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----- ॥ दोहा-द्वादश ९ ॥ -----

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काँकर पाथर बोइ के जीउ दियो उपराइ |
जनमानस के राज भुइँ गई खोद सब खाइ || १ ||
भावार्थ : -  यह समूचा संसार कंकड़ -पत्थरों का है और पृथ्वी में यदि कुछ सुन्दर है तो वह जीवन है | और लोक तंत्र ने इस पृथ्वी में जीवन को उखाड़ कर केवल कंकर पत्थर के जंगल ही बोए हैं | अब तो यह 'मूर्तियों वाला भ्रष्टाचारी तंत्र'के नाम से कुख्यात होने लगा है | जीतनी भूसंपदा इस तंत्र ने उत्खात कर खाईं हैं उतनी तो सहस्त्रों वर्षों के तंत्रों ने नहीं खाई |

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