचहि होंही ॥ 

अस कह काँति मती के कन्ता । करम कार्मुक गहै तुरंता ॥ 
मर्म भेद एक बान  संजोई । जोइ अगन जस तेजस होई ॥ 

भर भारौ उर भान जब छाँड़े सूल प्रचंड । 
चित्रांग चाप चपल तब , काटि करे दुइ खंड ॥ 

बुधवार,१८ फरवरी, २०१५                                                                                                    

भयउ रन भुइ कोलाहल भारी । बरखि धूरि कीन्हेसि अँधियारी ॥ 
पुच्छल भाग मुख सोंह निबरे। घर्घर करत  घुरमत जब गिरे ॥ 

पूरबारध भग फल जोहीं । रिपु दाल पति पर बेगि अगौहीं ॥ 
भयउ अरध सर धारा सारी । चतरंग कंठ काट निबारी ॥ 

कटे सीस भुइ निपतै कैंसे । कटत निपति नलिनी रूह जैसे ॥ 
निपटे कतहुँ किरीट कमंडल । निपत सोहि जस सस भू मंडल ॥ 

चित्रांग धरनि पारी जब देखे । पुष्कल कलिक ब्यूह प्रबेखे ॥ 
बीर कलाप कटक भट घेरे । किए जय जय नज गंजन केरे ॥ 

दरसी सुतन्हि सुबाहु जब, भयऊ प्रान बिहीन । 
सोकारत अस तरपे जस तरपत जल बिनु मीन ॥ 

बृहस्पतिवार, १९ फरवरी, २०१५                                                                                                

तेहि काल निज रथ कर कासे ।आगत दुनहु कुअँर पितु पासे ॥ 
प्रनत सीस अवनत चरन गहै ।सुरीत समयोचित बचन कहे ।। 

 हमरे जिअत गहै दुःख भारी ।बीर करम गति होत  प्यारी ॥ 
चित्रांग रन रँग लौहु बजाए । संग्रामाँगन बीर गति पाए ॥ 

मात भ्रात भट पितु अनुरागी । धुरंधर सो धन्य के भागी ॥ 
महमते अजहुँ सोक निबारौ । बीर तनुज हुँत दुःख नहि धारौ ॥ 

महमन हमहि रन आजसु दाएँ । आपहु चित रन रंग रंगाएँ ।। 
बाँध जिआ धनु बान सुधारे । तनुज बचन सुनि सैन सँभारे ॥ 

सोकाकुल उर घन जानि दमकत पानि कृपानि । 
तूर चरन राजन संग, तमकत रन भुइ आनि ॥ 

शुक्रवार, २० फरवरी, २०१५                                                                                                    

कर सरासन  सर भरे भाथा । आए कुँअर दुहु पितु के साथा ॥ 
कोटि कोटि भट भरे पूराए । जीवट उत्कट कटक भितराए ॥ 

निज निभ बाहु बली अभिलाखे । रन रंग रंजन भनिति भाखे ॥ 
नील अतं भए बिचित्र प्रसंगे रिपुताप सन दमन रन रंगे ॥ 

सुबाहु हिरन स्यंदन जोइहि  । रनत रन सत्रुहन सोंहु होइहि ॥ 
पानि भुगत कृपान चहुँ फेरे । घेरे जिन्हनि बीर घनेरे।। 

सुबाहु घेर बिभेदन लागे । हनुमन सत्रुहन रच्छन  भागे ॥ 
भुज दल सिखर सागर बल धरे। घन सोह मुख घन गर्जन करे  ॥ 

तेहि  अवसर सुबाहु दस कठिन बान संधान । 
छूटत बेगि सरसर चर  देइ चोट हनुमान ॥ 

शनिवार २१ फरवरी, २०१५                                                                                                   

अतीव तूर उपल उर छोड़े । बीर भयंकर तृण करि तोड़े । 
जिन्ह कहत बली बिनहि तुलाए । झपट रउ रथ पूँछ लेवाए ॥ 

लपट बेगि लिए चले अगासा । नाहु नयन छत छाए हतासा ॥ 
बिचरत गगन हिरन रथ संगा । पाँख बिहूनइ भयउ बिहंगा ॥ 

रथ जहँ तहँ रहेउ रहि अबलम्बे। भावइ सर गहि बाहु प्रलम्बे ॥ 
मर्म अघातक पीरा दायक । छाँड़ेसि तुर तेज मुखि सायक ॥ 

भए बिहनत जब बारहि बारा ।किए हनुमंत अक्रोस अपारा ॥ 
धरि लात एक नाहु उर मारा । परेउ घात जनु बज्र प्रहारा ॥ 

गह अस तेज अघात,छतबान मुरुछा गहन किए । 
आँगन होत निपात, तपत रुधिर मुख बमन किए ॥  


रविवार, २२ फरवरी, २०१५                                                                                               

हरिअर हहर साँस भर काँपे । अचेत नयन सपंन बिअ बाँपे ।।  
श्री राम छबि इब अंकुर राजे । पख मख मण्डप भीत बिराजे ॥ 

भयउ रजनि कन जगन्न केरे । कांटी कर रहि चहुँ दिसि घेरे ॥ 
कोटिक ब्रम्हांड के प्रानी । ठाढ़ि रहे तहँ जोरे पानी ॥ 

ब्रम्हादिदेउ सहित मुनीसा । किएँ बर अस्तुति अवनत सीसा ॥ 
रमा रमन के कमल नयन के । श्री बिग्रह घन स्याम बरन के ॥ 

बोलत  कल भूषन भए भृंगा । मुकुलित हस्त धरे मृग सींगा ॥ 
सुजस गान कर बाजिहि बीना । भयऊ भिनि भिनि भीनी भीना ।। 

बेद  मूर्ति मान होत  प्रगसे सगुन सरूप । 
राजन के सपन दरपन, दरसिहि छटा अनूप ॥  

सोम /मंगल  २३/२४ फरवरी, २०१५                                                                                 

करत भनित प्रभु चरन अराधएँ । तपो निधान रूप जस लागएँ ॥ 
जे जग जो किछु सुघर सँजोइल । देनहार श्री रामहि होइल ॥ 

कुजिहि कूनिका सहु छहु रागे । तबहि अचेत नाहु चित जागे ॥   
छाए मोदु मन गयउ प्रमादा । पुनि सत्रुहन पहि चले पयादा ॥ 

चरत चरत रन अजिरु महुँ आए । बिचित्र दमन रन रंग रंगाए । 
हाँक दिए तिन्ह निकट बुलायो । रन रोधन कारन समझायो ॥ 

बहोरि सुकेतु कोत बिलोके ।  करत सँकेतु अजुद्धिक रोके ॥ 
सपन दर्पन छबि लोचन छाए । कहि भै हमसों बहुत अन्याए ॥ 

चराचर जागती के जो स्वामी । जो परब्रम्हन अंतरजामी ॥ 
कारज कारन दुहु सोहि परे । तिन्ह के मेधिआ बाजि धरे ॥ 

सोई राम रूप भगवाना ।ए गूढ़ बचन अजहुँ मैं जाना ॥ 
मनुज गात गह लिए अवतारे।एहि अवनिहि हित हेतु हमारे ॥ 

पुनि सुबाहु सुत भ्रात सहुँ, बरनै सोई प्रसंग । 
असितांग मुनि को हाँस,भयउ जोइ तिन संग ॥    

बुधवार,२५ फरवरी, २०१५                                                                                             

निगदि नाहु कर कोमल बानी । सुनु सुत भ्रात ए बात पुरानी ॥ 
पैहन मैं सत सार ग्याना । पर हित हेतु तीरथ जिहाना ॥ 

देइ दरस मग मुनिबर नेका । धरम परायन परम प्रबेका ॥ 
भगवन मम कर औसर  देबा । किए असितांग मुनि के सेबा ॥

मो ऊपर किए कृपा बिसेषा । जति धर्म दिए मोहि उपदेसा ॥ 
जासु महत माहि अगुन अबाधा । बारे सिंधु जस बारि अगाधा ॥ 

जो सुभ सरूप रूप सँजोई ।     तासु नाउ परब्रम्हा होई ॥ 
जनक किसोरि राम की जानि । साखि चिन्मई बल गई मानि ॥ 

दुस्तर अपार संसार सिंधु पार गमन जो कोउ चहैं ।
सो जति धरमी सङ्कृत करमी हरिहि पदुम पद पूजतहैं ॥ 
चतुर्भुज रूपा महि भूपा जासु गरुड़ ध्वज धारी कहैं । 
दसरथ के अजिरु बिहारी सोई बिष्नु अवतारी अहैं ॥ 

तिन्ह भगवन भावनुरत पूजिहि जो नर नारि । 
भव सिंधु तर सो होइहि परम गति के धिकारि ॥ 

बृहस्पतिवार,२६ फरवरी, २०१५                                                                                                 

सुनि मुनि निगदन मैं उपहासा । भय भूप सो मोर सकासा ॥ 
राम मनुज सधारनहि होई । बिष्नु रूप हर सकै न कोई ॥ 

हर्ष सोक सागर जो गाहिहि । सो तिय श्री कैसेउ कहाही ॥ 
अजनमनी कैसेउ जन्माए । जगत अकर्ता जगत कस आए ॥ 

जासु आदि न मध्य अवसाना । अमित प्रभाउ बेद न जाना ॥ 
भब भब बिभब पराभब कारी । नयन भवन एक प्रश्न निहारी ॥ 

जूट केस उपदेसु मो कहहु  । सो राम बिष्नु रूप कस अहहु ॥ 
निगदित बचनन दिए जब काना । किए अभिसपत मोहि बिद्बाना ॥ 

पलक पयधि गह लगन हिलोले । धनुमुख बानि बान भर बोले ।। 
अधमी रघुबर रूप न जाने । बर मुनि कहेउ बचन न माने ॥ 

निदेउ मान सधारन भगवन मानस रूप । 
मोर संग प्रतिबाद किए समुझइ निज बर भूप ॥ 

शुक्रवार, २७ फरवरी, २०१५                                                                                                       

कहे ऐसेउ उपहास बचन । होइहु जहँ त  उदर परायन ॥ 
तुम्हारे सकल सार ग्याना । मोर श्राप सों होहि बिहाना ॥ 

सुन अस मम उर भए भय भीता । सकल सार ग्यान सों रीता ॥ 
धरा सीस धर मैं पग धारा । मुनिरु उपल मन बन द्रव धारा ॥ 

भरे भीत करुना के सागर । बोले अस मो  भर भुज अंतर ॥ 
रघुबर स्व मेध जब करिहीं । तुहरे सोहि रन बिघन धरिही॥ 

करिहीं घात बेगि हनुमंता । सुनु हे चकरनका के कंता ॥

तब तोहि होहि ए ग्यान राम रूप भगवान । 
न तरु निज कुमति संग तुअ, सकिहु न अजिवन जान ॥ 

शनिवार, २८ फरवरी, २०१५                                                                                                   

मुनि मनीषि मुख जो कहि भाखा । तासु भान होइहि मो साखा ॥ 
जाहु महबली रघुबर जी के । आनौ लेइ  है किरन गहि के ॥ 

सब धन सब साधन तीन संगा । मम राजित एही राज प्रसंगा ॥ 
करिहउँ में अर्पित भगवाना । कारन एहि मख धर्म प्रधाना ॥ 

दरस प्रभु मैं कृतकृत  होइहउँ । तिनके तुरग दए कर जोइहउँ ॥ 
सुबाहु सुत बर रीति रनइता । श्रुतु पितु बचन भए अति हर्षिता ॥ 

पितु जस रघुबर दरस  उछाहीं । मीचु मेहन मोद मुख छाहीं ।\ 
नयन गगन जल बिंदु हिलोले । भ्रात तनुज दुहु भीनत बोले ॥ 

हमहि कुछु अरु जानए नहि, एक तव चरन बिहोर । 
तुहरे दिनकर बचन किए हमरे तमि मन भोर ॥ 


रविवार, 01 मार्च ,२०१५                                                                                                    

जो प्रभु दरस के सुभ संकल्पा । तुहरे हरिदै जो किछु कल्पा ॥ 
अजहुँ सोइ सब होवन चाहिब । चहँहि हयहु रघुबर पहि जाइब ॥ 

तुम स्वामि तुम अग्याकारी ।हम तव सेबक हम अनुहारी ॥ 
तव अग्या जो जोइ सँजोही । अनुपजोगि सों जोगित होही  ॥ 

स्याम नील हरि मनि सम रतन ।हय हस्ति सोहि हिरन सयंदन ॥ 
गहि धन साधन लाखहि लाखा । सब द्रव प्रभु पद देइहु राखा ॥ 

हम सोन किंकर सकल तुहारे ।हमहि तिन्ह सन अर्पित कारें ॥ 
भयउ अभ्युदय सो सब लिज्यो ।रघुबर चरन समर्पन किज्यो  ॥ 

श्रुत सुत बचन सुबाहु मन भयउ हर्ष बहु भारि । 
बीर बलि बलिहार के , ऐसे गदन उचारि ॥ 

सोमवार,०२ मार्च,२०१५                                                                                                  

चँवर  ध्वज बर बाजि सुसाजे । बीर जुहा रन साज समाजे ॥ 
गहे कर अजुध बिबध प्रकारे । तुम्ह सबहि रथ घेरा घारे ॥ 

साजि राज गज सब ले लइहौ ।भोरि सत्रुहन पहि सन जइहौ ॥ 
कहत बहुरि अहिपत भगवाना ।सुबहु के निगदन दे काना ॥ 

बिचित्र दमन सुकेतु सरि धीरा । अन्यानै समर सूर बीरा ॥ 
प्रजा पालक अग्यानुहारे । गयउ सहरषित नगर पँवारे ॥ 

पयस मयूखी बदन मनोहर । रजत चंवर बर जोगित तापर ॥  
सुबर्नमय पत्रक लक लँकृते । अक्छत कृत तिलक लषन सहिते॥ 

चपल चरन स्याम करन,मनिसर माल सँजोह  । 
हय कर किरन पुंज धरे आनि प्रजा पति सोंह  ॥ 

मंगलवार, ०३ मार्च,२०१५                                                                                                

राजस्यंद जब सोहि देखा । सुबाहु बदन हर्ष अबलेखा ॥ 
दुहु सपूत  भट भ्रात प्रसंगे । सकल साज सँजोउ लए संगे ॥ 

चले पयादिक पंथ अधीसा । नयन अवनत बिनइबत सीसा ॥ 
सत्रुहनहि पदक पुर अस धूरे । भोर भूरे जस साँझ बहुरे ॥ 

जीवन साधन छन छबि जाने । तासों अनुरति दुःख गति माने ।। 
जोइ नसावनि पथ ले गवने । सो धन सम्पद् सहुँ  लए अवने ॥ 

सत्रुहन नियर अगत का देखे । बरे बपुरधर बरन बिसेखे ॥ 
पीत बसन बल बल्गन बासे । उपपंखि निबासे 

भरे भेष भुज सिखर बिसाला । हरिद पलासिक लावनि लाला ॥ 
कूल  कलित कल खंकन बाजे । मनियारि मंजरी बिराजे ॥ 

अवनि चरन अरु गगन पताका । निश्तेज भुवन तमक तकि ताका ॥  
सोहि उज्जबर छतर छाँउकर । तेज द्युतकर सोहि सुहाकर ॥ 

सोहि सो सुमति अस्थीर सब भट तीरहि तीर । 
श्री राम कथा बारता, पूछ रहे महबीर ॥  
बुधवार, ०४ मार्च, २०१५                                                                                                            

सत्रुहन कुल दीपक सम लस्यो ।सुहा द्युतिस के सम बस्यो ॥ 
बिलोकत बीर बलि बाँकुर पुर । भय मुख आपहि भयउ भयातुर ॥ 

दरसत तिन्ह सुत भ्रात सहिता ।सुबाहु रोष भए रनन रहिता ॥ 
प्रसारित कर मुख रघुबर नामा ।गहे चरन पुनि करे प्रनामा ॥ 

रोम हरष तन चित हरि चिंतन  । नयन छटा छबि भाव बिहल मन ॥ 
सत्रुहन मित सम समदन बाढ़े ।  रामानुज उठ आसन छाँड़े॥

समदन सब सहुँ बाहु पसारे । प्रमुदित समुदय लेइ सकारे ॥ 
राउ भयउ बहु भाव बिभोरे । धन्य धन्य मैं कहि कर जोरे ॥ 

पलक पयस पखारी के पूजत पद भल भाँति । 
समद समर्पन कर के, छाए बदन कल काँति ॥ 

बृहस्पतिवार,०५ मार्च,२०१५                                                                                                 

गदगद गिरा पेम रस साने । कहत कोमली करुन निधाने ॥ 
जो पद जग अभिनन्दन होंही । मिले भाग सो परसन मोही ॥ 

तरसहि पावस पुरी पँवारे । अहो भग तव चरन पधारे ॥ 
मोर सुत दमन बयस न सोधा ।प्रभि अजहु सो भयउ अबोधा ॥ 

मम सुत बालक आपु सयाने । बाँधे बाजि तिन्ह छम दाने ॥ 
जो सब देवन्हि देवल हारे ।जग सर्जनित पाल संहारे ॥ 

जान बिनु जग सिरोमनि नामा । कौतुकी करात किए एहि कामा । 
राज सैनि रन सज सँजोई । सकल अंग बहु अंकक जोई ॥ 

भरे पुरे एहि राज के, अहैं भूति जो कोइ । 
मो सहित मोर सुत भ्रात,सब आपहि के होइ ॥  

शुक्रवार,०६ मार्च, २०१५                                                                                                       

कहै सुबाहु पुनि चरन गहि के । श्री राम स्वामि हम सबहि के ।
बिभो अग्या मैं सिरौ धरिहउँ । तुहरे मुख के कहि सब करिहउँ ॥ 

समदत मम सब समद सकारा । भयउ मोहि पर बहु उपकारा ॥ 
सिय पिय पुरइन चरन रमन्ता । अहइँ कहाँ  मधुकर हनुमंता ॥ 

प्रभु दरसन धन साधन सोंही । तासु कृपा सों मेलिहि मोही ॥ 
तिन्ह अवनि का का नहि मेले । साधु सुबुध मेलिहि जो हेले ॥

 संत प्रसादु मैं लेइ पारा । होइहि श्रापु संग उद्धारा ॥ 
जिन्ह भगवन के जसो गाना । कहिहि सुनिहि नित संत सुजाना ॥ 

मोरे दरपन लोचना तिनके दरसन जोहि । 
तौ छबि मंगल मूरती, अंतर दोहर होहि ।।   
                                  
रविवार , ०८  मार्च,२०१५                                                                                          

बितिहि बयस प्रभु दरस बिछोही । सेष माहि कास दरसन होहीं । 
परसत जिनके चरन धूलिका । मुनि पतिनिहि  रूप भयउ सिलिका ॥ 

जो जोधिक प्रभु बदन लखाइहि । जुझनरत सो परम गति पाइहि ॥ 
जो रसना पर्भु नाउ पुकारी । होइहि सोइ गति के अधिकारी ॥

जिन्हनि चिंतहि नित जति जोगी । पद अनुरत जत मनस निजोगी ॥ 
धन्य धन्य सो अबध निबासी । धन्य धन्य सो सकल सकासी ॥ 

जो बिभु बदन पदुम कर चिन्हे ।लोचन पुट  दरसन रस लिन्हे ॥ 
पुनि सत्रुहन अस बचन कहेऊ । नृप तुम बिरधा बयस गहेऊ ॥ 

एहि हुँत तुअ श्रीराम सहुँ, पूजनीअ मम सोहि  । 
करे समर्पन आपही  तुहरे बढ़पन होहि ॥ 

सोमवार , ०९  मार्च, २०१५                                                                                                

होहि जग सों ए राज । तुहरे भू के तुअहि अनूपा ॥ 
छतरी के एही कारज होही । किए उपनत रन अवसरु सोही ॥ 

यहू धन समदन लेइ बहोरै । अस कह सत्रुहन  दुइ कर जोरै ॥ 
अरु कहि सब रन साज समाजू । सं महि जावन मोर हे राजू ॥ 

होइहि सैनि समागम तोरे ।  तिनके बल बाढ़िहि बल मोरे ॥ 
साद निगान सुधि सत्रुहन जी के । सुंबाहु मन लागिहि बहु नीके ॥ 

तनुभव मस्तक तिलक धराई । जन पालक कर भार गहाई ॥ 
बहुरि महारथि संग घेराए । दाह करन सुत समर भू आए ॥ 

जब बिधिबत सब क्रिया किए  ते दुःख दिरिस बिलोक  । 
 नयन भयउ गगन बरखन छाए रहे घन सोक ॥ 

मंगलवार, १० मार्च, २०१५                                                                                                

लोचन पटल जल बिंदु झारै । रघुबर सुमिरन सोष निबारै ।  
सतत सुरति सब सोक दूराए । बहोरि सकल रन साज सजाए ॥ 

ले चतुरंगी  सैन बिसाला । रामानुज पहि आए भुआला ॥ 
गहि बल दल गंजन जब देखे । बाजि रच्छन गमन हुँत लेखे ॥ 

समर्पित सुबाहु किरन छाँड़े ।आन रघुबर सेन कर बाड़े ॥ 
दल गंजन कर गहिगहि आहू । बढे सत्रुहन सहित सब नाहू ॥ 

प्राची दिसि के देस घनेरे । सब कहुँ फिर चरनिन्हि फेरे ॥ 
तहँ रहि  भूरिहि संत बिबेका । रजै राज जग एक ते ऐका ॥ 

बर बर समर सूर संग पूजित रहि  सब नाहु ।
किरन गहन जुग बाहु बल गहे रहे नहि  काहु ॥  

बुधवार, ११   मार्च,२०१५                                                                                                   

को निज राज भूति दानए । को निज राजित राज प्रदानए ॥ 
को निज राज सिहासन देई । बिबिध बिधि अस चरन सब सेईं ॥ 

रुचत रवन रत सुनत मुनीसा । कहत बार्ता सतत अहीसा ।। 
हे मुनिबर पुनि पवन अरोहित । सुबरन पतिका संग सुसोहित ॥ 

पूरब दिसि जब भँवर बहुराए । तेजसी तुरग तेजपुर आए ॥ 
धरमक ध्वजा हीरू प्रसन्ता । रहे दयामय तहँ के कंता ॥ 

सदा संच के सरन जुहारै । किए न्याय तो धर्म अधारै ॥ 
जोइ अनी अरि नगरि नसानी । निकस सो नगरि नियरइ आनी ॥ 

चित्र बहु बिचित्र परकोट रचाए । भीत नागर जन बसत सुहाए ॥ 
भगवन के चरनन्हि रति राखै ।पेम प्रमुदित सबहि मन लाखे ॥ 

सत्रुहन दृग दरसत रहे देवल चारिहि पास, । 
खनखन खंकन गुँज रहे ,बास रहे सुख बास ॥ 

बृहस्पतिवार, १२ मार्च, २०१५                                                                                                

 सिउ संभु के सीस निवासिनी । सुरगार्मल श्री सुर कामिनी ॥ 
पौर पौर पथ पथ पबिताई । तरंगनी तहँ बहत सुहाई ॥ 

रिषि  महर्षि मनीषि समुदाई । तिनके कूल सुरगति पाईं ॥ 
हबिरु भवन तहँ घर घर होईं ।ह्वन योजन करें सब कोई ॥ 

हवन धूम घन पदबी पावै  । दूषक दूषित अनल बुझावै ॥
ऐसो  पबित पुरी  जब पेखे । सत्रुहन सुमति सन पूछ देखे ॥ 

सौं नागर जो देइ दिखाईं । तिनके दरसन बहु सुख दाई ॥ 
भयउ मुख मंजुल जासु महि के । सो नीक नगरि अहहि केहि के ॥ 

कहत सुमति महानुभाव, बुद्धि बल के निधान ।  
इहँ के राउ रहें सदा,गहे चरन भगवान ।।   

शुक्रवार, १३ मार्च, २०१५                                                                                                      

कोमल हिय हरि सुरति सँजोई । अबिरल भगति तासु पद होई ॥ 
जेहि कथा सुनीहि जो कोई । ब्रम्ह हंत सों मोचित होईं ॥ 

राउ नाउ जहँ लग मैं जाना । होइब श्री मान सत्यबाना ।। 
प्रभु बरग माहि परम ग्यानिहि ।  जागइक के सब अंग जानिहि ॥ 

महोदय इहाँ पूरब काला । रहे ऋतम्भर नाउ भुआला ।। 
अस तौ तिनकी बहु तिय होइहि। जने न कोऊ जनिमन कोई ॥ 

को सुभागिनि गर्भ न गाही । पलाऊ रहेउ को सुत नाही ॥ 
एक बार सुभाग सों  दुआरे ।  देबबस मुनि जबालि पधारे ॥ 

अर्थ धरम कामादि प्रदेसे । समउ अनुहर सेवैं नरेसे ॥ 
होतअगुसर चरन सिरु नायउ । निज सुख दुःख के मुनिरु सुनायउ ॥ 

पुत्र काम पर जोग कहत पूछे तासु उपाए । 
महिपत मन गलानि जान,मुनि बहु बिधि समुझाए ॥ 

शनिवार, १४ मार्च, २०१५                                                                                                    

 प्रजापति पुनि पुनि पूछ देखे । कोउ त जुगति मुनि मोहि लेखे ॥ 
जात जनित जो होए सहाई ।  कहौ कृपानिधि को उपाई ॥ 


दिष्ट बिधा जिन करिए प्रजोगे । मम कुल तरु नव साख सँजोगे ।। 
सुनि अस मुनि एहि बचन उचारे । होही सिद्ध सुत काम तुहारे ॥ 

जोइ जनित जनिमन जन चहहीं । त्रिबिध उपाउ तासु हुँत अहहीं ॥ 
गिरि पति श्रीधर एक गौ होइहि । तीनि कृपाकर जिन सिरु जोइहि ॥ 

ऐसेउ कृपा जुगति प्रजोगिहि  । सो अवसि जनित  पद सुख भोगिहि  ॥ 
भयउ उपजुगत तव हुँत राजन । देऊ सरूपा गउ के पूजन ॥ 

गौ मात के सकल अंग  सुर के होत निकाए । 
एही कारन तासु पूजन, संतति के बर दाए ॥ 

रविवार १५ मार्च, २०१५                                                                                                 

चतुस्तनिहि पूजन परितोखा । देऊ पिटर सब बिधि संतोखा॥  
ब्रत पात जो गौ गुन गावै । नेम सहित नित भोजन दावे ॥ 

होयब  सकल मनोरथ पूरन । ऐसेउ सत्कर्म के कारन ।।  
त्रिसलु गउ जिन भवन बँधइहै । ऋतुमती कनिआँ बिनहि बिहइहै ॥ 

देंवन्हिबिग्रह चढ़े चढ़ावा ।दिवान्तर सुबह गति नहि पावा ॥ 
एहै करनी अस दूषन आनी । किए सत्कर्म सब धर्म नसानी ॥ 

चरत चरान जोइ अबरोधे । जानपनी हो हो कि अबोधे ॥ 
तासु पितर जन जोइ पद पाए । एहि करनी ओहि संग गिराए ॥ 

को कुबुद्धि कर धरे लकौटी । जान गँवारुहु मारए सौंटी ॥ 
ऐसेउ पापक बिनहि हाथा । परि जम पुर निज पातक साथा ॥ 

को कंठी पासा कंटक डाँसा पीठ करन चरन भरे ।  
तिन्हनि कर सो हर करुनी ऊपर  करुना  कर पीर हरे ॥  
गहि रुधिरु सोषिता करत रहिता गौ मात जी साँत करे ।  
भए रोग अधारे करिहउँ उपचारे गहन घाव तन धरे ॥  

ऐसेउ कृत करम संग पितरु उंच पद पाएँ । 
हॉट कृतारथ आपने बंसज असीरु दाएँ ॥ 













   
























  




 






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