अति बिनैबत धरत महि माथा । लषन प्रनाम करत रघुनाथा ॥
लखि अपलक अरु पलक न ठाढ़े । अबिलम मरुत बेगि रथ चाढ़े ॥
कल कीरन कर भर करषाई । सियहि आश्रमु चले अतुराई ॥
तेजस बदनु भावते जी के । रघुनाथ तनय अतिसय नीके ॥
बहोरि भर अनुराग बिसेखे । बिहँसि महर्षि ताहि पुर देखे ॥
कहब बछरु धरु कण्ठ कूनिका । गाउ सुठि को सुर संगीतिका ॥
सिउ सारद नारदहि सुहाना । रघुबरहि कृत चरित कर गाना ॥
गुरु अग्या करतल बर बीना । गावहि हरिगुन गान प्रबीना ॥
प्रगसो दानव दैत निकंदन प्रगसो हे नयनाभिराम ।
प्रगसो हे महि भारु अपहरन प्रगसो हे ललित ललाम ॥
कुकर्म महु लीन अति मलीन मन करे सबु मति कर बाम ।
दीन हीन सुख गुन बिहीन भए भरे हम धरे धन धाम ॥
प्रगसो अनाथन केरे नाथ हे प्रगसो सिया बर राम ।
तरपत परबसु पियास मरत पसु बहत सुरसरि सबु ठाम ।
तुम बिनु खल दल बल गह भए भल पूर सब साधन साम ॥
भगति बिमुख जग कारन चरनहि भजहिं न करहिं प्रनाम ॥
खलदल दवन भुवन भय भंजन प्रगसो भानुकुल भाम ।
प्रगसो भगवन दुर्दोषु दहन अपहन मोह मद काम ॥
भ्रष्ट अचार अस भा संसार भए सबु अलस अलाम ॥
जहँ तहँ बाधि बिबिध ब्याधि जग करिअति अति छति छाम ॥
करि करि पाप कहैं पाप नहि किछु गहैं मुए कठिन परिनाम ।
हे कमलारमन करो अवतरन करन बिस्व बिश्राम ॥
तव मंगल करन लाए पथ नयन सब दिनु सब रितु सब जाम ॥
हे अवतारी अवतार गहन बरो बपुष घन स्याम ॥
जग संताप देइ ताप करै घोर घन घाम ।
आरत भूमि पुकारती प्रगसु हे तरुवर राम ॥
शनिवार, २५ फरवरी, २०१७
कातर भूमि पाप भर भारी । धेनु रूप धरि करिअ गुहारी ॥
पुनि दोनहु बालक बड़भागे । हरि अवतरन कथा कहि लागे ॥
भाव भेद पद छंद घनेरे । पुन्यकृत चरित चितरित केरे ॥
धर्म धुरंधर बिधिकर साखी । भगवान भगति भाँति बहु भाखी ॥
भनत भनितिहि भदर भर भेसा । किए अबिरत पतिब्रत उपदेसा ॥
नेम बचन दृढ़ भ्रात स्नेहा । काल परे अनुहरि सब गेहा ॥
सुबिरति जति गुरु भगति बखाना । अनुगम अनुपम सबहि बिधाना ॥
दरसिहि जहँ साईँ समुहाना । सेबक नीति मूरतिमाना ॥
निबध निपुण नय नीति सुरीति । निगदिहि निर्मल प्रीति प्रतीति ॥
कलि कलुष बिभंजन जहां पापीजन निज हाथ ।
भू भय हरन पाप दमन दंड दिये रघुनाथ ॥
रविवार, २५ फरवरी, २०१७
गाएँ सुमधुर बाँध सुर दोई । मंत्र मुग्ध सब श्रुत सुखि होईं ॥
पर मूर्छि सिद्ध गंधर्बा । हतचित चकित सुराग सुर सर्बा ॥
सुनत सहित अनगन महिपाला । होइहिं मोहित जगद कृपाला ॥
मोह मगन मन धीरे न धीरा । आनंद घन नयन बह नीरा ॥
पुनि पंचम सुर गान अधीना । प्रेम सरित बहि होइहिं लीना ॥
रह अस्थमबित हिलहिं न डोलहिं । चित्र लिखित सम अबोल न बोलहिं ॥
पुनि महर्षि दोनहु सुत तेऊ । कृपा समेत इ बचन कहेऊ ॥
तुम्हरी मति अस बल सँजोई । कि नीति कुसल नहि तुअ सहुँ कोई ॥
अजहुँ पहिचानिहु तेहि ए पूजनिय पितु तुहार ।
जाइ करिहौ तनके प्रति, पुत्रोचित ब्यबहार ॥
लखि अपलक अरु पलक न ठाढ़े । अबिलम मरुत बेगि रथ चाढ़े ॥
कल कीरन कर भर करषाई । सियहि आश्रमु चले अतुराई ॥
तेजस बदनु भावते जी के । रघुनाथ तनय अतिसय नीके ॥
बहोरि भर अनुराग बिसेखे । बिहँसि महर्षि ताहि पुर देखे ॥
कहब बछरु धरु कण्ठ कूनिका । गाउ सुठि को सुर संगीतिका ॥
सिउ सारद नारदहि सुहाना । रघुबरहि कृत चरित कर गाना ॥
गुरु अग्या करतल बर बीना । गावहि हरिगुन गान प्रबीना ॥
प्रगसो दानव दैत निकंदन प्रगसो हे नयनाभिराम ।
प्रगसो हे महि भारु अपहरन प्रगसो हे ललित ललाम ॥
कुकर्म महु लीन अति मलीन मन करे सबु मति कर बाम ।
दीन हीन सुख गुन बिहीन भए भरे हम धरे धन धाम ॥
प्रगसो अनाथन केरे नाथ हे प्रगसो सिया बर राम ।
तरपत परबसु पियास मरत पसु बहत सुरसरि सबु ठाम ।
तुम बिनु खल दल बल गह भए भल पूर सब साधन साम ॥
भगति बिमुख जग कारन चरनहि भजहिं न करहिं प्रनाम ॥
खलदल दवन भुवन भय भंजन प्रगसो भानुकुल भाम ।
प्रगसो भगवन दुर्दोषु दहन अपहन मोह मद काम ॥
भ्रष्ट अचार अस भा संसार भए सबु अलस अलाम ॥
जहँ तहँ बाधि बिबिध ब्याधि जग करिअति अति छति छाम ॥
करि करि पाप कहैं पाप नहि किछु गहैं मुए कठिन परिनाम ।
हे कमलारमन करो अवतरन करन बिस्व बिश्राम ॥
तव मंगल करन लाए पथ नयन सब दिनु सब रितु सब जाम ॥
हे अवतारी अवतार गहन बरो बपुष घन स्याम ॥
जग संताप देइ ताप करै घोर घन घाम ।
आरत भूमि पुकारती प्रगसु हे तरुवर राम ॥
शनिवार, २५ फरवरी, २०१७
कातर भूमि पाप भर भारी । धेनु रूप धरि करिअ गुहारी ॥
पुनि दोनहु बालक बड़भागे । हरि अवतरन कथा कहि लागे ॥
भाव भेद पद छंद घनेरे । पुन्यकृत चरित चितरित केरे ॥
धर्म धुरंधर बिधिकर साखी । भगवान भगति भाँति बहु भाखी ॥
भनत भनितिहि भदर भर भेसा । किए अबिरत पतिब्रत उपदेसा ॥
नेम बचन दृढ़ भ्रात स्नेहा । काल परे अनुहरि सब गेहा ॥
सुबिरति जति गुरु भगति बखाना । अनुगम अनुपम सबहि बिधाना ॥
दरसिहि जहँ साईँ समुहाना । सेबक नीति मूरतिमाना ॥
निबध निपुण नय नीति सुरीति । निगदिहि निर्मल प्रीति प्रतीति ॥
कलि कलुष बिभंजन जहां पापीजन निज हाथ ।
भू भय हरन पाप दमन दंड दिये रघुनाथ ॥
रविवार, २५ फरवरी, २०१७
गाएँ सुमधुर बाँध सुर दोई । मंत्र मुग्ध सब श्रुत सुखि होईं ॥
पर मूर्छि सिद्ध गंधर्बा । हतचित चकित सुराग सुर सर्बा ॥
सुनत सहित अनगन महिपाला । होइहिं मोहित जगद कृपाला ॥
मोह मगन मन धीरे न धीरा । आनंद घन नयन बह नीरा ॥
पुनि पंचम सुर गान अधीना । प्रेम सरित बहि होइहिं लीना ॥
रह अस्थमबित हिलहिं न डोलहिं । चित्र लिखित सम अबोल न बोलहिं ॥
पुनि महर्षि दोनहु सुत तेऊ । कृपा समेत इ बचन कहेऊ ॥
तुम्हरी मति अस बल सँजोई । कि नीति कुसल नहि तुअ सहुँ कोई ॥
अजहुँ पहिचानिहु तेहि ए पूजनिय पितु तुहार ।
जाइ करिहौ तनके प्रति, पुत्रोचित ब्यबहार ॥