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----- ।। उत्तर-काण्ड ४३।। -----

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 शुक्रवार, २० नवम्बर, २०१५                                                                  
 झाँक चकत अस रकत प्रकासा । ढाक ढँकत जस फुरिहि पलासा ॥ 
सूल सूल भए फूलहि फूला । सोइ दसा गहि हस्त त्रिसूला ॥ 

पुनि पुष्कल जय राम पुकारा । काटि निबार पलक महि पारा ॥ 
बिकट रूप धर गर्जहि कैसे । ताड़त तड़ित गहन घन जैसे ॥ 

छतज नयन उर जरइ न थोरे । कोपवंत पुष्कल रथ तोरे ॥ 
निज त्रिसूलन्हि कटत बिलोका । भयउ प्रबल रन रहइ न रोका ॥ 

रुद्रानुचर के बेग प्रसंगा । भंजेउ रथ भयउ बिनु अंगा ॥ 
गयउ पयादहि रथ परिहारे । बीर भद्रहि कसि मूठि प्रहारे ॥ 

बहुरि एकहि एक मुठिका मारएँ  । घात घहट दुहु मानि न हारएँ ॥ 
लरिहि बिजय दुहु करि अभिलासा । चहहिं परस्पर प्रान निकासा ॥ 

रयनि बासर निरंतर जुझत रहै एहि भाँति । 
लरत बिरते चारि दिबस, पर नहीं उर साँति ॥  


शनिवार, २१ नवम्बर, २०१५                                                                                 

पंचम दिवस कोप के साथा । बीर भद्रन्हि कंठ गहि हाथा ॥ 
बाहु मरोरत महि महुँ  डारा । चोट गहत  भै पीर अपारा ॥ 

बीर भद्रहु पुष्कल पग धारिहि  । घुर्मावत नभ बारम बारहि ॥ 
भुज उपार पछाड़ महि पारे । मरति बार पुष्कल चित्कारे ॥ 

मुने अस बीर गति गहि पुष्कल । कासित करन्हि कंचनि कुंडल ॥ 
काट सो सिर गरज घन घोरा । फेरीबार फिरिहि चहुँ ओरा ॥ 

भंगी भय अस रन भूमि ब्यापे । जो देखिहि सो थर थर काँपे ॥ 
कुसल बीर सत्रुहन पहि जाईं । समाचार एहि कहि सिरु नाईं ॥ 

पुष्कल घेऊ बीर गति बीरभद्रहि कर सोहि । 
सुनेउ अस त सत्रुध्नन्हि करन भरोस न होंहि ॥ 

रवि/ सोम , २२/ २३  नवम्बर, २०१५                                                                             

भरे नयन सुनि सकल बखाना । सत्रुहन मन बहुतहि  दुःख माना ॥ 
कंपत ह्रदय धरा सम डोलिहिं । सोकाभिभूत नयन हिलोलिहि ॥ 

उठे ताप  घन पलक जल छाए । बरख घन बिरमन बदन भिजाए ॥ 

सोक मग्न सत्रुहन जब पायो । सिव संकर बहु बिधि समझायो ॥ 

कठिन जे दुःख न जाइ बिलोका । तथापि रे तुम परिहरु सोका ॥ 

जेहिं समुख मह प्रलयंकारी । पंच दिवस लग किए रन भारी ॥ 

देइ प्रान रच्छत निज पाला । धन्य धन्य सो बीर निराला ॥ 

जोए दच्छ महत्तम निज जाना । जासों होएसि  मम अपमाना ॥ 

तेहि मारि संघारिहि जोई । येहु  बीर भद्र अहहीं सोई ॥ 

एतेउ तुम्ह सोक परिहारौ । हे मह बली उठौ रन कारौ ॥ 

सत्रुहन परिहर सोक, पुनि कोप करत संभु प्रति । 
नयनायन जल रोक, धरि धनु लोहितानन किए ॥ 

मंगलवार, २४ नवम्बर, २०१५                                                                                   

बहुरि बान संधान धनुरयो । रघुबंसि के पानि महुँ पुरयो ॥ 
ताकि तमक बितान झरि लाईं । दरसिहि धारा सार के नाईं ॥ 

उत सहुँ सिव संकर के छाँड़े । बिदार बदन द्युति सम बाड़ें ॥ 
गयउ गगन बे गुत्थमगुत्था । दुहु दलगंजन के सर जुत्था ॥ 

काल गहन नभ घन गम्भीर । भिरिहि घन सैम एकहिं एक तीरा ॥ 
अवलोकत ऐसेउ घमसाना । सबन्हि जन के मन अनुमाना ॥ 

जहँ लोक संहारन कारी । सम्मोहक प्रलयंकर भारी ॥ 
चेतन हरत सबन्हि मन मोहीं । अवसि प्रलय के आगम होंही ॥ 

दुहुरनकार निहार के कहै निहारनहारि । 
एकु अधिराज रामानुज, दूजे त्रय सिक धारि ॥ 

बुधवार, २५ नवम्बर, २०१५                                                                          

भयऊ बिमिख पासपर दोई । राम न जाने अब का होई । 
दोनउ बीर बिराम न लेहीं । गहिहीं बिजय कलस कर केहीं ॥ 

एहि बिधि सत्रुहन अरु ससि सेखर। करिहिं सतत संग्राम भयंकर ॥ 
दिवस एकादस लग एहि भाँती । समर भूमि उर परे न साँती ॥ 

दिवस दुआदस संभु बिरुद्धा । तर्जत अति सत्रुहन बहु क्रुद्धा ॥ 
तोय तीर तूनीर त्याजे । चढ़ि गुन गगन टी गढ़ गढ़ गाजे ॥ 

चलेउ ब्रम्हायुध बिकराला । चहसि अबोध बधन मह काला ॥ 
रहेउ जिमि मह देउ प्यासे । पयसिहि हँस हँस पयस सकासे ॥ 

तासों सुमित्रा नंदनहि भइ अचरज अति भारि । 
करिए चहिअ अब कृत कवन लगे ए करन बिचारि॥ 

बृहस्पतिवार, २६ नवम्बर, २०१५                                                                           

एहि बिधि सोच बिचारत रहिहिं । देबाधिदेउ एकु सर लहहिं ॥ 
तासु बदन सिखि कन छतराइहिं । सत्रुहन के उर सदन उतराइहिं ॥ 

भयउ बिकलतर बेध्यो हियो । सत्रुहन हतचेत धरनि गिरियो ॥ 
हय कि गज कि रथी कि पदचारी । तेहि अवसर भरे भट भारी ॥ 

सकल सेना हां हा हँकारी । पाहि पाहि मम पाहि पुकारी ॥ 
गहे तीर गह  पीर बिसेखा । सत्रुहन जब मुरुछित गिरि देखा ॥ 

हनुमत तुर गत भुज भरि ल्याए । प्रथम तिन्ह स्यंदन पौढ़ाए ॥ 
रच्छन हुँत पुनि राखि रखौते । आप जुझावन होंहि अगौते ॥ 

सीस ससि सिर गंग गहे भूषित कंठ भुजङ्ग । 
जोगत बाहु बल हनुमत, कोपत भिरि ता संग ॥ 

शुक्रवार, २७ नवम्बर, २०१५                                                                                                  

एकै नाम निज रसन अधारे । राम राम हाँ राम उचारे ॥ 
रिसभर खरतर पूँछ हलराए । निज दल बीर के हर्ष बढ़ाए ॥ 

समर सरित तट चरन धरायो । बहोरि  तरत रुद्र पहि आयो ॥ 
देबाधिदेब बधन कर इच्छा । ऐसोइ कहत करिहि प्रदिच्छा ॥ 

धरम बिपरीत चरन करिअहहु । राम भगत हति हनन करि चहहु ॥ 
जो रघुबीर चरन अनुरागी ।भै अजहुँ मम दंड के भागी ॥ 

बीएड बिदुर मुनि मुख कहि पारा । सुना ए पुरबल बहुतहि बारा ॥ 
पिनाक धारि रूद्र अस होहू । राम चरन  सुमिरन रत होहू ।। 

मुनि बर  बदन कहे बचन, असत  भयउ हे राम । 
राम भगत सत्रुहन संग करिहहु तुम संग्राम ॥ 

शनिवार, २८ नवम्बर, २०१५                                                                              

जब ऐसेउ कहा हनुमंता  । कहे ए  निगदन गिरिजा कंता ॥ 
हे कपिबर तुम बीर महाना । तुहरी  कही फुरी मैं माना ॥ 

धन्य धन्य तुम पवन कुमारा । ध्न्य धन्य प्रभु पेम तिहारा ॥ 
राम जासु जस आप बखाना  । तुहरे  काज जगत कल्याना ॥ 

अगजग जिन बंदिहि कर जोरे । जथारथ में सोइ पति मोरे ॥ 
भगवान जेहि तुरग परिहाई । बीरमनि तिन्ह बाँधि लवाईं ॥ 

रघुबर जिन्ह तुरग करि  रखे । सो सत्रुहन तेहि हरनत लखे ॥ 
जोइ बीर रिपु दल दमनावा । रच्छत हय  तापर चढि  आवा ॥ 

तासु भगति बस आपनि पायउँ । ताहि रच्छन रन भूमि आयउँ ॥ 

भगवान भगत सरूप है भगत रूप भगवान । 
भगत राख करि चाहिये राखें जेन बिधान ॥ 


सोमवार, ३० नवंबर, २०१५                                                                    

सुनत बचन सिउ भगवंता के । भरि रिस सों उर हनुमंता के ॥ 
छोभित एकु सिलिका कर धारे । ताहि तासु बहि महि दै मारे ॥ 

गहे स्यंदन सील अघाता । भंजित हति रन भूमि निपाता ॥ 
कतहुँ त सारथि कतहुँ त चाका । कतहुँ केतु अरु कतहुँ पताका ॥ 

चितबत नंदी पत रथहीना । लरत पयादहि बदन मलीना ॥ 
 उठेउ तुरत अस  निगदत धाए । भगवन मोरे पुठबार पधाएँ ॥ 

भूतनाथ नंदी करि बाही ।मारुत सुत  बयरु  बरधाही ॥ 
लोहितानन गाढिहि अतीवा । पारग भयउ कोप के सींवा ॥ 

लम्ब बाहु बरियात पुनि लिए एक साल उपार। 
घोर पुकार हनेसि  उर किए बहु बेगि प्रहार ॥ 

मंगलवार, १ दिसंबर, २०१५                                                                            

ज्वाल सरिस तीनि  सिखि षण्डा । गाहे हस्त अस सूल प्रचंडा 
अगनाभ टूल तेजस जाका । रहि तेजोमंडित मुख वाका ॥ 

अहो गोल सम सूल बिसेखे ।  आपनि पुर जब आगत देखे ॥ 
हनुमत ताहि बेगि करधरके । किए भंजित पुनि तिल तिल कर के ॥ 

दिसत दिसत भए खंडहि खंडा । गहे हस्त पुनि सक्ति प्रचंडा ॥ 
बदन कि उदर कि पुठबार कि पुच्छल । सबहि कतहुँ सों अहहीं लोहल ॥ 

लागि सक्ति उर संभु चलाईं । छनभर हनुमत बहु बिकलाईं ॥ 
भयऊ श्रमित कछु मुरुछा भई । छन महुँ अनाइ  छन महूँ गई ॥ 

बहोरि एकु अति भयंकर बिटपन्हि लिए उपाऱ । 
अहि माली के उर माझ हनेसि घोर पुकार ॥ 

बुधवार, ०२ दिसंबर, २०१५                                                                                 

अहि भूषन  कर कंठ लपेटे । महाबीर के चोट चपेटे  ॥ 
 हहरत इत उत सकल ब्याला । सरर प्रबिसिहि बेगि पाताला ॥ 

बहुरि मदनारि मुसल चलाईं । करत रखावनि कुसल उपाई ॥ 
महाबली भुज अस बल घारे । बिरथा गयऊ सबहि प्रहारे ॥ 

तेहि अवसर राम के दासा । कोप वसन कर बदन निवासा । 
उपात् परबत लिए एक हाथा । डारि संभु उर बहु बल साथा ॥ 

सैल धारासार बौझारे । ताकि त्मक लक तकि तकि मारे ॥ 
धरिहि उपल खंडल बहु खंभा । पुनि बरखावन लगे अरंभा ॥ 

सागर सरित भयउ उदवृत जिमि भयक्रांत भू कंपिहि । 
खन खन भित भित भिदरित गिरि अस सिरपर जस गिरहि महि ॥ 
प्रमथ मह झोटिंग गन सहित भई भयाकुलित सकल अनी । 
 सत्रुध्नन्हि सैन बाहिनी इत लागिहि बहु भयावनी ॥ 

होइहि उपल प्रपात नंदी बिहबल दरस्यो । 
छन चन खात अघात महदेउ ब्याकुल भयो ॥ 

बृहस्पति/शुक्र , ०३/०४  दिसंबर, २०१५                                                                       

देखि संभु महबीर प्रभाऊ । बोले मृदुलित हे कपिराऊ ॥ 
कमल नयन पद केर पुजारी । धन्य धन्य सेबिता तिहारी ॥ 

तुहारे भुज जस बल दरसायो । भगत प्रबर तुम मोहि अघायो ॥ 
तव बल बक्रम कीन्हि बड़ाई । मोर कोस सो सबद न भाई ॥ 

दान जाग यत्किंचित तप तैं  । रे भगत हेतु सुलभ नहीं मैं ॥ 
बेगसील हे बीर महाना । एतएव मँगिहु को बरदाना ॥ 

संभु अस कथ कथन जब लागे । हनुमत हँसत तब भय त्यागे ॥ 
पुनि मनमोहि गिरा कर बोले । हे डमरू धर हे बम भोले ॥ 


हे  गिरिजा पति गिरि बंधु अरु किछु  चाह न मोहि । 
रघुबर चरन प्रसाद सों दिए  समदित सब किछु होहि ॥ 

सियापति रघुनाथ के नाईं । मम रन कौसल तोहि अघाईं ॥ 
एहि हेतु तव कहे अनुहारा । माँगिहि बर यह  दास  तिहारा ॥ 

गहे बीर गति बीर भद्रहि कर । लरत भिरत हत परेउ भूपर ॥ 
अस कहत हनुमत कहि ए पुष्कल । हमरे पाख केरे बीरबल ॥ 

यह रामानुज सत्रुधन होई । मुख मंडल मुरुछ गहि सोई ॥ 
अबरु बहुतक सूर ता संगे ॥ गहे बान तन भयउ निषङ्गे ॥ 

होवत छतबत गहत प्रहारे । मुरुछा गहिं गिरि महि हारे ॥ 
रखिहु तिन्ह निज गन के साथा । धरिअ रहिहौं सिरोपर हाथा ॥ 

खँडरन तन प्रभु होए न तिनके । सिउ सनक जतन करें जिनके ॥ 
द्रोन गिरिहि अस औषधि होंही । निरजीउ जिउ जियावत जोंही ॥ 

 लेन गिरिहि सो औषधी मोही आयसु दाहु  । 
संभु द्रवित हिय सों कहे हाँ हाँ अवसिहि जाहु ॥ 

शनिवार, ०५ दिसंबर, २०१५                                                                      

देवधिदेव अनुमति दयऊ । सकल द्वीप उलाँघत गयऊ ॥ 
आए छीर सागर के तीरा । आए अचिर  हनुमत महबीरा ॥ 

 इहाँ सिव संभु निज गन सहिता । पुष्कलादि के भयउ रच्छिता ॥ 
उत पहुंचत गिरि द्रोन महाना । औषध हुँत उद्यत हनुमाना ॥ 

हस्त गहत परबत हहराहीँ । राखनहर सुर निरखत ताहीं ॥ 
कहत एहि बत भए कुपित बहुँता । को तुम आइहु इहँ केहि हुँता ॥ 

छाँड़ौ सठ अस कस तिन गहिहू । परबत कहँ कत लिए गत चहिहू ॥ 
सुरन्हि केर बचन दए काना । बिनयंनबत बोले हनुमाना ॥ 

बीर मनि के नगरी में होइँ बिकट संग्राम । 
एक पाख अहैं सिउ संभु  दूज पाख श्री राम ॥ 

सोमवार, ०७ दिसंबर, २०१५                                                                 

तब हनुमान घटना क्रम बँधाए । उभय दिसि  की सब कथा सुनाए  ॥ 
जोधत बहु बलबीर हमारे ।  रूद्र कर तैं गयउ संहारे ॥ 


तिन्हनि हुँत मैं गिरि लए जैहौं । जीवनोषधिहि देइ जियैहौं ॥ 
जिन्ह के बिक्रम अपरम होईं । प्रदरस् तिन्ह गरब  करि जोईं ॥ 

परबत लिए गत जो अवरोधहि । सो सठ  मोरे संगत जोधिहि ॥ 

तीन पापिन बहु रन खेलइहौं । एकै पलक जम भवन पठइहौं ॥ 

अब औषधिहि चहे गिरि दाहू । गहे बीर गति बीर सुबाहू ॥ 

लेइ ताहि में अचिरम जैहौं । निर्जीवन जन जीवन दैहौं ॥ 

पवन कुमार केर बचन सुनि करि सकल प्रनाम । 
ते औषध कर देइहीं जासु सजीवन नाम ॥ 


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