बुधवार ०१ जुलाई २०१५
धूर धूसरित पद तल छाला । गौर बरन मुख भए घन काला ॥
सिथिल सरीर सनेह न थोरे । दरसन प्रभु लोचन पट जोरे ॥
कुसल पथक संगत गहि राखिहि । चित चितबन् चित्रकूटहि लाखिहि ॥
जावहि भरत जलद करि छायो । अस त सुखद पथ प्रभु नहि पायो ॥
दरसि बासि मग मन संदेहा ।चाल सरिस सम सील सनेहा ॥
बेषु न सो सँग सिय नहि आहीं । रामु लखन हितु होंहि कि नाहीं ॥
इतै भरत बन चरन प्रबेसे । उत किरात प्रभु दिए संदेसे ।।
लोचन नीर भरे लघुभाई । चले तहाँ जहँ सिय रघुराई ॥
चले चरन भुज प्रभु पद ओरा । बरखिहि बारि पलक पट तोरा ॥
उठे नाथ बहु पेम प्रसंगा । कहुँ पट कहुँ धनु तीर निषंगा ॥
परे चरन प्रिय भरत जस उर लिए कृपानिधान ।
राम भरत मिलन बरनन किन कबि जाइ बखान ॥
बृहस्पतिवार, ०२ जुलाई २०१५
बिनयत भाल सिय पदुम पद धरे । परनत पुनि पुनि जोहार करे ॥
दिए असीस सिय बारहि बारा । उमगै उरस सनेह अपारा ॥
नभ सराहि सुर सुमन बरसइहिं । रघुनाथ तिनहु मात भेंटइहि ॥
परन पुंट जस सुमन समेटे । गुरु गुँह सानुज सों तस भेंटे ॥
गुरबर पितु सुर बास जनावा । रघुबर ह्रदय दुसह दुःख पावा ॥
भूसुत बहु बिधि ढाँढस बँधाए । कीन्हि काज प्रभु बेद बताए ॥
बोले पुनि मुनि देत दुहाई । भयो बहुंत बहुरौ रघुराई ॥
भरी सभा भित भरत निहोरे । कहें उचित रघुबर कर जोरे ॥
गुरहि दिए अग्या सिर धारिहौं । सुर बसे पितु कही कस टारिहौं ॥
ही बिधि बीते बासर चारी । बहुरन सब जन कहि कहि हारी ।।
गुरु अग्या सिरुधार किए गहै राम बन राज ।
पितु कही अनुहार तजे कौसल राज समाज ॥
शुक्रवार, ०३ जुलाई, २०१५
सेवौं अवध पुरी अवधि लगे । देवउ प्रभो मोहि सिख सुभगे ॥
कहे भरत तुअ जगत भरोसो । पालन पोषन कहिहौं को सो ॥
पर परिजन की गह कानन की । हमरी चिंता बिरधाजन की ।।
मातु सचिउ मुनि सिख सिरु धरिहौ । पहुमि प्रजा के पालन करिहौ ॥
देइ कहत अस प्रभु पद पाँवरि । राम नाम के जस दुइ आखरि ॥
किए कर संपुट धरि सिरु राखा । प्रजा प्रान जामिक जिमि लाखा ॥
चारि दिवस पिछु अवध पुर आए । जनक राज तहँ रहें पधराए ॥
सौंपि सचिव गुर भरतहि राजू । चले तिरहुत साजि सब साजू ॥
बसत भरत पुनि भयौ बिरागे । घटै तेजु कछु देह न लागे ॥
नंदिगांव कुटि करत निबासिहि । धार मुनिपट सुख भोग उदासिहि ॥
मन मंदिर कर मूरति जिहा नाम सिय राम ।
नित पूजत पद पाँवरी करए प्रजा के काम ॥
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शनिवार ०४ जुलाई,२०१५
भरत प्रीत प्रभु प्रियबर रूपा ।कहा जेहि निज मति अनुरूपा ॥
कीन्ह प्रभु जो बन अति पावन । सुनहु चरित मुनि सो मन भावन ॥
सुरप सुत क बार बन कागा ।हतत चोँच सीता पद लागा ॥
चहे लेन सठ प्रभु बल परिखा । सींक धनु सायक दिए भल सिखा ॥
भरता लकहन जानकी साथा । रहत बारह बरसि लग नाथा ।।
बहुरि दिवस एक मन अनुमाने । चितकूट अब मोहि सब जाने ॥
बसे मुनिहि बन माँगि बिदाईं । अनुसर पुनि अत्रि आश्रमु आईं ॥
किए अस्तुति बर सुन्दर बानी । भाव पूूरित भगति रस सानी ॥
अनसूया सिया निकट बिठाई । नारि धरम के चरन जनाई ॥
नदी नीर बिनु पिय बिनु नारी । पूर्ण सरूप होत पियारी ॥
चले बनही बन भगवन लखन जानकी संग ।
बिराध निपात आ तहँ रहै जहाँ सरभंग ॥
रविवार, ०५ जुलाई, २०१५
हरि पद गह मुनि भगति बर पाए । जोग अगन जर हरि पुर सिधाए ॥
पीछु लखन आगें रघुराई । मिलि चलें मुनि मनीष निकाईं ॥
दिए कुदरसन अस्थि पथ कूरे । पूछ मुनिन्ह नयन जल पूरे ॥
रहेउ रिषि जिन निसिचर भखने । करौं रहित कहि तिन तैं भुवने ॥
कुम्भज के एक सिष्य सुजाना । देइ ताहि दरसन भगवाना ॥
गन ग्यान कर दिए बरदाने । बहुरी कुम्भज रिषि पहिं आने ॥
आनै के जब कारन कहेउ । चितब प्रभो मुनि अपलक रहेउ ॥
निसिचर मरन मंत्र गोसाईं । पूछेउँ मोहि मनुज के नाईं ॥
बसौं कहाँ अब पूछ बुझाइहि । दंडक बन प्रभु बसन सुझाइहि ॥
पंचबटी बहै गोदावरी । नदीं बन ताल गिरि छटा धरी ॥
खग मृग वृन्दार वृंदी गुंजि मधुप सुर बंध ।
आन बसिहि विभो अस जस सुबरन बसिहि सुगंध ॥
सोमवार, ०६ जुलाई, २०१५
सूपनखा दनुपति के बहनी । तामस चरनी राजस रहनी ॥
पंचबटी आईं एक बारा । कहै चितइ चिट लखन कुआँरा ॥
मम अनुरूप पुरुख जग नाही । तुअ सरूप को नर नहि आही ॥
बरन लखन जब अवसर दीन्हि । लाघवँ श्रुति नासा बिनु कीन्हि ॥
बिलकाहट गइ खर दूषन पाहीं । भ्रात पुरुख बल धिग धिग दाहीं ॥
पूछत कहनि कहि सकल सुनाए । बना सेन चढ़ि धूरि धुसराए ॥
निसिचर अनी आन जब जानी । भरि सायक हरि दिए चैतानी ॥
कहे दूत खर दूषन जाई । करे कृपा समुझए कदराई ॥
कहु सूल कृपान कहूँ संधान सर चाप ब्याप चले ।
नभ उरत निसाचर अनी उप रकत जिमि फुँकरत साँप चले ॥
धनुष कठोर करे घोर टकोर रघुबीर डपटत दापते ।
लगत सर चिक्करत उठत महि परत निसिचर निकर काँपते ॥
मारे सकल दल गंजन लेइ समर प्रभु जीत ।
चितव सीता सुर नर मुनि सब के भय गए बीत ॥
धूर धूसरित पद तल छाला । गौर बरन मुख भए घन काला ॥
सिथिल सरीर सनेह न थोरे । दरसन प्रभु लोचन पट जोरे ॥
कुसल पथक संगत गहि राखिहि । चित चितबन् चित्रकूटहि लाखिहि ॥
जावहि भरत जलद करि छायो । अस त सुखद पथ प्रभु नहि पायो ॥
दरसि बासि मग मन संदेहा ।चाल सरिस सम सील सनेहा ॥
बेषु न सो सँग सिय नहि आहीं । रामु लखन हितु होंहि कि नाहीं ॥
इतै भरत बन चरन प्रबेसे । उत किरात प्रभु दिए संदेसे ।।
लोचन नीर भरे लघुभाई । चले तहाँ जहँ सिय रघुराई ॥
चले चरन भुज प्रभु पद ओरा । बरखिहि बारि पलक पट तोरा ॥
उठे नाथ बहु पेम प्रसंगा । कहुँ पट कहुँ धनु तीर निषंगा ॥
परे चरन प्रिय भरत जस उर लिए कृपानिधान ।
राम भरत मिलन बरनन किन कबि जाइ बखान ॥
बृहस्पतिवार, ०२ जुलाई २०१५
बिनयत भाल सिय पदुम पद धरे । परनत पुनि पुनि जोहार करे ॥
दिए असीस सिय बारहि बारा । उमगै उरस सनेह अपारा ॥
नभ सराहि सुर सुमन बरसइहिं । रघुनाथ तिनहु मात भेंटइहि ॥
परन पुंट जस सुमन समेटे । गुरु गुँह सानुज सों तस भेंटे ॥
गुरबर पितु सुर बास जनावा । रघुबर ह्रदय दुसह दुःख पावा ॥
भूसुत बहु बिधि ढाँढस बँधाए । कीन्हि काज प्रभु बेद बताए ॥
बोले पुनि मुनि देत दुहाई । भयो बहुंत बहुरौ रघुराई ॥
भरी सभा भित भरत निहोरे । कहें उचित रघुबर कर जोरे ॥
गुरहि दिए अग्या सिर धारिहौं । सुर बसे पितु कही कस टारिहौं ॥
ही बिधि बीते बासर चारी । बहुरन सब जन कहि कहि हारी ।।
गुरु अग्या सिरुधार किए गहै राम बन राज ।
पितु कही अनुहार तजे कौसल राज समाज ॥
शुक्रवार, ०३ जुलाई, २०१५
सेवौं अवध पुरी अवधि लगे । देवउ प्रभो मोहि सिख सुभगे ॥
कहे भरत तुअ जगत भरोसो । पालन पोषन कहिहौं को सो ॥
पर परिजन की गह कानन की । हमरी चिंता बिरधाजन की ।।
मातु सचिउ मुनि सिख सिरु धरिहौ । पहुमि प्रजा के पालन करिहौ ॥
देइ कहत अस प्रभु पद पाँवरि । राम नाम के जस दुइ आखरि ॥
किए कर संपुट धरि सिरु राखा । प्रजा प्रान जामिक जिमि लाखा ॥
चारि दिवस पिछु अवध पुर आए । जनक राज तहँ रहें पधराए ॥
सौंपि सचिव गुर भरतहि राजू । चले तिरहुत साजि सब साजू ॥
बसत भरत पुनि भयौ बिरागे । घटै तेजु कछु देह न लागे ॥
नंदिगांव कुटि करत निबासिहि । धार मुनिपट सुख भोग उदासिहि ॥
मन मंदिर कर मूरति जिहा नाम सिय राम ।
नित पूजत पद पाँवरी करए प्रजा के काम ॥
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शनिवार ०४ जुलाई,२०१५
भरत प्रीत प्रभु प्रियबर रूपा ।कहा जेहि निज मति अनुरूपा ॥
कीन्ह प्रभु जो बन अति पावन । सुनहु चरित मुनि सो मन भावन ॥
सुरप सुत क बार बन कागा ।हतत चोँच सीता पद लागा ॥
चहे लेन सठ प्रभु बल परिखा । सींक धनु सायक दिए भल सिखा ॥
भरता लकहन जानकी साथा । रहत बारह बरसि लग नाथा ।।
बहुरि दिवस एक मन अनुमाने । चितकूट अब मोहि सब जाने ॥
बसे मुनिहि बन माँगि बिदाईं । अनुसर पुनि अत्रि आश्रमु आईं ॥
किए अस्तुति बर सुन्दर बानी । भाव पूूरित भगति रस सानी ॥
अनसूया सिया निकट बिठाई । नारि धरम के चरन जनाई ॥
नदी नीर बिनु पिय बिनु नारी । पूर्ण सरूप होत पियारी ॥
चले बनही बन भगवन लखन जानकी संग ।
बिराध निपात आ तहँ रहै जहाँ सरभंग ॥
रविवार, ०५ जुलाई, २०१५
हरि पद गह मुनि भगति बर पाए । जोग अगन जर हरि पुर सिधाए ॥
पीछु लखन आगें रघुराई । मिलि चलें मुनि मनीष निकाईं ॥
दिए कुदरसन अस्थि पथ कूरे । पूछ मुनिन्ह नयन जल पूरे ॥
रहेउ रिषि जिन निसिचर भखने । करौं रहित कहि तिन तैं भुवने ॥
कुम्भज के एक सिष्य सुजाना । देइ ताहि दरसन भगवाना ॥
गन ग्यान कर दिए बरदाने । बहुरी कुम्भज रिषि पहिं आने ॥
आनै के जब कारन कहेउ । चितब प्रभो मुनि अपलक रहेउ ॥
निसिचर मरन मंत्र गोसाईं । पूछेउँ मोहि मनुज के नाईं ॥
बसौं कहाँ अब पूछ बुझाइहि । दंडक बन प्रभु बसन सुझाइहि ॥
पंचबटी बहै गोदावरी । नदीं बन ताल गिरि छटा धरी ॥
खग मृग वृन्दार वृंदी गुंजि मधुप सुर बंध ।
आन बसिहि विभो अस जस सुबरन बसिहि सुगंध ॥
सोमवार, ०६ जुलाई, २०१५
सूपनखा दनुपति के बहनी । तामस चरनी राजस रहनी ॥
पंचबटी आईं एक बारा । कहै चितइ चिट लखन कुआँरा ॥
मम अनुरूप पुरुख जग नाही । तुअ सरूप को नर नहि आही ॥
बरन लखन जब अवसर दीन्हि । लाघवँ श्रुति नासा बिनु कीन्हि ॥
बिलकाहट गइ खर दूषन पाहीं । भ्रात पुरुख बल धिग धिग दाहीं ॥
पूछत कहनि कहि सकल सुनाए । बना सेन चढ़ि धूरि धुसराए ॥
निसिचर अनी आन जब जानी । भरि सायक हरि दिए चैतानी ॥
कहे दूत खर दूषन जाई । करे कृपा समुझए कदराई ॥
कहु सूल कृपान कहूँ संधान सर चाप ब्याप चले ।
नभ उरत निसाचर अनी उप रकत जिमि फुँकरत साँप चले ॥
धनुष कठोर करे घोर टकोर रघुबीर डपटत दापते ।
लगत सर चिक्करत उठत महि परत निसिचर निकर काँपते ॥
मारे सकल दल गंजन लेइ समर प्रभु जीत ।
चितव सीता सुर नर मुनि सब के भय गए बीत ॥