रत्नेस ए देस मेरा होता नहि दातार |
देता सर्बस आपुना बदले माँगन हार || १ ||
भावार्थ :-- जो स्वयं को विकसित राष्ट्र कहने वालों को लज्जित होना चाहिए | उनकेयहाँ आपदाओं का कोई प्रबंधन नहीं है, धनी होकर भी संकट के समय वह हाथ पसारे फिरते हैं | त्रिरत्न स्वामी मेरा यह देश यदि दातार नहीं होता तब जलमन्न रूपी वास्तविक रत्नों के बदले ये अपना सर्वस देने को विवश हो जाते ||
किस काम के तुम्हारे ये बम.....? अब से हमको बिजनैस मत सिखाना.....
राजू : -- और इनको देखो ये मुंह और मसूर की दाल..... बम का ब भी नहीं है और बड़े दातार बने फिरते हैं.....
देता सर्बस आपुना बदले माँगन हार || १ ||
भावार्थ :-- जो स्वयं को विकसित राष्ट्र कहने वालों को लज्जित होना चाहिए | उनकेयहाँ आपदाओं का कोई प्रबंधन नहीं है, धनी होकर भी संकट के समय वह हाथ पसारे फिरते हैं | त्रिरत्न स्वामी मेरा यह देश यदि दातार नहीं होता तब जलमन्न रूपी वास्तविक रत्नों के बदले ये अपना सर्वस देने को विवश हो जाते ||
किस काम के तुम्हारे ये बम.....? अब से हमको बिजनैस मत सिखाना.....
राजू : -- और इनको देखो ये मुंह और मसूर की दाल..... बम का ब भी नहीं है और बड़े दातार बने फिरते हैं.....