शुक्रवार, २० नवम्बर, २०१५
झाँक चकत अस रकत प्रकासा । ढाक ढँकत जस फुरिहि पलासा ॥
सूल सूल भए फूलहि फूला । सोइ दसा गहि हस्त त्रिसूला ॥
पुनि पुष्कल जय राम पुकारा । काटि निबार पलक महि पारा ॥
बिकट रूप धर गर्जहि कैसे । ताड़त तड़ित गहन घन जैसे ॥
छतज नयन उर जरइ न थोरे । कोपवंत पुष्कल रथ तोरे ॥
निज त्रिसूलन्हि कटत बिलोका । भयउ प्रबल रन रहइ न रोका ॥
रुद्रानुचर के बेग प्रसंगा । भंजेउ रथ भयउ बिनु अंगा ॥
गयउ पयादहि रथ परिहारे । बीर भद्रहि कसि मूठि प्रहारे ॥
बहुरि एकहि एक मुठिका मारएँ । घात घहट दुहु मानि न हारएँ ॥
लरिहि बिजय दुहु करि अभिलासा । चहहिं परस्पर प्रान निकासा ॥
रयनि बासर निरंतर जुझत रहै एहि भाँति ।
लरत बिरते चारि दिबस, पर नहीं उर साँति ॥
शनिवार, २१ नवम्बर, २०१५
पंचम दिवस कोप के साथा । बीर भद्रन्हि कंठ गहि हाथा ॥
बाहु मरोरत महि महुँ डारा । चोट गहत भै पीर अपारा ॥
बीर भद्रहु पुष्कल पग धारिहि । घुर्मावत नभ बारम बारहि ॥
भुज उपार पछाड़ महि पारे । मरति बार पुष्कल चित्कारे ॥
मुने अस बीर गति गहि पुष्कल । कासित करन्हि कंचनि कुंडल ॥
काट सो सिर गरज घन घोरा । फेरीबार फिरिहि चहुँ ओरा ॥
भंगी भय अस रन भूमि ब्यापे । जो देखिहि सो थर थर काँपे ॥
कुसल बीर सत्रुहन पहि जाईं । समाचार एहि कहि सिरु नाईं ॥
पुष्कल घेऊ बीर गति बीरभद्रहि कर सोहि ।
सुनेउ अस त सत्रुध्नन्हि करन भरोस न होंहि ॥
रवि/ सोम , २२/ २३ नवम्बर, २०१५
भरे नयन सुनि सकल बखाना । सत्रुहन मन बहुतहि दुःख माना ॥
कंपत ह्रदय धरा सम डोलिहिं । सोकाभिभूत नयन हिलोलिहि ॥
उठे ताप घन पलक जल छाए । बरख घन बिरमन बदन भिजाए ॥
सोक मग्न सत्रुहन जब पायो । सिव संकर बहु बिधि समझायो ॥
कठिन जे दुःख न जाइ बिलोका । तथापि रे तुम परिहरु सोका ॥
जेहिं समुख मह प्रलयंकारी । पंच दिवस लग किए रन भारी ॥
देइ प्रान रच्छत निज पाला । धन्य धन्य सो बीर निराला ॥
जोए दच्छ महत्तम निज जाना । जासों होएसि मम अपमाना ॥
तेहि मारि संघारिहि जोई । येहु बीर भद्र अहहीं सोई ॥
एतेउ तुम्ह सोक परिहारौ । हे मह बली उठौ रन कारौ ॥
सत्रुहन परिहर सोक, पुनि कोप करत संभु प्रति ।
नयनायन जल रोक, धरि धनु लोहितानन किए ॥
मंगलवार, २४ नवम्बर, २०१५
बहुरि बान संधान धनुरयो । रघुबंसि के पानि महुँ पुरयो ॥
ताकि तमक बितान झरि लाईं । दरसिहि धारा सार के नाईं ॥
उत सहुँ सिव संकर के छाँड़े । बिदार बदन द्युति सम बाड़ें ॥
गयउ गगन बे गुत्थमगुत्था । दुहु दलगंजन के सर जुत्था ॥
काल गहन नभ घन गम्भीर । भिरिहि घन सैम एकहिं एक तीरा ॥
अवलोकत ऐसेउ घमसाना । सबन्हि जन के मन अनुमाना ॥
जहँ लोक संहारन कारी । सम्मोहक प्रलयंकर भारी ॥
चेतन हरत सबन्हि मन मोहीं । अवसि प्रलय के आगम होंही ॥
दुहुरनकार निहार के कहै निहारनहारि ।
एकु अधिराज रामानुज, दूजे त्रय सिक धारि ॥
बुधवार, २५ नवम्बर, २०१५
भयऊ बिमिख पासपर दोई । राम न जाने अब का होई ।
दोनउ बीर बिराम न लेहीं । गहिहीं बिजय कलस कर केहीं ॥
एहि बिधि सत्रुहन अरु ससि सेखर। करिहिं सतत संग्राम भयंकर ॥
दिवस एकादस लग एहि भाँती । समर भूमि उर परे न साँती ॥
दिवस दुआदस संभु बिरुद्धा । तर्जत अति सत्रुहन बहु क्रुद्धा ॥
तोय तीर तूनीर त्याजे । चढ़ि गुन गगन टी गढ़ गढ़ गाजे ॥
चलेउ ब्रम्हायुध बिकराला । चहसि अबोध बधन मह काला ॥
रहेउ जिमि मह देउ प्यासे । पयसिहि हँस हँस पयस सकासे ॥
तासों सुमित्रा नंदनहि भइ अचरज अति भारि ।
करिए चहिअ अब कृत कवन लगे ए करन बिचारि॥
बृहस्पतिवार, २६ नवम्बर, २०१५
एहि बिधि सोच बिचारत रहिहिं । देबाधिदेउ एकु सर लहहिं ॥
तासु बदन सिखि कन छतराइहिं । सत्रुहन के उर सदन उतराइहिं ॥
भयउ बिकलतर बेध्यो हियो । सत्रुहन हतचेत धरनि गिरियो ॥
हय कि गज कि रथी कि पदचारी । तेहि अवसर भरे भट भारी ॥
सकल सेना हां हा हँकारी । पाहि पाहि मम पाहि पुकारी ॥
गहे तीर गह पीर बिसेखा । सत्रुहन जब मुरुछित गिरि देखा ॥
हनुमत तुर गत भुज भरि ल्याए । प्रथम तिन्ह स्यंदन पौढ़ाए ॥
रच्छन हुँत पुनि राखि रखौते । आप जुझावन होंहि अगौते ॥
सीस ससि सिर गंग गहे भूषित कंठ भुजङ्ग ।
जोगत बाहु बल हनुमत, कोपत भिरि ता संग ॥
शुक्रवार, २७ नवम्बर, २०१५
एकै नाम निज रसन अधारे । राम राम हाँ राम उचारे ॥
रिसभर खरतर पूँछ हलराए । निज दल बीर के हर्ष बढ़ाए ॥
समर सरित तट चरन धरायो । बहोरि तरत रुद्र पहि आयो ॥
देबाधिदेब बधन कर इच्छा । ऐसोइ कहत करिहि प्रदिच्छा ॥
धरम बिपरीत चरन करिअहहु । राम भगत हति हनन करि चहहु ॥
जो रघुबीर चरन अनुरागी ।भै अजहुँ मम दंड के भागी ॥
बीएड बिदुर मुनि मुख कहि पारा । सुना ए पुरबल बहुतहि बारा ॥
पिनाक धारि रूद्र अस होहू । राम चरन सुमिरन रत होहू ।।
मुनि बर बदन कहे बचन, असत भयउ हे राम ।
राम भगत सत्रुहन संग करिहहु तुम संग्राम ॥
शनिवार, २८ नवम्बर, २०१५
जब ऐसेउ कहा हनुमंता । कहे ए निगदन गिरिजा कंता ॥
हे कपिबर तुम बीर महाना । तुहरी कही फुरी मैं माना ॥
धन्य धन्य तुम पवन कुमारा । ध्न्य धन्य प्रभु पेम तिहारा ॥
राम जासु जस आप बखाना । तुहरे काज जगत कल्याना ॥
अगजग जिन बंदिहि कर जोरे । जथारथ में सोइ पति मोरे ॥
भगवान जेहि तुरग परिहाई । बीरमनि तिन्ह बाँधि लवाईं ॥
रघुबर जिन्ह तुरग करि रखे । सो सत्रुहन तेहि हरनत लखे ॥
जोइ बीर रिपु दल दमनावा । रच्छत हय तापर चढि आवा ॥
तासु भगति बस आपनि पायउँ । ताहि रच्छन रन भूमि आयउँ ॥
भगवान भगत सरूप है भगत रूप भगवान ।
भगत राख करि चाहिये राखें जेन बिधान ॥
सोमवार, ३० नवंबर, २०१५
सुनत बचन सिउ भगवंता के । भरि रिस सों उर हनुमंता के ॥
छोभित एकु सिलिका कर धारे । ताहि तासु बहि महि दै मारे ॥
गहे स्यंदन सील अघाता । भंजित हति रन भूमि निपाता ॥
कतहुँ त सारथि कतहुँ त चाका । कतहुँ केतु अरु कतहुँ पताका ॥
चितबत नंदी पत रथहीना । लरत पयादहि बदन मलीना ॥
उठेउ तुरत अस निगदत धाए । भगवन मोरे पुठबार पधाएँ ॥
भूतनाथ नंदी करि बाही ।मारुत सुत बयरु बरधाही ॥
लोहितानन गाढिहि अतीवा । पारग भयउ कोप के सींवा ॥
लम्ब बाहु बरियात पुनि लिए एक साल उपार।
घोर पुकार हनेसि उर किए बहु बेगि प्रहार ॥
मंगलवार, १ दिसंबर, २०१५
ज्वाल सरिस तीनि सिखि षण्डा । गाहे हस्त अस सूल प्रचंडा ॥
अगनाभ टूल तेजस जाका । रहि तेजोमंडित मुख वाका ॥
अहो गोल सम सूल बिसेखे । आपनि पुर जब आगत देखे ॥
हनुमत ताहि बेगि करधरके । किए भंजित पुनि तिल तिल कर के ॥
दिसत दिसत भए खंडहि खंडा । गहे हस्त पुनि सक्ति प्रचंडा ॥
बदन कि उदर कि पुठबार कि पुच्छल । सबहि कतहुँ सों अहहीं लोहल ॥
लागि सक्ति उर संभु चलाईं । छनभर हनुमत बहु बिकलाईं ॥
भयऊ श्रमित कछु मुरुछा भई । छन महुँ अनाइ छन महूँ गई ॥
बहोरि एकु अति भयंकर बिटपन्हि लिए उपाऱ ।
अहि माली के उर माझ हनेसि घोर पुकार ॥
बुधवार, ०२ दिसंबर, २०१५
अहि भूषन कर कंठ लपेटे । महाबीर के चोट चपेटे ॥
हहरत इत उत सकल ब्याला । सरर प्रबिसिहि बेगि पाताला ॥
बहुरि मदनारि मुसल चलाईं । करत रखावनि कुसल उपाई ॥
महाबली भुज अस बल घारे । बिरथा गयऊ सबहि प्रहारे ॥
तेहि अवसर राम के दासा । कोप वसन कर बदन निवासा ।
उपात् परबत लिए एक हाथा । डारि संभु उर बहु बल साथा ॥
सैल धारासार बौझारे । ताकि त्मक लक तकि तकि मारे ॥
धरिहि उपल खंडल बहु खंभा । पुनि बरखावन लगे अरंभा ॥
सागर सरित भयउ उदवृत जिमि भयक्रांत भू कंपिहि ।
खन खन भित भित भिदरित गिरि अस सिरपर जस गिरहि महि ॥
प्रमथ मह झोटिंग गन सहित भई भयाकुलित सकल अनी ।
सत्रुध्नन्हि सैन बाहिनी इत लागिहि बहु भयावनी ॥
होइहि उपल प्रपात नंदी बिहबल दरस्यो ।
छन चन खात अघात महदेउ ब्याकुल भयो ॥
बृहस्पति/शुक्र , ०३/०४ दिसंबर, २०१५
देखि संभु महबीर प्रभाऊ । बोले मृदुलित हे कपिराऊ ॥
कमल नयन पद केर पुजारी । धन्य धन्य सेबिता तिहारी ॥
तुहारे भुज जस बल दरसायो । भगत प्रबर तुम मोहि अघायो ॥
तव बल बक्रम कीन्हि बड़ाई । मोर कोस सो सबद न भाई ॥
दान जाग यत्किंचित तप तैं । रे भगत हेतु सुलभ नहीं मैं ॥
बेगसील हे बीर महाना । एतएव मँगिहु को बरदाना ॥
संभु अस कथ कथन जब लागे । हनुमत हँसत तब भय त्यागे ॥
पुनि मनमोहि गिरा कर बोले । हे डमरू धर हे बम भोले ॥
हे गिरिजा पति गिरि बंधु अरु किछु चाह न मोहि ।
रघुबर चरन प्रसाद सों दिए समदित सब किछु होहि ॥
सियापति रघुनाथ के नाईं । मम रन कौसल तोहि अघाईं ॥
एहि हेतु तव कहे अनुहारा । माँगिहि बर यह दास तिहारा ॥
गहे बीर गति बीर भद्रहि कर । लरत भिरत हत परेउ भूपर ॥
अस कहत हनुमत कहि ए पुष्कल । हमरे पाख केरे बीरबल ॥
यह रामानुज सत्रुधन होई । मुख मंडल मुरुछ गहि सोई ॥
अबरु बहुतक सूर ता संगे ॥ गहे बान तन भयउ निषङ्गे ॥
होवत छतबत गहत प्रहारे । मुरुछा गहिं गिरि महि हारे ॥
रखिहु तिन्ह निज गन के साथा । धरिअ रहिहौं सिरोपर हाथा ॥
खँडरन तन प्रभु होए न तिनके । सिउ सनक जतन करें जिनके ॥
द्रोन गिरिहि अस औषधि होंही । निरजीउ जिउ जियावत जोंही ॥
लेन गिरिहि सो औषधी मोही आयसु दाहु ।
संभु द्रवित हिय सों कहे हाँ हाँ अवसिहि जाहु ॥
शनिवार, ०५ दिसंबर, २०१५
देवधिदेव अनुमति दयऊ । सकल द्वीप उलाँघत गयऊ ॥
आए छीर सागर के तीरा । आए अचिर हनुमत महबीरा ॥
इहाँ सिव संभु निज गन सहिता । पुष्कलादि के भयउ रच्छिता ॥
उत पहुंचत गिरि द्रोन महाना । औषध हुँत उद्यत हनुमाना ॥
हस्त गहत परबत हहराहीँ । राखनहर सुर निरखत ताहीं ॥
कहत एहि बत भए कुपित बहुँता । को तुम आइहु इहँ केहि हुँता ॥
छाँड़ौ सठ अस कस तिन गहिहू । परबत कहँ कत लिए गत चहिहू ॥
सुरन्हि केर बचन दए काना । बिनयंनबत बोले हनुमाना ॥
बीर मनि के नगरी में होइँ बिकट संग्राम ।
एक पाख अहैं सिउ संभु दूज पाख श्री राम ॥
सोमवार, ०७ दिसंबर, २०१५
तब हनुमान घटना क्रम बँधाए । उभय दिसि की सब कथा सुनाए ॥
जोधत बहु बलबीर हमारे । रूद्र कर तैं गयउ संहारे ॥
तिन्हनि हुँत मैं गिरि लए जैहौं । जीवनोषधिहि देइ जियैहौं ॥
जिन्ह के बिक्रम अपरम होईं । प्रदरस् तिन्ह गरब करि जोईं ॥
परबत लिए गत जो अवरोधहि । सो सठ मोरे संगत जोधिहि ॥
तीन पापिन बहु रन खेलइहौं । एकै पलक जम भवन पठइहौं ॥
अब औषधिहि चहे गिरि दाहू । गहे बीर गति बीर सुबाहू ॥
लेइ ताहि में अचिरम जैहौं । निर्जीवन जन जीवन दैहौं ॥
पवन कुमार केर बचन सुनि करि सकल प्रनाम ।
ते औषध कर देइहीं जासु सजीवन नाम ॥
झाँक चकत अस रकत प्रकासा । ढाक ढँकत जस फुरिहि पलासा ॥
सूल सूल भए फूलहि फूला । सोइ दसा गहि हस्त त्रिसूला ॥
पुनि पुष्कल जय राम पुकारा । काटि निबार पलक महि पारा ॥
बिकट रूप धर गर्जहि कैसे । ताड़त तड़ित गहन घन जैसे ॥
छतज नयन उर जरइ न थोरे । कोपवंत पुष्कल रथ तोरे ॥
निज त्रिसूलन्हि कटत बिलोका । भयउ प्रबल रन रहइ न रोका ॥
रुद्रानुचर के बेग प्रसंगा । भंजेउ रथ भयउ बिनु अंगा ॥
गयउ पयादहि रथ परिहारे । बीर भद्रहि कसि मूठि प्रहारे ॥
बहुरि एकहि एक मुठिका मारएँ । घात घहट दुहु मानि न हारएँ ॥
लरिहि बिजय दुहु करि अभिलासा । चहहिं परस्पर प्रान निकासा ॥
रयनि बासर निरंतर जुझत रहै एहि भाँति ।
लरत बिरते चारि दिबस, पर नहीं उर साँति ॥
शनिवार, २१ नवम्बर, २०१५
पंचम दिवस कोप के साथा । बीर भद्रन्हि कंठ गहि हाथा ॥
बाहु मरोरत महि महुँ डारा । चोट गहत भै पीर अपारा ॥
बीर भद्रहु पुष्कल पग धारिहि । घुर्मावत नभ बारम बारहि ॥
भुज उपार पछाड़ महि पारे । मरति बार पुष्कल चित्कारे ॥
मुने अस बीर गति गहि पुष्कल । कासित करन्हि कंचनि कुंडल ॥
काट सो सिर गरज घन घोरा । फेरीबार फिरिहि चहुँ ओरा ॥
भंगी भय अस रन भूमि ब्यापे । जो देखिहि सो थर थर काँपे ॥
कुसल बीर सत्रुहन पहि जाईं । समाचार एहि कहि सिरु नाईं ॥
पुष्कल घेऊ बीर गति बीरभद्रहि कर सोहि ।
सुनेउ अस त सत्रुध्नन्हि करन भरोस न होंहि ॥
रवि/ सोम , २२/ २३ नवम्बर, २०१५
भरे नयन सुनि सकल बखाना । सत्रुहन मन बहुतहि दुःख माना ॥
कंपत ह्रदय धरा सम डोलिहिं । सोकाभिभूत नयन हिलोलिहि ॥
उठे ताप घन पलक जल छाए । बरख घन बिरमन बदन भिजाए ॥
सोक मग्न सत्रुहन जब पायो । सिव संकर बहु बिधि समझायो ॥
कठिन जे दुःख न जाइ बिलोका । तथापि रे तुम परिहरु सोका ॥
जेहिं समुख मह प्रलयंकारी । पंच दिवस लग किए रन भारी ॥
देइ प्रान रच्छत निज पाला । धन्य धन्य सो बीर निराला ॥
जोए दच्छ महत्तम निज जाना । जासों होएसि मम अपमाना ॥
तेहि मारि संघारिहि जोई । येहु बीर भद्र अहहीं सोई ॥
एतेउ तुम्ह सोक परिहारौ । हे मह बली उठौ रन कारौ ॥
सत्रुहन परिहर सोक, पुनि कोप करत संभु प्रति ।
नयनायन जल रोक, धरि धनु लोहितानन किए ॥
मंगलवार, २४ नवम्बर, २०१५
बहुरि बान संधान धनुरयो । रघुबंसि के पानि महुँ पुरयो ॥
ताकि तमक बितान झरि लाईं । दरसिहि धारा सार के नाईं ॥
उत सहुँ सिव संकर के छाँड़े । बिदार बदन द्युति सम बाड़ें ॥
गयउ गगन बे गुत्थमगुत्था । दुहु दलगंजन के सर जुत्था ॥
काल गहन नभ घन गम्भीर । भिरिहि घन सैम एकहिं एक तीरा ॥
अवलोकत ऐसेउ घमसाना । सबन्हि जन के मन अनुमाना ॥
जहँ लोक संहारन कारी । सम्मोहक प्रलयंकर भारी ॥
चेतन हरत सबन्हि मन मोहीं । अवसि प्रलय के आगम होंही ॥
दुहुरनकार निहार के कहै निहारनहारि ।
एकु अधिराज रामानुज, दूजे त्रय सिक धारि ॥
बुधवार, २५ नवम्बर, २०१५
भयऊ बिमिख पासपर दोई । राम न जाने अब का होई ।
दोनउ बीर बिराम न लेहीं । गहिहीं बिजय कलस कर केहीं ॥
एहि बिधि सत्रुहन अरु ससि सेखर। करिहिं सतत संग्राम भयंकर ॥
दिवस एकादस लग एहि भाँती । समर भूमि उर परे न साँती ॥
दिवस दुआदस संभु बिरुद्धा । तर्जत अति सत्रुहन बहु क्रुद्धा ॥
तोय तीर तूनीर त्याजे । चढ़ि गुन गगन टी गढ़ गढ़ गाजे ॥
चलेउ ब्रम्हायुध बिकराला । चहसि अबोध बधन मह काला ॥
रहेउ जिमि मह देउ प्यासे । पयसिहि हँस हँस पयस सकासे ॥
तासों सुमित्रा नंदनहि भइ अचरज अति भारि ।
करिए चहिअ अब कृत कवन लगे ए करन बिचारि॥
बृहस्पतिवार, २६ नवम्बर, २०१५
एहि बिधि सोच बिचारत रहिहिं । देबाधिदेउ एकु सर लहहिं ॥
तासु बदन सिखि कन छतराइहिं । सत्रुहन के उर सदन उतराइहिं ॥
भयउ बिकलतर बेध्यो हियो । सत्रुहन हतचेत धरनि गिरियो ॥
हय कि गज कि रथी कि पदचारी । तेहि अवसर भरे भट भारी ॥
सकल सेना हां हा हँकारी । पाहि पाहि मम पाहि पुकारी ॥
गहे तीर गह पीर बिसेखा । सत्रुहन जब मुरुछित गिरि देखा ॥
हनुमत तुर गत भुज भरि ल्याए । प्रथम तिन्ह स्यंदन पौढ़ाए ॥
रच्छन हुँत पुनि राखि रखौते । आप जुझावन होंहि अगौते ॥
सीस ससि सिर गंग गहे भूषित कंठ भुजङ्ग ।
जोगत बाहु बल हनुमत, कोपत भिरि ता संग ॥
शुक्रवार, २७ नवम्बर, २०१५
एकै नाम निज रसन अधारे । राम राम हाँ राम उचारे ॥
रिसभर खरतर पूँछ हलराए । निज दल बीर के हर्ष बढ़ाए ॥
समर सरित तट चरन धरायो । बहोरि तरत रुद्र पहि आयो ॥
देबाधिदेब बधन कर इच्छा । ऐसोइ कहत करिहि प्रदिच्छा ॥
धरम बिपरीत चरन करिअहहु । राम भगत हति हनन करि चहहु ॥
जो रघुबीर चरन अनुरागी ।भै अजहुँ मम दंड के भागी ॥
बीएड बिदुर मुनि मुख कहि पारा । सुना ए पुरबल बहुतहि बारा ॥
पिनाक धारि रूद्र अस होहू । राम चरन सुमिरन रत होहू ।।
मुनि बर बदन कहे बचन, असत भयउ हे राम ।
राम भगत सत्रुहन संग करिहहु तुम संग्राम ॥
शनिवार, २८ नवम्बर, २०१५
जब ऐसेउ कहा हनुमंता । कहे ए निगदन गिरिजा कंता ॥
हे कपिबर तुम बीर महाना । तुहरी कही फुरी मैं माना ॥
धन्य धन्य तुम पवन कुमारा । ध्न्य धन्य प्रभु पेम तिहारा ॥
राम जासु जस आप बखाना । तुहरे काज जगत कल्याना ॥
अगजग जिन बंदिहि कर जोरे । जथारथ में सोइ पति मोरे ॥
भगवान जेहि तुरग परिहाई । बीरमनि तिन्ह बाँधि लवाईं ॥
रघुबर जिन्ह तुरग करि रखे । सो सत्रुहन तेहि हरनत लखे ॥
जोइ बीर रिपु दल दमनावा । रच्छत हय तापर चढि आवा ॥
तासु भगति बस आपनि पायउँ । ताहि रच्छन रन भूमि आयउँ ॥
भगवान भगत सरूप है भगत रूप भगवान ।
भगत राख करि चाहिये राखें जेन बिधान ॥
सोमवार, ३० नवंबर, २०१५
सुनत बचन सिउ भगवंता के । भरि रिस सों उर हनुमंता के ॥
छोभित एकु सिलिका कर धारे । ताहि तासु बहि महि दै मारे ॥
गहे स्यंदन सील अघाता । भंजित हति रन भूमि निपाता ॥
कतहुँ त सारथि कतहुँ त चाका । कतहुँ केतु अरु कतहुँ पताका ॥
चितबत नंदी पत रथहीना । लरत पयादहि बदन मलीना ॥
उठेउ तुरत अस निगदत धाए । भगवन मोरे पुठबार पधाएँ ॥
भूतनाथ नंदी करि बाही ।मारुत सुत बयरु बरधाही ॥
लोहितानन गाढिहि अतीवा । पारग भयउ कोप के सींवा ॥
लम्ब बाहु बरियात पुनि लिए एक साल उपार।
घोर पुकार हनेसि उर किए बहु बेगि प्रहार ॥
मंगलवार, १ दिसंबर, २०१५
ज्वाल सरिस तीनि सिखि षण्डा । गाहे हस्त अस सूल प्रचंडा ॥
अगनाभ टूल तेजस जाका । रहि तेजोमंडित मुख वाका ॥
अहो गोल सम सूल बिसेखे । आपनि पुर जब आगत देखे ॥
हनुमत ताहि बेगि करधरके । किए भंजित पुनि तिल तिल कर के ॥
दिसत दिसत भए खंडहि खंडा । गहे हस्त पुनि सक्ति प्रचंडा ॥
बदन कि उदर कि पुठबार कि पुच्छल । सबहि कतहुँ सों अहहीं लोहल ॥
लागि सक्ति उर संभु चलाईं । छनभर हनुमत बहु बिकलाईं ॥
भयऊ श्रमित कछु मुरुछा भई । छन महुँ अनाइ छन महूँ गई ॥
बहोरि एकु अति भयंकर बिटपन्हि लिए उपाऱ ।
अहि माली के उर माझ हनेसि घोर पुकार ॥
बुधवार, ०२ दिसंबर, २०१५
अहि भूषन कर कंठ लपेटे । महाबीर के चोट चपेटे ॥
हहरत इत उत सकल ब्याला । सरर प्रबिसिहि बेगि पाताला ॥
बहुरि मदनारि मुसल चलाईं । करत रखावनि कुसल उपाई ॥
महाबली भुज अस बल घारे । बिरथा गयऊ सबहि प्रहारे ॥
तेहि अवसर राम के दासा । कोप वसन कर बदन निवासा ।
उपात् परबत लिए एक हाथा । डारि संभु उर बहु बल साथा ॥
सैल धारासार बौझारे । ताकि त्मक लक तकि तकि मारे ॥
धरिहि उपल खंडल बहु खंभा । पुनि बरखावन लगे अरंभा ॥
सागर सरित भयउ उदवृत जिमि भयक्रांत भू कंपिहि ।
खन खन भित भित भिदरित गिरि अस सिरपर जस गिरहि महि ॥
प्रमथ मह झोटिंग गन सहित भई भयाकुलित सकल अनी ।
सत्रुध्नन्हि सैन बाहिनी इत लागिहि बहु भयावनी ॥
होइहि उपल प्रपात नंदी बिहबल दरस्यो ।
छन चन खात अघात महदेउ ब्याकुल भयो ॥
बृहस्पति/शुक्र , ०३/०४ दिसंबर, २०१५
देखि संभु महबीर प्रभाऊ । बोले मृदुलित हे कपिराऊ ॥
कमल नयन पद केर पुजारी । धन्य धन्य सेबिता तिहारी ॥
तुहारे भुज जस बल दरसायो । भगत प्रबर तुम मोहि अघायो ॥
तव बल बक्रम कीन्हि बड़ाई । मोर कोस सो सबद न भाई ॥
दान जाग यत्किंचित तप तैं । रे भगत हेतु सुलभ नहीं मैं ॥
बेगसील हे बीर महाना । एतएव मँगिहु को बरदाना ॥
संभु अस कथ कथन जब लागे । हनुमत हँसत तब भय त्यागे ॥
पुनि मनमोहि गिरा कर बोले । हे डमरू धर हे बम भोले ॥
हे गिरिजा पति गिरि बंधु अरु किछु चाह न मोहि ।
रघुबर चरन प्रसाद सों दिए समदित सब किछु होहि ॥
सियापति रघुनाथ के नाईं । मम रन कौसल तोहि अघाईं ॥
एहि हेतु तव कहे अनुहारा । माँगिहि बर यह दास तिहारा ॥
गहे बीर गति बीर भद्रहि कर । लरत भिरत हत परेउ भूपर ॥
अस कहत हनुमत कहि ए पुष्कल । हमरे पाख केरे बीरबल ॥
यह रामानुज सत्रुधन होई । मुख मंडल मुरुछ गहि सोई ॥
अबरु बहुतक सूर ता संगे ॥ गहे बान तन भयउ निषङ्गे ॥
होवत छतबत गहत प्रहारे । मुरुछा गहिं गिरि महि हारे ॥
रखिहु तिन्ह निज गन के साथा । धरिअ रहिहौं सिरोपर हाथा ॥
खँडरन तन प्रभु होए न तिनके । सिउ सनक जतन करें जिनके ॥
द्रोन गिरिहि अस औषधि होंही । निरजीउ जिउ जियावत जोंही ॥
लेन गिरिहि सो औषधी मोही आयसु दाहु ।
संभु द्रवित हिय सों कहे हाँ हाँ अवसिहि जाहु ॥
शनिवार, ०५ दिसंबर, २०१५
देवधिदेव अनुमति दयऊ । सकल द्वीप उलाँघत गयऊ ॥
आए छीर सागर के तीरा । आए अचिर हनुमत महबीरा ॥
इहाँ सिव संभु निज गन सहिता । पुष्कलादि के भयउ रच्छिता ॥
उत पहुंचत गिरि द्रोन महाना । औषध हुँत उद्यत हनुमाना ॥
हस्त गहत परबत हहराहीँ । राखनहर सुर निरखत ताहीं ॥
कहत एहि बत भए कुपित बहुँता । को तुम आइहु इहँ केहि हुँता ॥
छाँड़ौ सठ अस कस तिन गहिहू । परबत कहँ कत लिए गत चहिहू ॥
सुरन्हि केर बचन दए काना । बिनयंनबत बोले हनुमाना ॥
बीर मनि के नगरी में होइँ बिकट संग्राम ।
एक पाख अहैं सिउ संभु दूज पाख श्री राम ॥
सोमवार, ०७ दिसंबर, २०१५
तब हनुमान घटना क्रम बँधाए । उभय दिसि की सब कथा सुनाए ॥
जोधत बहु बलबीर हमारे । रूद्र कर तैं गयउ संहारे ॥
तिन्हनि हुँत मैं गिरि लए जैहौं । जीवनोषधिहि देइ जियैहौं ॥
जिन्ह के बिक्रम अपरम होईं । प्रदरस् तिन्ह गरब करि जोईं ॥
परबत लिए गत जो अवरोधहि । सो सठ मोरे संगत जोधिहि ॥
तीन पापिन बहु रन खेलइहौं । एकै पलक जम भवन पठइहौं ॥
अब औषधिहि चहे गिरि दाहू । गहे बीर गति बीर सुबाहू ॥
लेइ ताहि में अचिरम जैहौं । निर्जीवन जन जीवन दैहौं ॥
पवन कुमार केर बचन सुनि करि सकल प्रनाम ।
ते औषध कर देइहीं जासु सजीवन नाम ॥